कविता: दिन और रात नदी के दो किनारे है इस नदी के दो किनारों से बहती है जीवन की अविरल धारा,

लेखिका :बिना राय जनपद आजमगढ़

वो धारा-

जिसकी बुनियाद है साँसे , जरूरतें
और इन सासो के वजूद को
इन जरूरतों को पूरा करने को
एक इंसान अनेक कठनाईयो से
 संघर्षों से गुजरता है????

जिंदगी असल माईने में संघर्षों का
वह सफर है जो सासो के
थमने के बाद ही थमता है
जीवन वक्त की वह कसौटी है
जो अनेक चुनौतियो भरी है
और हम जिंदगी की  वह कठपुतली हैं
जो वक्त और जरूरतों के हाथों
कई रूप कई रंग बदल कर खेलते हैं????

और किस्मत इस खेल की सबसे माहिर खिलाड़ी है
किस्मत जिसकी जितनी अच्छी उसकी जिंदगी उतनी अच्छी
जब भागती इस जिंदगी को एक किनारे खड़े होकर देखती हूँ
तो देखती हूँ कि यह सफर तो कभी थमेगा ही नहीं
और जिंदगी की मंजिल तो कोई है ही नही
 हां इस जिंदगी के अनेकों मोड़ हैं
और हर मोड़ पर एक मंजिल है
और उस मोड़ के बाद उस मंजिल के बाद
फिर एक नया  सफर है

बिल्कुल दिन और रात की तरह????

रिपोटर: चंद्रकांत  पूजारी

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