नई शिक्षा नीति में महात्मा गांधी का प्रभाव: एक आकलन - कर्नल प्रवीण शंकर त्रिपाठी(से.नि.) नोएडा

अनादि काल से ही हम गुरु एवं शिक्षक की महत्ता एवं उपयोगिता के बारे में सुनते चले आ रहे हैं। छात्र के हृदय में सीखने की इच्छा को अंकुरित करके अध्यापन करने वाले ही शिक्षक कहलाते हैं। गांधी  जी मानते थे कि प्राथमिक स्तर तक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होना चाहिए। कोई भी शिक्षा से वंचित न रहे अस्तु चौदह वर्ष तक निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था कालांतर में की जा चुकी है। महात्मा गांधी ऐसी शिक्षण व्यवस्था की कल्पना करते थे, जोकि व्यक्तित्व के समग्र विकास में सहायक हो। उन्होंने बुनियादी शिक्षा(प्राथमिक एवं मिडिल) में कौशल विकास जैसे- खेती, बागवानी, सूत कातना, काष्ठ कला, लुहारगीरी, मिट्टी के बर्तन बनाना आदि के अनिवार्य प्रशिक्षण पर बल दिया था।

उनके अनुसार शिक्षा पद्धति ऐसी हो जो कि बोझ न हो कर सर्व ग्राह्य एवं सर्वव्यापी हो। अतः जब तक संभव हो शिक्षण मातृ भाषा में ही हो। तकनीकी विषयों पर जहां यह संभव नहीं हो, वहां दीर्घकालीन उपाय होने चाहिए ताकि विज्ञान एवं तकनीकी के विकास के साथ-साथ विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं का भी उत्थान हो सके। यदि हम नई शिक्षा नीति पर गौर करें तो पायेंगे कि इस स्थिति को बेहतर करने का प्रयास किया गया है तथा शिक्षा को स्थानीय अथवा मातृभाषा के माध्यम से छात्रों तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है।  

नई शिक्षा नीति में इस बात को रेखांकित किया गया है कि अधिकतर उच्चतर शिक्षण संस्थानों तथा उच्चतर शिक्षा के और अधिक कार्यक्रमों में मातृभाषा या स्थानीय भाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में उपयोग किया जाएगा या इन कार्यक्रमों को द्विभाषी रूप में चलाया ताकि शिक्षा की पहुँच दूर दूर तक हो सके।

गांधी जी का यह भी मानना था कि शिक्षा केवल डिग्री पाने या सरकारी बाबू बनने का माध्यम नहीं होना चाहिए। उनके मतानुसार शिक्षा के माध्यम से कौशल विकास का किया जाना चाहिए जिससे लोग पढ़े-लिखे बेरोजगार बनने की बजाय स्वरोजगार कर सकें और दूसरों को भी नौकरी देने में सक्षम होकर राष्ट्र निर्माण में उसकी प्रगति में सहभागिता सुनिश्चित कर सकें।

इक्कीसवीं सदी में पारंपरिक कौशल के अतिरिक्त वैज्ञानिक एवं तकनीकी कौशल भी अपरिहार्य है। जिसमें न सिर्फ पारंपरिक कौशल का आधुनिकीकरण शामिल है अपितु कम्प्यूटर व सूचना तकनीकी (इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी) तथा अन्य क्षेत्रो में भी कौशल विकास की आवश्यकता है। इसे ध्यान में रख कर नई शिक्षा नीति में शिक्षा एवं शिक्षण के क्षेत्र में गांधीवादी सोच को विस्तार दिया गया है। ताकि गुणकारी समग्र शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों में ज्ञान भरने के साथ-साथ बहुआयामी कौशल तथा माननीय मूल्यों को भी विकसित किया जा सके।

जिस देश ने चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट, वाराहमिहिर,  भास्कराचार्य, चाणक्य, पाणिनि, मैत्रेई, पतंजलि, गार्गी एवं थिरवलूर जैसे विद्वान दिए। उस देश में पश्चिमी सोच पर आधारित शिक्षा व्यवस्था एक धब्बा थी। जिसे मिटाने का प्रयास किया गया है तथा नई शिक्षा नीति में प्राचीन सनातन भारतीय ज्ञान, संस्कृति तथा महान परंपराओं को समुचित स्थान दिया गया है। जोकि महात्मा गांधी के स्वप्न को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण एवं सराहनीय कदम है।

प्राचीन भारत के इन विद्वानों ने गुरु शिष्य की परंपरा का सदियों तक निर्वहन किया। जो कि कालांतर में विकृति होती चली गयी। अतः नई शिक्षा नीति में इन मूल्यों की पुनर्स्थापना हेतु शिक्षकों  को केंद्र में रखकर समुचित बदलाव किए गए हैं। ताकि शिक्षक एवं विद्यार्थियों के मध्य व्यावसायिक संबंध होने के स्थान पर आत्मीयता से भरपूर  शैक्षणिक संबंध हों तथा छात्रों का सर्वांगीण विकास हो सके। साथ ही शिक्षक भी समाज में वही सम्मानजनक उन्हें प्राप्त कर सकें जो पूर्वजों को मिला करता था।

तब नये बदलावों को समाहित किये नई शिक्षा नीति शैक्षणिक परिदृश्य को सकारात्मक रूप से बदल कर एक उपयुक्त वातावरण तैयार करेगी। अस्तु,  नई शिक्षा नीति से उत्पन्न विद्यार्थी बेहतर इंसान एवं कौशल से परिपूर्ण नागरिक बनाकर गांधी जी कीे शिक्षा संबंधी सोच पर खरे उतरेंगे।
जय हिंद ।

 

रिपोटर :- चंद्रकांत सी पूजारी

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