सबके मन की मुराद पूरी करते है बाबा बेरासनाथ

सबके मन की मुराद पूरी करते है बाबा बेरासनाथ।

पंचकोश की कमी से नही बन सका काशी।

गुप्त काशी के नाम से प्रसिद्ध है बाबा बेरासनाथ धाम।

उत्तर वाहिनी गंगा के किनारे स्थित होने से और है महात्म।

काशी और प्रयागराज के मध्य स्थित भदोही जिला आध्यात्मिक लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। प्राचीन काल के कई धार्मिक स्थल यहां के आध्यात्मिक इतिहास की गवाही देते हैं। इन्हीं में से एक है गोपीगंज क्षेत्र का बेरासनाथ धाम। 100 वर्ष से अधिक पुराने इस धाम को कालीन नगरी के गुप्त काशी के नाम से जाना जाता है। देवाधिदेव महादेव के प्रिय मास सावन में इस धार्मिक स्थल का महात्म्य दूर-दूर तक फैल जाता है।

काशी-प्रयाग मध्य स्थित पवित्र क्षेत्र में काफी धार्मिक केंद्र हैं, जो अपने आप में कई ऐतिहासिक विरासत सहेजे हैं। गोपीगंज क्षेत्र के बेरासपुर गांव में एक ऐसा शिव मंदिर है, जहां की मान्यता काशी विश्वनाथ से कम नहीं है। भौगोलिक परिस्थितियों के कारण यह स्थल काशी तो नहीं बन सका, लेकिन गुप्त काशी के नाम से आज भी प्रचलित है। इस शिव मंदिर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ दर्शन-पूजन के लिए पहुंचती है। मंदिर में दूर-दूर के भक्त आते हैं। मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद भोलेनाथ पूरी करते हैं।

बेरासपुर गांव में स्थित यह प्राचीन शिव मंदिर बाबा बेरासनाथ धाम के नाम से क्षेत्र में प्रसिद्ध है। मंदिर की स्थापना के बारे में ग्रामीण बताते हैं कि इस मंदिर का शिवलिंग भी सेमराध नाथ की तरह एक कुंए में था। किंवदंतियों के अनुसार एक बार व्यासजी इसी जगह से जा रहे थे तो उनको यहां किसी दैवीय शक्ति की मौजूदगी का अहसास हुआ। फिर वे रुक गए और कुंए में स्थित शिवलिंग की पूजा करने लगे। और काफी दिन यहां रहकर पूजा पाठ किया फिर धीरे धीरे उसके बाद ग्रामीणों और क्षेत्र के लोगो ने भी पूजा पाठ शुरू कर दिया।

व्यास जी के कई वर्ष तक इस जगह रहने के कारण इस स्थान का नाम व्यासपुर पड़ा। लेकिन, कालांतर में गांव का नाम बेरासपुर हो गया। व्यासजी के चले जाने के काफी वर्ष बाद ग्रामीणों ने कुएं में स्थित शिवलिंग को बाहर निकाल कर स्थापित करने की इच्छा जताई लेकिन ऐसा न हो सका।

फिर कुछ वर्षों तक ग्रामीणों ने कुएं को पाटकर शिवलिंग के जगह ऊपर पूजा पाठ करना शुरू कर दिया। मगर मंदिर व्यवस्थित न होने से श्रद्धालुओं को दिक्कत होती थी। इसी को ध्यान में रखकर गांव के महामानव बाला प्रसाद पाल 'साहब' जो रेलवे में कार्यरत थे, ने बाबा बेरासनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया और इसको वर्ष 1938 में पूरा करा लिया। उस समय भारत-पाकिस्तान का बंटवारा नहीं हुआ था तो इस मंदिर के निर्माण में लाहौर से दर्जनों कारीगरों ने आकर कार्य किया। इसमें गांव के भी तमाम हिंदू-मुस्लिम लोगों ने काम किया था। खास बात यह है कि यह शिव मंदिर सेमराधनाथ, तिलेश्वरनाथ, पांडवानाथ, खाखरनाथ के बीच में स्थित है। जिससे यहां दर्शन पूजन करना महात्म से भरा है।

रिपोर्टर : गिरीश पाण्डेय

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