यूपी का शौर्य नगर “महोबा”, आल्हा-ऊदल की भूमि||

भारतवर्ष के ह्रदय स्थल पर विराजित भूमि का नाम है “उत्तर प्रदेश”, जिससे होकर गुज़रता है दिल्ली का रास्ता। इस उत्तर प्रदेश के विभिन्न नगरों की संस्कृति, सभ्यता, साहस और शौर्य की गाथाएँ जन-जन में प्रचलित हैं। उन्हीं ऐतिहासिक गाथाओं को हम बयाँ करते हैं “जय घोष” के “शौर्य-नगर” में। आज हम जिस शौर्य नगर की गाथा आपको सुनाने जा रहे हैं, वो उत्तर प्रदेश के एक ऐसे प्रान्त का हिस्सा है जिसे वीरों की भूमि कहा जाता है, उसका नाम है बुंदेलखंड। और उस शौर्य नगर का नाम है “महोबा”। जी हाँ वही महोबा जिसके वीर दो वीर आल्हा और ऊदल की गाथाएँ आज भी लोकगीतों में ख़ूब गाए और सराहे जाते हैं।
महोबा उत्तर प्रदेश के दक्षिणी भाग का वो नगर है जिसे कभी महोत्सव नगर कहा जाता था क्योंकि यहाँ विभिन्न महोत्सवों का आयोजन हुआ करता था। आज का महोबा कभी चंदेल राजपूतों की राजधानी हुआ करता था। चंदेल वंश के अंतिम प्रमुख शासक थे, परमर्दिदेव जिन्हें राजा परमाल के नाम से भी जाना जाता है। हिंदी साहित्य में आदिकाल के कवि जगनिक ने अपने रासो साहित्य “परमाल रासो” में राजा परमाल के यश और वीरता का वर्णन किया है।  राजा परमाल के ही शासनकाल में दो ऐसे वीर हुए हैं जिनकी बहादुरी और वीरता की गाथा महोबा का बच्चा-बच्चा जानता और गाता है। ये वीर थे आल्हा और ऊदल। दोनों भाइयों आल्हा और ऊदल का जन्म 12 विक्रमी शताब्दी में बुंदेलखंड के महोबा के दशरजपूरवा गांव हुआ था। बचपन से ही शास्त्र ज्ञान और युद्ध कौशल की प्रतिभा दोनो भाइयों में नजर आने लगी थी। इनके ज्ञान और बल को देखते हुए इन्हें युधिष्ठिर और भीम के अवतार के रुप में भी मान्यता दी जाती है। आल्हा-ऊदल की गाथा कवि जगनिक की रचना “आल्हखंड” में दोनों वीरों को दसराज और दिवला का पुत्र बताया गया है। दसराज चंदेल वंश के राजा परमाल के सेनापति थे। ऊदल आल्हा से बारह साल छोटे थे। कहा जाता है कि आल्हा के पिता की हत्या के बाद ऊदल का जन्म हुआ था।
 
आल्हा और ऊदल की आखिरी लड़ाई दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान से हुई थी। पृथ्वीराज चौहान भी बहादुर और निडर योद्धा थे। पृथ्वीराज ने बुंदेलखंड को जीतने के उद्देश्य से ग्यारहवीं सदी के बुंदेलखंड के तत्कालीन चंदेल राजा परमर्दिदेव पर चढ़ाई की थी। आल्हा-उदल राजा परमाल के मंत्री थे। इतिहास में पता चलता है कि पृथ्वीराज और दोनों भाई आल्हा-ऊदल के बीच में बैरागढ़ मे बहुत भयानक युद्ध हुआ। इस युद्ध में आल्हा का भाई ऊदल मारा गया।
 
आल्हा अपने छोटे भाई ऊदल की वीरगति की खबर सुनकर आपा खो बैठे और पृथ्वीराज चौहान की सेना पर मौत बनकर टूट पड़े। बताया जाता है कि उस वक्त आल्हा के सामने जो आया सो मारा गया। इस भीषण युद्ध के दौरान पृथ्वीराज और आल्हा आमने सामने आ गए। दोनों में युद्ध हुआ और पृथ्वीराज चौहान बुरी तरह घायल हो गए। आल्हा ने अपने भाई ऊदल की मौत का बदला पृथ्वीराज चौहान को पराजित करके लिया। हालांकि माना जाता है कि आल्हा ने अपने गुरु गोरखनाथ के कहने पर पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान दे दिया था। यह युद्ध आल्हा के जीवन का आख़िरी युद्ध था। इसके बाद आल्हा ने संन्यास ले लिया और शारदा मां की भक्ति में लीन हो गए।

Leave a Reply



comments

Loading.....
  • No Previous Comments found.