इस सलीक़े से उनसे गिला कीजिये- ख़ुमार बाराबंकवी
आज के साहित्य में हम आपके लिए ले कर आये हैं उर्दू के बाक़माल शायर ख़ुमार बाराबंकवी की दो ग़ज़लें जो छेड़ देंगी आपके दिल के तार, तो आइये देर किस बात की। लीजिये पेश-ए-ख़िदमत है ग़ज़ल "हुस्न जब मेहरबाँ हो तो क्या कीजिये" और "इक पल में इक सदी का मज़ा हमसे पूछिए"-
हुस्न जब मेहरबाँ हो तो क्या कीजिये,
इश्क़ के मग्फ़िरत की दुआ कीजिये।
इस सलीक़े से उनसे गिला कीजिये,
जब गिला कीजिये हँस दिया कीजिये।
दूसरों पर अगर तब्सिरा कीजिये,
सामने आइना रख लिया कीजिये।
आप सुख से हैं तर्क-ए-तअ'ल्लुक के बाद,
इतनी जल्दी न ये फैसला कीजिये।
ज़िंदगी कट रही है बड़े चैन से,
और ग़म हों तो वो भी अता कीजिये।
कोई धोका न खा जाये मेरी तरह,
ऐसे खुल के न सबसे मिला कीजिये।
अक़्ल-ओ-दिल अपनी अपनी कहें जब 'ख़ुमार'
अक़्ल की सुनिए दिल का कहा कीजिये।।
इक पल में इक सदी का मज़ा हमसे पूछिए,
दो दिन में ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए।
भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम,
किस्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिए।
आग़ाज़-ए-आशिक़ी का मज़ा आप जानिए,
अंजाम-ए-आशिक़ी का मज़ा हमसे पूछिए।
जलते दीयों में जलते घरों जैसी ज़ौ कहाँ,
सरकार रौशनी का मज़ा हमसे पूछिए।
वो जान ही गए कि हमें उनसे प्यार है,
आँखों की मुख़बिरी का मज़ा हमसे पूछिए।
हँसने का शौक़ हमको भी था आपकी तरह,
हँसिये मगर हँसी का मज़ा हमसे पूछिए।
हम तौबा कर के मर गए बेमौत ऐ 'ख़ुमार'
तौहीन-ए-मय-कशी का मज़ा हमसे पूछिए।।
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