जानिए कब हो रहा है शारदीय नवरात्र 2020 का प्रारंभ, शुभ मुहूर्त, घट स्थापना और पूजा विधि की संपूर्ण जानकारी :-

लेखिका :

गरिमा सिंह अजमेर,राजस्थान

प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष नवरात्रों का प्रारम्भ और कलश स्थापन  का पर्व आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से है।  
 माँ “जगज्जननी की अर्चना का सबसे प्रामाणिक व श्रेष्ठ ग्रन्थ “दुर्गा सप्तशती” है। जिसमें सात सौ श्लोकों के माध्यम से देवी से प्रार्थना की गई है,इस पाठ के प्रभाव मात्र से माँ साधकों को इच्छित फल देती हैं। ऐसे साधकों को जिनके पास कम समय हैं या वे स्वतः ही कम समय में पाठ सम्पन्न करना चाहते हैं तो सात सौ श्लोकों के स्थान पर “सप्तश्लोकी दुर्गा” का पाठ करके मनोवांछित फल हासिल कर सकते हैं। इस लेख में आप देवी के नौ रूपों की संक्षिप्त व्याख्या व पाठ का फल, पूजा का महत्व, पूजन सामाग्री ,  षोड़षोपचार की विधि, हवन, कुण्ड का विधान व हवन की सामाग्री सहित सभी वांछित विषयों को सार रूप में क्रमशः अध्ययन कर सकते हैं और देवी आदि शक्ति की आराधना वैदिक विधि से सम्पन्न कर अपने मनोवांछित फल को प्राप्त कर सकते हैं। इस वर्ष नवरात्रि का क्रम इस प्रकार है ।

नवरात्रि के प्रथम दिन घटस्थापना का शुभ मुहूर्त प्रात: 6 बजकर 23 मिनट से प्रात: 10 बजकर 12 मिनट तक है। घटस्थापना के लिए अभिजित मुहूर्त प्रात:काल 11:44 से 12:29 तक रहेगा।

शारदीय नवरात्रि की तिथियां

17 अक्टूबर 2020: नवरात्रि का पहला दिन, प्रतिपदा, कलश स्‍थापना, चंद्र दर्शन और शैलपुत्री पूजन.

18 अक्टूबर 2020: नवरात्रि का दूसरा दिन, द्व‍ितीया, बह्मचारिणी पूजन.
19 अक्टूबर 2020:  नवरात्रि का तीसरा दिन, तृतीया, चंद्रघंटा पूजन.

20 अक्टूबर 2020: नवरात्रि का चौथा दिन, चतुर्थी, कुष्‍मांडा पूजन.


21 अक्टूबर 2020: नवरात्रि का पांचवां दिन, पंचमी, स्‍कंदमाता पूजन.
22 अक्टूबर 2020: नवरात्रि का छठा दिन, षष्‍ठी, सरस्‍वती पूजन.

23 अक्टूबर 2020: नवरात्रि का सातवां दिन, सप्‍तमी, कात्‍यायनी पूजन.

24 अक्टूबर 2020: नवरात्रि का आठवां दिन, अष्‍टमी, कालरात्रि पूजन, कन्‍या पूजन.

25 अक्टूबर 2020: नवरात्रि का नौवां दिन, नवमी, महागौरी पूजन, कन्‍या पूजन, नवमी हवन, नवरात्रि पारण

26 अक्टूबर 2020: विजयदशमी या दशहरा

पूजा का संक्षिप्त एवं सरल विधान


माँ दूर्गा की पूजा में शुद्धता, संयम और ब्रह्मचर्य अति महत्वपूर्ण है। इस पूजन में कलश स्थापना राहुकाल, यमघण्ट काल में नहीं करनी चाहिए। नव दिन पर्यन्त घर व देवालय को विविध प्रकार के मांगलिक सुंगधित पुष्पों और विविध प्रकार के पत्तों से आलंकृति करना चाहिए। सर्वतोभद्र मण्डल, स्वास्तिक, नवग्रहादि, ओंकार आदि की स्थापना शास्त्रोक्त विधि से ही करना चाहिए। तथा स्थापित सभी देवी-देव समूहों का आवाह्न उनके “नाम मंत्रो” द्वारा करके, षोडषोपचार विधि से अर्चना करनी चाहिये।


इस पूजा मे नौ दिन तक अखण्ड ज्योति जलाने का विधान भी है, अतः साधकों को इस बात को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए। कि दीप हमारा कर्म साक्षी है, अतः उसे साक्षात् ब्रह्म का प्रतिरूप मानना चाहिए। अतः अखण्ड ज्योति में शुद्ध देसी घी, या गाय का देशी घी को प्रयोग में लनेा चाहिए। अखण्ड ज्योति को सर्वतोभद्र मण्डल के अग्निकोण में स्थापित करने का विधान होता है।

संक्षिप्त पूजन सामग्री का विवरण

रौली 250ग्राम, मौली-11 शुद्ध देशी गाय का घी पंचमेवा, पंचपात्र, कलश के लिए सोने, चाँदी, तांबे या मिट्टी का घड़ा, जो प्राप्त हो, अखण्ड ज्योति हेतु दीया, जनेऊ, सुपारी,पानके पत्ते, लौंग, इलायची, नारियल कच्चा,नारियल सूखा, अक्षत (चावल), गोलागिरी, चीनी बूरा, सुगन्धित धूप, ,केसर, श्रृंगार की सामग्री, साड़ी, दूध, दही, शहद, रंग-लाल, पीला, हरा, काला, आदि,पंचरत्न, पंचगब्य, पंचपल्लव-लाल पुष्प, अष्टगंध, कपूर, जौ, काले तिल, रूई, मीठा, 5 मीटर लाल व सफेद, कपड़ा, पांच प्रकार फल, ब्राह्मणों के लिए पंच वस्त्र और सोने, चाँदी या ताँबे के पात्र आदि। जौ बोने के लिए गंगाजी की रेता बैठने के लिए आसन जिसमें कपड़ा न लगा हो, ऊनी, या फिर मृग, बाघ चर्मादि का हो तो शुभ है।

नोटः हवन सामग्री पूर्णाहुति से दो दिन पहले ही रख लेना चाहिए।

निषेधः श्रीगणेश जी को तुलसी व दुर्गा को दुर्वा (हरी घास) चढ़ाने का विधान नहीं हैं।

पूजा का कृत्य प्रारम्भः– प्रातःकाल नित्य स्नानादि कृत्य से फुरसत होकर पूजा के लिए पवित्र वस्त्र पहन कर उपरोक्त पूजन सामग्री व श्रीदुर्गासप्तशती की पुस्तक ऊँचे आसन में रखकर, पवित्र आसन में पूर्वाविमुख या उत्तराभिमुख होकर भक्तिपूर्वक बैठे और माथे पर चन्दन का लेप लगाएं, पवित्री मंत्र बोलते हुए पवित्री करण, आचमन, आदि को विधिवत करें। तत्पश्चात् दायें हाथ में कुश आदि द्वारा पूजा का संकल्प करे। आज ही नवरात्री मे नवदुर्गा पूजन हेतु अपना स्थान सुरक्षित करे |

सभी प्रकार की कामनाओ हेतु

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यषो देहि द्विषो जहि।।

अगर आप को विवाह में अनावश्यक विलम्ब हो रहा है तो इस मंत्र का प्रयोग करते हुए पाठ करे

पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्। तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्।।


रोग से छुटकारा पाने के लिए

रोगानषेषानपहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।

षड़षोपचार पूजन करने की विधि

निम्न मंत्रों से तीन बार आचमन करें।

मंत्र- ॐ केशवाय नमः,ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः

तथा हृषिकेषाय नमः बोलते हुए हाथ धो लें।

आसन धारण के मंत्र- मंत्र-ऊँ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरू चासनम्।।


पवित्रीकरण हेतु मंत्र – मंत्र- ऊँ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षंतद्बाह्याभ्यन्तरं शुचि।।
चंदन लगाने का मंत्रः- मंत्र- ऊँ आदित्या वसवो रूद्रा विष्वेदेवा मरूद्गणाः। तिलकं ते प्रयच्छन्तु धर्मकामार्थसिद्धये।।

रक्षा सूत्र मंत्र – (पुरूष को दाएं तथा स्त्री को बांए हाथ में बांधे)

मंत्रः- ॐ येनबद्धोबली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।तेनत्वाम्अनुबध्नामि रक्षे माचल माचल ।।

दीप जलाने का मंत्रः- मंत्र- ॐ  ज्योतिस्त्वं देवि लोकानां तमसो हारिणी त्वया। पन्थाः बुद्धिष्च द्योतेताम् ममैतौ तमसावृतौ।।

संकल्प की विधिः- ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः, ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरूषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपराद्र्धे श्रीष्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे- ऽष्टाविंषतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे ………………..श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुकषर्मा अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतो……………….. आदि मंत्रो को शुद्धता से बोलते हुए शास्त्री विधि से पूजा पाठ का संकल्प लें।

प्रथमतः श्री गणेश जी का ध्यान, आवाहन, पूजन करें।

श्री गणेश मंत्रः- ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ। निर्विध्नं कुरू मे देव सर्वकायेषु सर्वदा।।

कलश स्थापना के नियम:-पूजा हेतु कलश सोने, चाँदी, तांबे की धातु से निर्मित होते हैं, असमर्थ व्यक्ति मिट्टी के कलश का प्रयोग करत सकते हैं। ऐसे कलश जो अच्छी तरह पक चुके हों जिनका रंग लाल हो वह कहीं से टूटे-फूटे या टेढ़े न हो, दोष रहित कलश को पवित्र जल से धुल कर उसे पवित्र जल गंगा जल आदि से पूरित करें। कलश के नीचे पूजागृह में रेत से वेदी बनाकर जौ या गेहूं को बौयें और उसी में कलश कुम्भ के स्थापना के मंत्र बोलते हुए उसे स्थाति करें। कलश कुम्भ को विभिन्न प्रकार के सुगंधित द्रव्य व वस्त्राभूषण अंकर सहित पंचपल्लव से आच्छादित करें और पुष्प, हल्दी, सर्वोषधी अक्षत कलश के जल में छोड़ दें। कुम्भ के मुख पर चावलों से भरा पूर्णपात्र तथा नारियल को स्थापित करें। सभी तीर्थो के जल का आवाहन कुम्भ कलश में करें।


आवाहन मंत्र करें: –ॐ कलषस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रूद्रः समाश्रितः। मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः।।


गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति । नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू ।।


षोडषोपचार पूजन प्रयोग विधि –

(1) आसन (पुष्पासनादि)-

ऊँ अनेकरत्न-संयुक्तं नानामणिसमन्वितम्। कात्र्तस्वरमयं  दिव्यमासनं  प्रतिगृह्यताम्।।


(2) पाद्य (पादप्रक्षालनार्थ जल)

ऊँ तीर्थोदकं निर्मलऽच सर्वसौगन्ध्यसंयुतम्। पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगृह्यताम्।।


(3) अघ्र्य (गंध पुष्प्युक्त जल)

ऊँ गन्ध-पुष्पाक्षतैर्युक्तं अध्र्यंसम्मपादितं मया।गृह्णात्वेतत्प्रसादेन अनुगृह्णातुनिर्भरम्।।


(4) आचमन (सुगन्धित पेय जल)

ऊँ कर्पूरेण सुगन्धेन वासितं स्वादु षीतलम्। तोयमाचमनायेदं पीयूषसदृषं पिब।।


(5) स्नानं (चन्दनादि मिश्रित जल)

ऊँ मन्दाकिन्याः समानीतैः कर्पूरागरूवासितैः।पयोभिर्निर्मलैरेभिःदिव्यःकायो हि षोध्यताम्।।


(6) वस्त्र (धोती-कुत्र्ता आदि)

ऊँ सर्वभूषाधिके सौम्ये लोकलज्जानिवारणे। मया सम्पादिते तुभ्यं गृह्येतां वाससी षुभे।।


(7) आभूषण (अलंकरण)

ऊँ अलंकारान् महादिव्यान् नानारत्नैर्विनिर्मितान्। धारयैतान् स्वकीयेऽस्मिन् षरीरे दिव्यतेजसि।।


(8) गन्ध (चन्दनादि)

ऊँ श्रीकरं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्। वपुषे सुफलं ह्येतत् षीतलं प्रतिगृह्यताम्।।


(9) पुष्प (फूल)


ऊँ माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्त्तितः।मयाऽऽहृतानि पुष्पाणि पादयोरर्पितानि ते।।


(10) धूप (धूप)


ऊँ वनस्पतिरसोद्भूतः सुगन्धिः घ्राणतर्पणः।सर्वैर्देवैः ष्लाघितोऽयं सुधूपः प्रतिगृह्यताम्।।


(11) दीप (गोघृत)


ऊँ साज्यः सुवर्तिसंयुक्तो वह्निना द्योतितो मया।गृह्यतां दीपकोह्येष त्रैलोक्य-तिमिरापहः।।


(12) नैवेद्य (भोज्य)

ऊँ षर्कराखण्डखाद्यानि दधि-क्षीर घृतानि च। रसनाकर्षणान्येतत् नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्।।


(13) आचमन (जल)


ऊँ गंगाजलं समानीतं सुवर्णकलषस्थितम्। सुस्वादु पावनं ह्येतदाचम मुख-षुद्धये।।


(14) दक्षिणायुक्त ताम्बूल (द्रव्य पानपत्ता)

 

ऊँ लवंगैलादि-संयुक्तं ताम्बूलं दक्षिणां तथा। पत्र-पुष्पस्वरूपां हि गृहाणानुगृहाण माम्।।

 

(15) आरती (दीप से)


ऊँ चन्द्रादित्यौ च धरणी विद्युदग्निस्तथैव च। त्वमेव सर्व-ज्योतींषि आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम्।।


(16) परिक्रमाः–

ऊँ यानि कानि च पापानि जन्मांतर-कृतानि च। प्रदक्षिणायाः नष्यन्तु सर्वाणीह पदे पदे।।

भागवती एवं उसकी प्रतिरूप देवियों की एक परिक्रमा करनी चाहिए।यदि चारों ओर परिक्रमा का स्थान न हो तो आसन पर खड़े होकर दाएं घूमना चाहिए।


क्षमा प्रार्थना:–

ऊँ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि भक्त एष हि क्षम्यताम्।। अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम। तस्मात्कारूण्यभावेन भक्तोऽयमर्हति क्षमाम्।। मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं तथैव च। यत्पूजितं मया ह्यत्र परिपूर्ण तदस्तु मे।।


ऊँ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पष्यन्तु मा कष्चिद् दुःख-भाग्भवेत् ।।

(सभी सुखी हों, सभी निरोग हों, सभी सर्वत्र कल्याण ही कल्याण देखें एवं कोई भी कहीं दुख का भागी न हो।)

हवन सामग्री क संक्षिप्त विवरणः-

गुगल, गिलौह जौ, तिल काले,, जटामासी, शक्कर, हवन सामग्री, समुद्री झाग, छायापात्र, पूर्णपात्र, ब्रह्मण वस्त्र, नवग्रह समिधा, चावल, देषी घी, केसू के फूल, बेलगिरी, अनारदाना, चंदन बुरादा, कमल का फूल, काली मिर्च, बादाम, पंचमेवा, कमल गट्टा, नीला थोथा, मोती, मूंगा, चांदी का सिक्का, पालक, गन्ना, खीर, हलवा, मिश्री, मक्खन, भोजपत्र, दूर्वा, अगर, तगर, सतावर, कपूर, आदि।


हवन कुण्ड निर्माण विधि:–

विविध प्रकार के अनुष्ठानों में भिन्न-2 प्रकार के हवन कुण्डों का निर्माण जरूरत के हिसाब से किया जाता है जैसे-देवी-देवताओं की प्रतिष्ठा, शांति, एवं पुष्टि कर्म, वर्षा हेतु, ग्रहों की शांति, वैदिक कर्म और अनुष्ठान के अनुसार एक पांच, सात और अधिक हवन कुण्डों का निर्माण होता है। जैसे- वृत्तकार, चैकोर, पद्माकार, अर्धचंद्राकार, योनिकी, चंद्राकार, पंचकोण, सप्त, अष्ट और नौ कोणों वाला आदि। सामान्यतः चैकोर कुण्ड का ही प्रयोग होता है, जो त्रि मेंखला से युक्त होता हैं तथा जिनके ऊपरी मध्य भाग में योनि होती है जो पीपल के पत्ते के समान होती है। उसकी ऊँचाई एक अंगुल और चैड़ाई आठ अंगुल तक विस्तारित करनी के नियम हैं। ऐसे कुण्ड जो ज़मीन मे खोदकर बनायें जाते हैं या पहले से निर्मित हैं उन्हें हवन के दो तीन दिन पूर्व सुन्दर और स्वच्छ कर लेना चाहिए। ऐसे कुण्ड जिनमें दरारें हों,कीड़े या चींटी आदि से युक्त हो जल्दबाजी में ऐसे कुण्ड में हवन कदापि न करें, इससे पुण्य की जगह पाप होगा और बिना वैदिक उपचारों के जो हवन किया जाता है उसे दैत्य प्राप्त करते हैं।

समिधा:- जिसे हम लकड़ी कहते हैं, उसे प्रयोग में लाने से पहले धूप में सुखा लें वह पवित्र और कीट आदि चिंटियों से युक्त नहीं हों यह निश्चित होने पर ही उन्हें प्रयोग में लें, अन्यथा उन्हें त्याग दें।

सम्पूर्ण वैदिक विधि का पालन करते हुए पूजा सम्पन्न करें, तद्पश्चात् प्रसादादि वितरित कर स्वयं प्रसाद पाएं।

उपर्युक्तानुसार नवरात्री मे विधि विधान से पूजा कर माँ भगवती की असीम कृपा प्राप्त कर सकते हैं| “कलीचंडो विनायकः” कलियुग अर्थात वर्तमान युग मे माँ भगवती एवं गणेश जी की प्रार्थना पूजा अत्यंत प्रभावी मानी गयी है | अतः आप भी श्रद्धा पूर्वक माँ भगवती की पूजा कर माता की कृपा प्राप्त करे |

 

रिपोटर :चंद्रकांत  पूजारी
 

 

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