भारत देश और उसकी गौरव गाथा
लेख भाग पहला
भारत देश और उसकी गौरव गाथा
(प्रथम भाग )
लेखिका -दीप्ति डांगे, मुम्बई
"जब ज़ीरो दिया मेरे भारत ने
भारत ने मेरे भारत ने
दुनिया को तब गिनती आयी"
ये केवल एक गाना नही बल्कि भारत की वो गौरव गाथा है जिसपर हम सभी भारतीयों को गर्व करना चाहिए।ये वो भारत जो ईरान की छोर से लेकर इंडोनेशिया के छोर तक फैला हुआ था ज्ञान और वैभव में अद्वितीय, दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता वाला देश।वो देश जिसके बिना न धर्म की कल्पना की जा सकती है और न विज्ञान की।
भारत का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता के जन्म के साथ माना जाता हूं।सिंधु घाटी की सभ्यता जो विश्व का सबसे पहला ज्ञात स्थायी और मुख्य रूप से नगरीय आबादी का उदाहरण है। इसका विकास 3500 ई॰पू॰ से 1800 ई॰पू॰ तक हुआ ।सिंधु घाटी सभ्यता दक्षिण एशिया के पश्चिमी हिस्से में फली फूली, जिसे आज पाकिस्तान और पश्चिमी भारत कहा जाता है।
सिंधु घाटी की सभ्यता मूलत: एक शहरी सभ्यता थी और यहां रहने वाले लोग एक सुयोजनाबद्ध और सुनिर्मित कस्बों में रहा करते थे, जो व्यापार और खेती करते थे और व्यापार का एक मुख्य केंद्र हुआ करता था ।मोहन जोदाड़ो और हड़प्पा के भग्नावशेष दर्शाते हैं कि उस समय के ये शहर वैज्ञानिक दृष्टि से बनाए गए थे और इनकी देखभाल अच्छी तरह की जाती थी। यहां चौड़ी सड़कें और एक सुविकसित निकास प्रणाली थी। घर पकाई गई ईंटों से बने होते थे और इनमें दो या दो से अधिक मंजिलें होती थी। यहां के निवासियों को अनाज, गेहूं और जौ उगाने की कला ज्ञात थी, जिससे वे अपना मोटा भोजन तैयार करते थे। तांबे, कांसा एवं टिन से उपकरणों और शस्त्रों का निर्माण कर अन्य नगरों के साथ इसका विक्रय किया करते थे। घाटी के बड़े नगर हड़प्पा, लोथल, मोहनजोदड़ो और राखीगढ़ी थे
साक्ष्यों से पता चलता है कि उस समय वहां के निवासी ऊनी तथा सूती कपड़े पहनते थे। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों जिसमे भवनों के टूटे हुए हिस्से और अन्य वस्तुएं जैसे कि घरेलू सामान, युद्ध के हथियार, सोने और चांदी के आभूषण, मुहर, खिलौने, बर्तन आदि दर्शाते हैं कि इस क्षेत्र में लगभग पांच हजार साल पहले एक अत्यंत उच्च विकसित सभ्यता फली फूली।
वर्ष 1500 बी सी तक हड़प्पन सभ्यता का अंत हो गया। सिंधु घाटी की सभ्यता के नष्ट हो जाने का कारण लगातार बाढ़ और अन्य प्राकृतिक विपदाओं का आना जैसे कि भूकंप आदि।
भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जिसे सोने की चिड़िया के नाम से पुकारे जाने का गौरव प्राप्त है। क्योंकि, भारत प्राकृतिक संसाधनों, सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक दृष्टि से काफी समृद्ध राष्ट्र है, जिसने विश्व भर के शासकों और व्यापारियों को अपनी ओर आकर्षित किया। इतिहास के पन्ने आज भी भारत की समृद्धि को बयां करते हैं, तब चाहे वह हड़प्पा सभ्यता से संबंधित हों या फिर राजवंशी युग, मुगल काल या औपनिवेशिक भारत से संबंधित हों। 17वीं शताब्दी में भारत में व्यापार सोने के सिक्कों के माध्यम से किया जाता था। सिंधु घाटी सभ्यता के उत्खनन से अनेक सामग्रियां प्राप्त हुयी जिनमें विभिन्न धातुओं से (विशेष रूप से सोने से) तैयार आभूषण भी शामिल थे। इसके साथ ही आभूषण पहनी हुयी मूर्तियां भी प्राप्त हुई हैं। जो भारत की समृद्धि दर्शाता है।
इसी के कारण विदेशी आक्रान्ताओं और अंग्रेजों ने इस देश को अपना गुलाम बनाया और इस देश की अकूत संपत्ति यहां से लूटकर ले गये।भारत की भव्यता ओर समृद्धि निम्न उदाहरणों से पता चलता है-
मयूर सिंहासन की कीमत में दो ताज महल का निर्माण किया जा सकता था।लेकिन साल 1739 में फ़ारसी शासक नादिर शाह ने एक युद्ध जीतकर इस सिंहासन को हासिल कर लिया था।
कोहिनूर हीरे का बजन 21.6 ग्राम है और बाजार में इसकी वर्तमान कीमत 1 अरब डॉलर के लगभग आंकी जाती है। आजकल यह ब्रिटेन के महारानी के मुकुट की शोभा बढ़ा रहा है.
महमूद गजनी ने पेशावर के युद्ध में जयपाल को हराकर किले से 4 लाख सोने के सिक्के लूटे और एक सिक्के का वजन 120 ग्राम था. इसके अलावा उसने राजा के लड़कों और राजा जयपाल को छोड़ने के लिए भी 4.5 लाख सोने के सिक्के लिए थे। इस प्रकार उसने आज के समय के हिसाब से लगभग 1 अरब डॉलर की लूट सिर्फ राजा जयपाल के यहाँ की थी. जबकि इस समय भारत में जयपाल जैसे बहुत से धनी राजा थे।महमूद गौरी ने गुजरात स्थित सोमनाथ मंदिर लूट कर वह से 2 मिलियन दिनारों की लूट की जिसकी अनुमानित कीमत आज की तारीख में 45 करोड़ रुपये के लगभग बैठती है. उस समय के हिसाब से यह बहुत बड़ी लूट थी।
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल ने कुछ समय पहले एक आकलन में कहा था कि भारत में अभी भी 22,000 टन सोना लोगों के पास है जिसमें लगभग 3,000-4,000 टन सोना भारत के मंदिरों में अभी भी है. एक अनुमान के मुताबिक भारत के 13 मंदिरों के पास भारत के सभी अरबपतियों से भी ज्यादा धन है. यदि मंदिर के आंकड़ों के हिसाब से देखा जाये तो भारत कल भी सोने के चिड़िया था और आज भी है।
भारत के कुछ मंदिरों में इतना सोना रखा हुआ है कि कुछ राज्यों की पूरी आय भी मंदिरों की आय से कम है। अगर वर्ष 2018-19 के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि केरल सरकार की वार्षिक आय 1.03 लाख करोड़ है जो कि केरल के पद्मनाभस्वामी मंदिर के किसी गर्भ गृह के एक कोने में ही मिल जायेगा.
ईसा की पहली सदी से भारत विश्व का सबसे बड़ा विनिर्माण केंद्र था। जो स्थल मार्ग और जल मार्ग दोनो के द्वारा विश्व मे किया जाता था।विश्व की जो भी आवश्यकता थी वह भारत के पास पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध थी। भारत वस्त्र, मसाले, मोती, चीनी और लोहे के हथियारों का एक प्रमुख निर्यातक था। इसके अलावा कपास, चावल, गेहूं, चीनी जबकि मसालों में मुख्य रूप से हल्दी, काली मिर्च, दालचीनी, जटामांसी इत्यादि शामिल थे. इसके अलावा आलू, नील, तिल का तेल, हीरे, नीलमणि आदि के साथ-साथ पशु उत्पाद, रेशम, चर्मपत्र, शराब और धातु उत्पाद जैसे ज्वेलरी, चांदी के बने पदार्थ आदि का भी निर्यात करता था।
600 B.C के आस-पास महाजनपदों ने चांदी के सिक्के के साथ सिक्का प्रणाली शुरू की थी।
ग्रीक के साथ-साथ पैसे पर आधारित व्यापार को अपनाने वाले पहले देशों में भारत का स्थान अग्रणी था. लगभग 350 ईसा पूर्व, चाणक्य ने भारत में मौर्य साम्राज्य के लिए आर्थिक संरचना की नींव डाली थी।
मुगलों के शासन शुरू करने से पहले, भारत 1 A.D. और 1000 A.D. के बीच दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी।जब मुगलों ने 1526-1793 के बीच भारत पर शासन किया, इस समय भारत की आय (17.5 मिलियन पाउंड), ग्रेट ब्रिटेन की आय से अधिक थी. वर्ष 1600 AD में भारत की प्रति व्यक्ति GDP 1305 डॉलर थी जबकि इसी समय ब्रिटन की प्रति व्यक्ति GDP 1137 डॉलर, अमेरिका की प्रति व्यक्ति GDP 897 डॉलर और चीन की प्रति व्यक्ति GDP 940 डॉलर थी. इतिहास बताता है कि मीर जाफर ने 1757 में ईस्ट इंडिया कंपनी को 3.9 मिलियन पाउंड का भुगतान किया था.
1500 A.D के आस-पास दुनिया की आय में भारत की हिस्सेदारी 24.5% थी जो कि पूरे यूरोप की आय के बराबर थी। लेकिन जब अंगेज भारत को छोड़कर गए तो भारत का विश्व अर्थव्यवस्था में योगदान मात्र 2 to 3% रह गया था, लेकिन आज भारत विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।
रिपोटर : चंद्रकांत पूजारी
No Previous Comments found.