अखिलेश यादव की 'विजय यात्रा' का रथ पहुंच पायेगा यूपी के सिंहासन तक ?

उत्तर प्रदेश में चार महीने बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश बढती जा रही है . जहाँ बीजेपी अपने पिछले रिकॉर्ड को दोहराने की कवायद में जुटी है तो वहीँ विपक्षी दल सत्ता में वापसी के लिए हाथ पैर मार रहे हैं. इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश में अपनी खोई हुई राजनीतिक जनाधार की तलाश में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष  अखिलेश यादव  विजय यात्रा निकाल चुके हैं. मतलब दोबारा उत्तर प्रदेश की राजनीति में विजय होना चाहते हैं. तो आइये जानते इस खास रिपोर्ट में क्या इस बार अखिलेश यादव की 'विजय यात्रा' का रथ पहुंच पायेगा यूपी के सिंहासन तक ?

देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की सत्ता पाने के लिए सभी पार्टियाँ अपने अपने तरीके से सत्ता पाने में जुट गई ...सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी मंगलवार को विजय यात्रा के जरिये अपने चुनाव अभियान का बिगुल बजा दिया है. उनकी यात्रा लोगों का मिज़ाज बदलने में किस हद तक कामयाब होगी, ये तो चुनाव नतीजे ही बताएंगे लेकिन इतना तय है कि लखीमपुरी खीरी की घटना के बाद प्रियंका गांधी की सक्रियता ने जिस तरह से बाकी विपक्ष को पीछे धकेल दिया, उसने अखिलेश को भी फिक्रमंद कर दिया था. शायद यही कारण है कि उन्होंने सपा के चुनाव अभियान को शुरू करने में देर नहीं लगाई.

हालांकि यूपी की सियासी तस्वीर पांच साल पहले से बिल्कुल अलग है क्योंकि इस बार कांग्रेस का हाथ साइकिल के साथ नहीं है और दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. साल 2017 में सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था और पूरे राज्य में राहुल गांधी व अखिलेश यादव की तस्वीर वाले होर्डिंग्स लगाकर नारा दिया गया था- "यूपी को यह साथ पसंद है." लेकिन जनता को उस जोड़ी का साथ पसंद नहीं आया और उसने बीजेपी को सत्ता में लाकर दोनों पार्टियों का लगभग सूपड़ा ही साफ कर दिया था. उस चुनाव में हिंदुत्व के रथ पर सवार योगी आदित्यनाथ के आक्रामक प्रचार के दम पर बीजेपी को 312 सीटें मिली थी और अपने बूते पर ही तीन चौथाई बहुमत हासिल किया था. तब सपा-कांग्रेस गठबंधन को 54 और मायावती की बीएसपी को महज 19 सीटें ही मिल पाई थीं.

अखिलेश के लिए इस बार का सियासी मुकाबला ज्यादा कांटों भरा इसलिये भी है कि अब बीजेपी और बीएसपी के साथ कांग्रेस से भी उनकी टक्कर होनी है. हालांकि यही बात कांग्रेस पर भी लागू होती है क्योंकि उसे भी उन दोनों के अलावा इस बार सपा से भी दो-दो हाथ करने होंगे. हालांकि कांग्रेस को लगता है कि प्रियंका के तीखे तेवरों ने पार्टी कार्यकर्ताओं में एक नई जान फूंकने का काम किया है जिसके कारण पार्टी की हालत पहले से बहुत ज्यादा सुधरी है और चुनाव नजदीक आते-आते ये स्थिति और भी अधिक मजबूत होती जायेगी.
वहीँ अखिलेश को न तो राजनीति का कच्चा खिलाड़ी मान सकते हैं और न ही ये कह सकते हैं कि उन्हें अपने सियासी विरोधियों की ताकत का अहसास ही न हो. पिछले दस दिनों में कांग्रेस के बढ़ते हुए जनाधर का अंदाज़ा उन्हें लग चुका है और शायद इसीलिए अब उन्होंने योगी सरकार के अलावा कांग्रेस पर भी निशाना साधना शुरू कर दिया है. कानपुर से शुरु की गई अपनी विजय यात्रा के दौरान उन्होंने मीडिया के आगे साफ कर दिया कि प्रियंका गांधी के एक्टिव होने से सपा को कोई नुकसान नहीं होगा. उनका कहना था कि बीजेपी और कांग्रेस, दोनों में कोई खास फर्क है नहीं है और दोनों की ही नीतियां लगभग एक जैसी ही हैं.

जहाँ एक तरफ कांग्रेस और बीएसपी हिंदुत्व के साथ आगे बढ़ रही है ...जहाँ तह सब हिंदुत्व का चोला पहने नजर आ रहे है ... वही अब सपा ने अपने रथ को अपना हथियार बना लिया है ...अखिलेश यादव इसी रथ के सहरे सत्ता तक पहुचने की कोशिश तो कर रह लेकिन पहुच पायेगे या नहीं तो वही देखने वाली बात ये की क्या  अखिलेश यादव को सत्ता में आने से मायावती का तिरशूल रोक पायेगा या प्रियका गाँधी की झाड़ू रोकने में कामयाब हो पायेगी ..ये आने वाले विधानसभा चुनाव में साफ हो जाएगे ,...कौन सी पार्टी जनता के दिलो में अपनी जगह बनाती है ...  

 

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