मौत आ गयी कि दोस्त का पैगाम आ गया- “जिगर मुरादाबादी”

हुस्न और इश्क़ का जिक्र आते ही जिगर मुरादाबादी का नाम बेसाख्ता ज़बान पर आ जाता है। मोहब्बत में महरूमी और मायूसी का सामना करने वाले जिगर की शायरी में ये एहसास शिद्दत से बयां होतें हैं। अली सिकन्दर ‘जिगर’ मुरादाबादी का जन्म 6 अप्रैल 1890 में मुरादाबाद में हुआ। आपके पुर्वज मौलवी मुहम्मद समीअ़ दिल्ली निवासी थे और शाहजहां बादशाह के शिक्षक थे। किसी कारण से बादशाह के कोप-भाजन बन गए। अतः आप दिल्ली छोड़कर मुरादाबाद जा बसे थे। ‘जिगर’ के दादा हाफ़िज़ मुहम्मदनूर ‘नूर’ और पिता मौलवी अली नज़र ‘नज़र’ भी शायर थे। ‘जिगर’ पहले मिर्ज़ा ‘दाग’ के शिष्य थे। बाद में ‘तसलीम’ के शिष्य हुए। इस युग की शायरी के नमूने ‘दागेंजिगर’ में पाये जाते हैं। आपके पढ़ने का ढंग इतना दिलकश और मोहक था कि सैंकड़ो शायर उसकी कॉपी करने का प्रयत्न करते थे लेकिन जिगर-जिगर रहे। जिगर का इंतकाल 9 सितंबर 1960 को हुआ। आज सी न्यूज़ भारत के साहित्य में पेश है जिगर मुरादाबादी की कलम से निकले कुछ अशआर...।

 

दिल को सुकून रूह को आराम आ गया,
मौत आ गयी कि दोस्त का पैगाम आ गया।

जब कोई ज़िक्रे-गर्दिशे-अय्याम आ गया,
बेइख्तियार लब पे तिरा नाम आ गया।

दीवानगी हो, अक्ल हो, उम्मीद हो कि यास,
अपना वही है वक़्त पे जो काम आ गया।

दिल के मुआमलात में नासेह ! शिकस्त क्या,
सौ बार हुस्न पर भी ये इल्ज़ाम आ गया।

सैयाद शादमां है मगर ये तो सोच ले,
मै आ गया कि साया तहे - दाम आ गया।

दिल को न पूछ मार्काए - हुस्नों - इश्क़ में,
क्या जानिये गरीब कहां काम आ गया।

ये क्या मुक़ामे-इश्क़ है ज़ालिम कि इन दिनों,
अक्सर तिरे बगैर भी आराम आ गया।।

हाँ किस को है मयस्सर ये काम कर गुज़रना,
इक बाँकपन से जीना इक बाँकपन से मरना।

दरिया की ज़िन्दगी पर सदक़े हज़ार जानें,
मुझ को नहीं गवारा साहिल की मौत मरना।

साहिल के लब से पूछो दरिया के दिल से पूछो,
इक मौज-ए-तह-नशीं का मुद्दत के बाद उभरना।

जो ज़ीस्त को न समझे जो मौत को न जाने,
जीना उन्हीं का जीना मरना उन्हीं का मरना।।

बराबर से बचकर गुज़र जाने वाले,
ये नाले नहीं बे-असर जाने वाले।

मुहब्बत में हम तो जिये हैं जियेंगे,
वो होंगे कोई और मर जाने वाले।

मेरे दिल की बेताबियाँ भी लिये जा,
दबे पाओं मूँह फेर के जाने वाले।

नहीं जानते कुछ कि जाना कहाँ है,
चले जा रहे हैं मगर जाने वाले।

तेरे इक इशारे पे साकित खड़े हैं,
नहीं कह के सब से गुज़र जाने वाले।।

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