शैलेंद्र सिंह की शहादत पर गर्व करने वाले जरा सोचें! कैसे मिलेगा शहीद के 7 साल की अबोध बेटे को लाड-दुलार!

शैलेंद्र सिंह की शहादत पर गर्व करने वाले जरा सोचें!
कैसे मिलेगा शहीद के 7 साल की अबोध बेटे को लाड-दुलार!
कैसे कटेगी मात्र 10 साल में ही विधवा हो गई चांदनी की जिंदगी!

 

आइए जाने-शहीद शैलेंद्र प्रताप सिंह की जिंदगी..

रायबरेली: कश्मीर के सोपोर में शहीद हुए  रायबरेली के शैलेंद्र प्रताप सिंह दस वर्ष पहले सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे। शैलेंद्र सिंह के पिता नरेंद्र बहादुर सिंह आईटीआई में कार्यरत थे। दस साल पहले वह आईटीआई से सेवानिवृत्त हुए थे। डलमऊ क्षेत्र के अल्हौरा गांव के रहने वाले नरेंद्र ने शहर की मलिकमऊ कॉलोनी में अपना आवास बना लिया। पूरे परिवार के साथ वह यहीं रह रहे हैं। गांव भी आना-जाना लगा रहता है। तीन बहनों के बीच शैलेंद्र अकेले भाई थे। दो बहनों-शीलू और प्रीति की शादी हो चुकी हैं लेकिन सबसे छोटी बहन ज्योति पिता-मां के साथ ही रहती है।

घरवाले कहते हैं कि शैलेंद्र में देश सेवा का जज्बा शुरू से ही था। उसने सेना में भर्ती होने का संकल्प ले लिया था। नौ साल पहले ही उसने सेना ज्वाइन की। आतंकवादी हमले में शैलेंद्र के शहीद होने की दुखद सूचना सेना के अधिकारियों ने दोपहर लगभग दो बजे फोन से घरवालों को दी।

दस दिन बाद ही घर आने वाला था शैलेंद्र


सोपोर (कश्मीर) में आतंकवादी हमले में शहीद हुए शैलेंद्र सिंह का सोपोर से रामपुर तबादला हो चुका था। दस दिन बाद 15 अक्टूबर को वह घर आने वाला था। ट्रांसफर के चलते उसे दो माह की छुट्टी मिली थी। शहादत की सूचना मिलने के बाद घर पहुंचे मौसा ने बताया कि दस दिन बाद ही वह घर आने वाला था। उसे दो माह की ट्रांसफर लीव मंजूर हुई थी। घरवाले भी खुश थे कि शैलेंद्र अब कुछ दिन यहां हम लोगों की बीच रहेगा।

धूमधाम से करना चाहते थे छोटी बहन की शादी

शहीद शैलेंद्र सिंह फरवरी माह में अवकाश पर घर आए थे। छोटी बहन की शादी की तैयारियों के लिए ही शहर के मलिकमऊ कॉलोनी स्थित घर पर कुछ काम करवाया था। कुछ काम छूट गया था। कह गए थे कि अगली बार जब अवकाश पर आएंगे तब काम पूरे कराएंगे। छोटी बहन के लिए लड़का देखने आदि की प्रक्रिया भी चल रही थी। ज्ञानेंद्र ने बताया कि दो-तीन जगह बात भी चली लेकिन बात बन नहीं पाई थी। शैलेंद्र छोटी बहन की शादी धूमधाम से करना चाहते थे। शहादत के बाद छोटी बहन ज्योति दहाड़े मारकर रोती हुई कह रही है-‘अब बिना भइया के कैसे जीवन बीतेगा?’

चांदनी के जीवन में हमेशा के लिए छा गया अंधेरा


सीआरपीएफ में नौकरी लगने के बाद शैलेंद्र सिंह की शादी सलोन क्षेत्र के करहिया बाजार के पास एक गांव में हुई थी। पत्नी चांदनी सिंह और सात साल का इकलौता बेटा तुषार सिंह यहीं दादी-बाबा के पास रहते थे। तुषार लखनऊ पब्लिक स्कूल में कक्षा दो में पढ़ता है। शैलेंद्र के शहीद होने से सात साल का यह बेटा अनाथ हो गया। सोमवार की भरी दोपहर में पत्नी चांदनी के जीवन में हमेशा के लिए अंधेरा छा गया। पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल है। बेटा अभी कुछ समढ ही नहीं पा रहा है। घर के सभी लोगों को रोते देखकर वह भी बीच-बीच में रोने लगता है।

बचपन से ही था देशसेवा का जज्बा

शहीद शैलेंद्र के मौसेरे भाई ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं कि बचपन से ही शैलेंद्र में देशसेवा का जज्बा था। उन्होने सेना या सीआरपीएफ में शामिल होकर देशसेवा का सपना देख लिया था। कलसहा गांव के रहने वाले ज्ञानेंद्र बताते हैं कि जब भी छुट्टी पर आते थे तब हम लोगों को सेना में भर्ती होने की तैयारी करने को प्रेरित करते रहते थे।

 

 

रिपोर्टर: उपेन्द्र बहादुर सिंह

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