दीप जलाएँ सारे मिल कर
कविता
लेखक : कर्नल प्रवीण त्रिपाठी नोएडा
दिल के दीप जलाते चलिये
सारे तिमिर हटाते चलिये
अंतस में उजियारा भर ले
जग को राह दिखाते चलिये।1
दीप प्रेम के सभी जलाएँ
नाते नव हम नित्य बनाएँ
मजबूती से साथ खड़े हों
भेद हृदय से सभी मिटाएँ।2
मिशन स्वच्छता हम अपनायें
ले मशाल हम राह दिखायें
नहीं गन्दगी आसपास हो
घर आँगन को स्वच्छ बनायें।3
दीप मालिका द्वार- द्वार हो
लड़ियों दीपों की बहार हो
बंदनवार लगा चौखट पर
दरवाजों का हर सिँगार हो।4
दीवाली पर लगते मेले
खुशियाँ अंदर दूर झमेले
दमन बुराई का सब कर दें
कोई चौसर जुआ न खेले।5
मिल कर छोड़ें खूब पटाके।
सीमा में ही करें धमाके
ध्यान प्रदूषण का भी रखना
खुशियाँ लायें व्यथा भगा के।6
गणपति लक्ष्मी पूजें मिल कर
कृपा बरसती सब के घर पर
हर्ष और और आनंद बढ़े नित
सुखी रहे जन-जन जीवन भर।7
No Previous Comments found.