"कद्र करे आज़ादी की"
लेखिका ✍ निवेदिता मुकुल सक्सेना झाबुआ
भारत देश ब्रिटिश की गुलामी से बहुत मुश्किल से बाहर आ पाया सैकडों लाखो या शायद उससे भी ज्यादा लोगो ने अपनी देश को स्वतन्त्रता प्राप्ति हेतू अपनी जान दी ।देश आजाद हूआ । लेकिन वर्तमान अभी भी मानसिक रुप से गुलामी से उबर नही पा रहा। लोकतंत्र के चलते अभी भी कयी बाते गुमराह सी भुलावा स्वरुप चल रही हैं ।
वैसे ही कोरोना ने देश का समाजिक जीवन अस्त व्यस्त सा कर दिया । हो भी क्यु ना एक "ब्लाइंड स्पॉट "मे सब अपनी मर्जी के मालिक हो रहे हम बात कर रहे यहा नेता,अभिनेता,ओर अफसर शाही सब शाही हो गये।क्युकी आजादी का जश्न जो दिल से मना रहे 1947 से अब तक या "जश्न ए कोरोना" । छोटी बढि चुनौतियो को निभाते निभाते देश स्पेस में प्रवेश करा तो वही अस्सी प्रतिशत आजादी का लुत्फ चरम सीमा के बाहर मना रहे। क्युकी चन्द लोग जनता को शिद्दत से हित चाह रहे वही कुछ " रॉंग एलीमेंट " द्वारा उनके हाथ ओर पैर पीछे बाँध दिए गये ।जहा कोरोना ने सबको कयी नये बंधनो मे बाँध दिया व विचरण की आजादी पर भी अनुबंध खत्म हुये।
फिलहाल, "राजनैतिक व प्रशासनिक "दोनो क्षेत्रो को निरंतर देखते हुये लग रहा जैसे भुल गये मायने हम इस आजादी के,या शायद कोरोना महामारी को भी एक तरफ कर दिया।
शिक्षा जगत -हाल ही मे कयी क्षेत्र जहाँ असमंजस मे भटक रहे क्युकी कोरोना काल मे इस जगत सत्र की शुरुआत व मध्य व अंत अभी खोई सी है । वही बिना सही गलत की राह दिखाये मोबाइल की डिजिटल लाईट आँखो को चकाचौंध कर रही। वही "अभी पैरंट्स ओर टीचरस" भी सजग नही की इस डिजिटल दूनियाँ मे सही क्या ओर गलत क्या । क्युकी अंधाधुंद मोबाइल नन्हो के हाथो मे ये भुला गया उन्हे की टीचर व पेरेंटस के मध्य की दिवार भूलती सी नजर आ रही ।
अब किशोरवय ऑन लाईन स्टडी के समय केमरा ऑफ सिर्फ टीचर अपना सब्जेक्ट प्रसेंटेशन देते ओर जाने का समय होता तब थैंकयू कहने की आवाज भी देनी होती हैं की स्टूडेंटस थैंक यू कहिये मतलब अभी ऑन लाइन स्टडी की वास्तविकता गुम सी हैं,या ऑन लाइन स्टडी की आजादी की कद्र नही हो पा रही या शायद नियम बनने या अनुशासन की कमी आयी इस "आजादी ए ऑन लाइन स्टडी " में। जहाँ शिक्षक को भी अपने विषय को समय पर पुर्ण करना वही नये नियमों को समझना ओर नये स्वरुप मे नया शिक्षक जिंदा करना ।
परिवार -कुल नौ महिने का सफर कोरोना महामारी का पुर्ण होने जा रहा हैं कयी संकटग्रस्त स्थितियाँ इस दौर मे आयी ओर कयी जगह दस्तक के साथ घरो की स्थिति डावा डोल कर गयी । वही मार्च से जुलाई तक कयी नये शादी शुदा जोड़े तलाको की अर्जी देने आये या कारण आज की लाइफ मे ना तो लडकिया धेर्य,सहनशीलता, धारण करने को त्यार ना ही लडके कोरोना काल के पहले सब अपना जीवन अपने तरह से जी रहे थे लेकिन कोरोना ने सभी की इस आजादी पर पाबंदी लगा दी जिसके कारण कयी जोढो को एक दूसरे से घुटन होने लगी ओर तब शुरु हुई रोका टाकी ओर जोर आजमाईश अपनी बात मनवाने की जो लेकिन एसा कैसे सम्भव क्युकी सभी की परवरिश एक ही जेसे जो हुई ये बात भी तब अनुमानित हुई जब अलग अलग काऊंसलिंग से जाना की बचपन से बढे होने तक लडके लडकियो की परवरिश समान हुई व माता पिता लडकियो को हर तरह से लडके की तरह ही हर आजादी उप्लब्ध करवाते आये तो कैसे सम्भव है झुकना या नमना।बात क्रिटिसिसम की नही वरन आजादी के मायनों की है।
प्रशासन की आजादी- देश की आजादी से अब तक भी हम पीछे क्यु जबकी शिक्षा का स्तर बढा ,जनसंख्या भी लगत बढ रही,वही तकनीकी ज्ञान भी फिर भी विकास रुका गरिबी बेरोजगारी आखिर कारण हा विकास हूआ तो सभी "नेताओं व अफसरशाहीयो" का क्युकी सत्ता व कुर्सी का नशा जो आजादी दिलाता है उसमे सभी उत्तरदायित्व बेमाने से नजर आते है तब जब गांव गांव बच्चो व गरीब वर्ग का पैसा अफसरो की कागजो की झूठी सच्ची कहानी के खैल मे वास्तविकता के खर पच्चे तब उखाड़ देता जब जवाबदेही शुरु होती या उन्हे रोक दिया जाता।
राजनीती की आजादी ने एक निम्न स्तर का प्रदर्शन करती जा रही शायद "बाहुबली के कतप्पा व भल्लाल देव" कब , कहा नही सत्यता देखे तो यही से तो पुरा तन्त्र जहा सम्हाल सकता हैं राजनीती के दोहरे चरित्र ने शोषण की कहानियो को देख कर भी नजरअंदाज किया है।तो किसका बदलाव ओर कैसे क्युकी सभी एक प्लेट पर गेंद की तरह हैं बस अवसरवादी अगर हम हैं तो आपको हर अवसर पर प्रशंसित किया जायेगा या उपहारो से नवाजा जायेगा शायद यही वास्तविकता एक राजनैतिक खेल के बाद फिर रिकॉर्ड तोढ कोरोना के दर्शन करवाएगी। फिलहाल सब मग्न है जोढ तौड के खैल में।अब देखना भी ये है की वास्तविक बाहुबली जो देश या अंचल को उसका हक दिलवा दे या फिर वही मुखौटो से भरे नेताओ का जन्जाल रहेगा।
बात कड़वाह्ट क्यु इतनी,इसिलए की देश को मिली आजादी ओर कोरोना त्रासदी को आजादी समझ रहे उन नादानो की है । जहा कहा जाए हम स्टूडेंटस मॉब को सम्हाल लेंगे ये भटकते हुये बढे मॉब का क्या???
- जिम्मेदारी हमारी-
*स्टूडेंटस को ऑन लाइन स्टडी सेशन के पहले स्क्रीन टाईम का कितना उपयोग सही तरह करना ओर उसके लाभ के साथ हानियाँ भी बताना जरुरी हैं क्युकी नेट पर बहुत कुछ परसा जा रहा समय रहते अवगत कराना जरुरी हैं।
बाकी "प्रशासन व राजनीतिज्ञ "फिफ्टी फिफ्टी गेम से निकले तब ही देश का या अंचल का विकास सम्भव है कद्र करे आजादी की जो बहुत मुश्किल मिल पाई है।
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