शीर्षक- शिक्षित भारत में समस्याओं से घिरी शिक्षा को कब समाधान मिलेगा ?? (भाग-2) -लेखिका सुनीता कुमारी

 बिहार ( पूर्णियाँ ) :- हमारे देश के संविधान 21Aके तहत निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा पर बल दिया गया है।हमारे देश में अनिवार्य शिक्षा के तहत छः से चौदह  वर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य और निःशुल्क शिक्षा देने की समुचित व्यवस्था की गई  ताकि, भारत भर के सभी बच्चे चाहे वो किसी भी वर्ग से हो  विद्यालय में पढ़े ।
भारत के सभी राज्यों में कक्षा एक से कक्षा आठ तक मध्याह्न भोजन की व्यवस्था की गई है ताकि गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले बच्चे भी विद्यालय में ही भोजन करे और पढ़े।
सरकारी विद्यालय में  गरीबी रेखा की नीचे वाली व्यवस्था ने सरकारी विद्यालय को गरीब बना दिया है।
सरकार के द्वारा यह व्यवस्था तो की  गई की सभी बच्चे विद्यालय में पढ़े मगर विद्यालय में वैसी व्यवस्था ही नही हुई कि, सभी वर्ग के बच्चे एकसाथ समुचित शिक्षा ग्रहण कर सके।
दिल्ली को छोड़कर पूरे देश में सरकारी विद्यालय खस्ताहाल हैं,पुरे देश में दिल्ली ही अनिवार्य शिक्षा की अवधारणा को पूरा कर रहा है।
बाकी अन्य राज्यों में सरकारी विद्यालय में गरीब बच्चे ही पढ़ते है,बाकी सारे बच्चे मध्यवर्ग एवं उच्च वर्ग के बच्चे सभी बच्चे निजी विद्यालय पढ़ते है। सरकार की शिक्षानीति मुंह चिढ़ाती रही निजी विद्यालय फायदा उठाते रहे।
सरकारी शिक्षा नीति के तहत सभी बच्चों की शिक्षा की शिक्षा नीति एक जैसी न होकर अलग-अलग हो गई।
 जिससे निजी स्कूलो को फलने फूलने का मौका मिल गया एवं सरकारी विद्यालय की स्थिति दिन-ब -दिन खराब होती गई।
जबकि होना यह चाहिए था कि, सारी योजनाओं  के साथ-साथ  सभी बच्चों की शिक्षा  एक जैसी हो इसके लिए कठोर कानून का होना आवश्यक था ताकि ,सरकारी विद्यालय में गरीबी और अमीरी की सीमारेखा से परे सब बच्चे चाहे वो मंत्री के बच्चे हो या गरीब किसान के एक जैसी शिक्षा ग्रहण करते ।
जैसे आज निजी शिक्षा संस्थान फल फूल रहा है वैसे ही
सरकारी विद्यालय को फलना फूलना ,
चाहिए था।
सरकार की नीतियां सरकारी विद्यालय की सापेक्ष न होकर निरपेक्ष होती रही एवं निजी संस्थानों ने शिक्षा को व्यापार बना दिया।
शिक्षा के साथ सरकार तो क्या किसी भी व्यकि समाज समुदाय को कोई समझौता नही करना चाहिए।गरीबी रेखा के नीचे के बच्चे हो या मध्यवर्ग या उच्चवर्ग के भी बच्चों को भी सरकारी विद्यालय में ही पढ़ना अनिवार्य होना चाहिए था ।
निजी विद्यालय की जगह सरकारी विद्यालय को ही बढ़ावा देना चाहिए।
गरीब बच्चों के साथ साथ मध्यवर्ग एवं उच्चवर्ग के समुचित शिक्षा का भी ध्यान रखा जाना
चाहिए था ।
शिक्षा को सुदृढ़ और सर्व सुलभ बनाने के लिए बहुत से सुधार करने होंगे तभी शिक्षा प्रत्येक बच्चे तक आसानी से पहुंच सकेगा शिक्षा तथा शिक्षा से संबंधित समस्याओं के निराकरण के लिए कारगर कदम उठाने होंगे एवं सभी नियमों एवं अनुशासन को कठोरता से पालन करना होगा।
 शिक्षा को शिक्षा ही रहने दिया दीया जाना होगा तब शिक्षा की दशा एवं दिशा में सुधार होंगे ।
हमारे देश का सुनियोजित विकास हो पाएगा। बेरोजगारी की समस्या का समाधान हो पाएगा ।
युवाओं को एक नई दिशा मिलेगी इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि सरकार के द्वारा पूरे शिक्षण तंत्र पर मजबूत पकड़, हो ताकि कोई भी प्राइवेट संस्थान छात्रों का आर्थिक और बौद्धिक शोषण न कर सके ।छात्र तथा छात्र के माता-पिता पर अनावश्यक आर्थिक दवाब ना बना सके।
इसके लिए जरूरी कि,सरकार फिर से सरकारी विद्यालय पर पर ध्यान दे ,बुनियादी सुविधा के साथ- साथ समुचित शिक्षा पर ध्यान दे ताकी बच्चे फिर से सरकारी विद्यालय का रूख कर सके ,शिक्षा के व्यवसायीकरण को रोका जा सके,भारत को पूर्णरूपेण शिक्षित किया जा सके।

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