सर्वसमावेशी छात्रावास जनजातीय सशक्तिकरण के लिए आवश्यक-राठौड़, एकलव्य विधालय नवाचार का विस्तार हो-निर्मला बारेला

मध्यप्रदेश भोपाल  सर्वसमावेशी छात्रावास जनजातीय सशक्तिकरण के लिए आवश्यक-राठौड़ एकलव्य विधालय नवाचार का विस्तार हो-निर्मला बारेला

-सीसीएफ की 32 वी ई संगोष्ठी संपन्न- चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की 32 वी ई संगोष्ठी में आज जनजातीय समाज के बच्चों की मैदानी समस्याओं पर गंभीर चर्चा हुई।ई संगोष्ठी में विशेषज्ञ वक्ता के रूप में आदिमजाति कल्याण विभाग के संयोजक सौरभ राठौड़ एवं मप्र बाल सरंक्षण आयोग की पूर्व सदस्य श्रीमती निर्मला बारेला शामिल हुए।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए सौरभ राठौड़ ने कहा कि मजदूरी की प्रतिपूर्ति,पोषण आहार,चिकित्सा सुविधाएं सरकार से सतत उपलब्धता के बाद श्योपुर सहित प्रदेश के अन्य  जिलों में कुपोषण जीवन का स्थाई भाव बन गया है।सहरिया समाज में कुपोषण को लेकर आज भी जागरूकता का आभाव है।सरकार पोषण आहार,मध्यान्ह भोजन उपलब्ध कराती है लेकिन इस पूरक आहार को ही सहरिया मुख्य आहार समझते है औऱ अपने बच्चों को बगैर नियमित भोजन के स्कूल भेजते है।शिक्षा के मामले में भी मात्रात्मक शिक्षा को गुणात्मक शिक्षा में तब्दील किया जाना आज भी एक बड़ी चुनौती है।मप्र में आदिम जाति कल्याण विभाग की बच्चों के लिए75 योजनाएं संचालित है अगर इसमें महिला बाल विकास और स्वास्थ्य  विभाग की योजनाएं शामिल कर ली जाए तो यह संख्या150 से भी ऊपर है।इस सबके बाबजूद बुनियादी समस्या इस वर्ग में आत्मविकास के प्रति आत्मचेतना का आभाव है।
मप्र औऱ केंद्र सरकार की इन महत्वाकांक्षी योजनाओं से नर्मदांचल,महाकौशल के एक बड़े क्षेत्र में बदलाब भी आया है खासकर गौंड एवं भिलाला जनजाति के सामाजिक,शैक्षणिक,जीवन में सशक्तिकरण साफ नजर आने लगा है लेकिन सहरिया,बेगा,बारेला जैसी जातियां आज भी पिछड़ेपन की दयनीय स्थिति में ही है।
 श्री राठौड़ के अनुसार बच्चों के पाठ्यक्रम में कुपोषण प्राथमिक शिक्षा के साथ ही समाहित किया जाना चाहिए क्योंकि बेटियां जब अपने पाठ्यक्रम में इसे पढेंगी तो वह आगे चलकर एक मां की भूमिका में खुद को बेहतर तरीके से तैयार कर सकती है।पोषण प्रबोधन को कुपोषण से निबटने का दीर्धकालिक उपकरण बताते हुए उन्होंने मालवा निमाड़ में अनीमिया की समस्या के संदर्भ में एक शोध केंद्र की आवश्यकता पर भी जोर दिया है।
 श्री राठौड़ ने बताया कि वनवासी बच्चों के लिए अंग्रेजी का भय एक बडी समस्या है।इस भय को  त्रिभाषा फार्मूले से खत्म किया जा सकता है।  साथ ही
व्यक्तित्व विकास ,पर्सनेलिटी स्किल्स के लिए अलग से पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना आवश्यक है।श्री राठौड़ ने बताया कि
छात्रावास का परिवेश सर्वसमावेशी होनी चाहिये इसके लिए समरसता छात्रावास की आवश्यकता स्वयंसिद्ध है क्योंकि गांव के सहरिया बच्चे ब्लाक,जिला मुख्यालय आकर भी अपने ही जातिगत छात्रावासों में रहते है यह जातिगत पृथक्करण अंतत समाज मे अलगाव की जमीन  मजबूत कर  रहे है ।उन्होने कहा कि मप्र के बड़े हिस्से में अलगाव का जो काम  मिशनरीज औऱ मार्क्सवादी संगठन 70 साल में  नही कर पाए है उसे कुछ सामाजिक संगठन इन छात्रावासों के जरिये करने की व्यापक कोशिश में लगे हैं।इस अलगाव की नींव सरकारी योजनाओं के इस विशिष्टीकरण से भी निर्मित हुई है।उन्होंने कहा कि सर्वसमावेशी छात्रावास इसका सबसे बेहतर विकल्प है।
श्री राठौड़ ने बताया कि  जनजातीय समाज का राजनीतिक सशक्तिकरण तो आरक्षण के माध्यम से पर्याप्त हो रहा है लेकिन सामाजिक कुरीतियों के चलते आर्थिक सशक्तिकरण में यह वर्ग पिछड़ा हुआ है।वनवासी वर्ग में पति या पत्नी में से किसी एक की मृत्यु पर बच्चों को उसी अवस्था में छोड़कर  दूसरे विवाह में अन्यत्र चले जाते है और मजबूरी में बच्चों को अनाथ होने का दंश झेलना पड़ता है।
राज्य बाल सरंक्षण आयोग मप्र की सदस्य श्रीमती निर्मला बारेला ने कहा कि जन्म के साथ ही वनवासी बच्चों को गरीबी और कुपोषण का श्राप झेलना पड़ता है क्योंकि इस वर्ग की सामाजिक आर्थिक स्थिति आज भी आदर्श परवरिश के स्तर से काफी दूर है।मजरे टोलों में रहने वाले परिवारों के मामले तो बहुत ही गंभीर है क्योंकि राजस्व या वन ग्रामों के समान इन मजरों में कोई भी बुनियादी सुविधाएं आज भी उपलब्ध नही है।एकलव्य विद्यालय को सफल नवाचार निरूपित करते हुए श्रीमती बारेला ने कहाकि इस प्रयोग से वनवासी बच्चों में आत्मविश्वास का भाव जागृत हुआ है इसलिए प्रदेश के वनवासी इलाकों में इसका विस्तार किया जाना चाहिए।उन्होंने कहाकि अंग्रेजी का भय आज भी वनवासी समाज के बच्चों में अपरिमित है इसलिए प्राथमिक स्तर से ही त्रिभाषा फार्मूले पर अंग्रेजी का ज्ञान कराया जाना सशक्तिकरण की दिशा में निर्णायक साबित होगा।
ई संगोष्ठी को संबोधित करते हुए चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र शर्मा ने कहाकि जनजातीय समाज की कुछ समस्याएं विरासत में मिलती है लेकिन यह तथ्य भी अनुभव में आया है कि वनवासी वर्ग से सशक्त होकर समाज की मुख्यधारा में स्थापित हुए लोग अपने समाज मे ईमानदारी से काम नही कर पाते है जबकि आवश्यकता इस बात की है कि जनजातीय समाज के सफल व्यक्ति रोल मॉडल बनकर स्थानीय स्तर पर काम करें।ई संगोष्ठी को मंडला की  सीडब्ल्यूसीअध्यक्ष नीतू पांडे ने अपने अनुभव साझा किए।
संगोष्ठी का सफलतापूर्वक संचालन सीसीएफ़ के सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने व्यक्त किया।ई संगोष्ठी में मप्र के अलावा बिहार,झारखंड,उत्तराखंड,हिमाचल,छत्तीसगढ़,आसाम,मणिपुर,राजस्थान राज्यों के बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।

रिपोटर: चंद्रकांत सी पूजारी

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