भक्ति , शक्ति और ऊर्जा के प्रतीक हैं हनुमान जी

रायपुर - हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार श्रीराम भक्त संकटमोचन हनुमान का प्राकट्य चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र और मेष लग्न के योग में हुआ था। इस बार आज देश भर में हनुमत प्राकट्योत्सव रवि योग के साथ हस्त एवं चित्रा नक्षत्र में बड़े धूमधाम से मनाया जायेगा। कुछ धार्मिक पंचांगों के अनुसार हनुमान का जन्मदिन अश्विन महीने के अंधेरे पखवाड़े में चौदहवें दिन (चतुर्दशी) को पड़ता है। हनुमान जन्मोत्सव  विभिन्न राज्यों में अलग-अलग तिथियों को मनायी जाती है। तमिलनाडु और केरल में यह माना जाता है कि हनुमान का जन्म मार्गाज़ी अमावस्या (अमावस्या के दिन) में हुआ था और यह दिन दिसंबर माह या जनवरी में आता है। आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में यह कृष्ण पक्ष में वैशाख महीने के दसवें दिन मनाया जाता है। कर्नाटक में यह शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को मनाया जाता है और ओड़िशा में, यह बैसाख महीने के पहले दिन (अप्रैल में ) मनाया जाता है। हनुमत प्राकट्योत्सव के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि भगवान विष्णु को रामावतार के समय सहयोग करने के लिये रूद्रावतार हनुमान जी प्रकट हुये थे। सीता खोज , रावण युद्ध , लंका विजय में हनुमान जी ने अपने प्रभु श्रीराम की पूरी मदद की , उनके जन्म का उद्देश्य ही राम भक्ति था। हनुमान जी सभी लोकों में सबसे शक्तिशाली हैं और उन्हें शक्ति और ऊर्जा के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। वे रामायण के प्रमुख पात्रों में से एक हैं जो भगवान राम के समर्पित शिष्य बने। रामायण में हनुमान की शक्ति और वीरता के बारे में कई संदर्भ मौजूद हैं। हनुमान के बिना , भगवान राम रावण के खिलाफ अपनी लड़ाई में सफल नहीं होते और सीता को उनकी कैद से नहीं निकाल पाते। इसलिये लोग हनुमान को भक्ति, शक्ति और ऊर्जा के प्रतीक के रूप में पूजते हैं और नकारात्मक शक्तियों को दूर करने के लिये जादुई शक्तियां रखते हैं। हनुमान जी को भगवान शिव का ग्यारहवां रुद्र अवतार माना जाता है और उन्हें शक्ति , ज्ञान , वीरता , बुद्धिमत्ता और निस्वार्थ सेवा के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। ऐसा माना जाता है कि वे जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला अमर हैं और सभी प्रकार के नकारात्मक प्रभावों या प्रलोभनों को रोकने की शक्ति रखते हैं। जिसने अपना जीवन भगवान राम और सीता के लिये समर्पित कर दिया। उसने बिना किसी उद्देश्य के कभी भी अपनी ताकत या वीरता नहीं दिखायी। हनुमान जी में बुराई के खिलाफ जीत हासिल करने और सुरक्षा प्रदान करने की क्षमता है।आज के दिन कई लोग उपवास भी रखते हैं। कहते हैं कि इस दिन बजरंगबली की विधि-विधान से पूजा करने वालों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। हनुमान की उपासना के लिये यह दिन बहुत ही उत्तम माना गया है। इस दिन हनुमान मंदिरों में भक्तों का भारी जमावड़ा लगता है। लोग विधि विधान से प्रभु श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। कहा जाता है आज के दिन विधि अनुसार हनुमान जी की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान राम की पूजा-अर्चना करने से भी हनुमान जी प्रसन्न होते हैं। हनुमान प्राकट्योत्सव पर भगवान राम की पूजा किये बिना हनुमान जी की पूजा अधूरी मानी गई है। इस दिन चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर हनुमान जी की मूर्ति या फोटो को दक्षिण मुंह करके स्थापित कर स्वयं लाल आसन पर बैठकर और लाल वस्त्र धारण कर षोडशोपचार पूजन करना चाहिये। चमेली तेल में घोलकर नारंगी सिंदूर और चांदी का वर्क चढ़ाने के बाद लाल फूल से पुष्पांजलि देनी चाहिये। हनुमान जी को 11 पीपल के पत्तों पर नारंगी और सिंदूर से राम - राम लिखकर चढ़ाना चाहिये। हनुमान चालीसा और रामचरित मानस के सुंदरकांड का पाठ करने और लड्डू या बूंदी के प्रसाद का भोग लगानी चाहिये। दीपक से 09 बार घुमाकर आरती करें और 'ॐ  मंगलमूर्ति  हनुमते नमः या ' श्री राम भक्ताय हनुमते नमः:' मंत्र का जाप करनी चाहिये। वहीं संतान प्राप्ति के लिये भी हनुमान जयंती का विशेष महत्व है। धार्मिक ग्रंथों की मानें तो इस दिन बजरंगबली की पूजा के साथ सूर्य देव को अर्घ्य देने व पूजन करने से नि:संतान को संतान की प्राप्ति होती है और संतान संबंधी सभी समस्याओं का निवारण होता है। इस दिन कुछ विशेष उपाय कर आप ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को दूर कर सकते हैं। इतना ही नहीं शिक्षा, व्यापार व नौकरी के क्षेत्र में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिये भी हनुमान जी की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि अगर शनि को शांत करना है तो भगवान श्री हनुमान जी को प्रसन्न करना चाहिये। ऐसा इसलिये कहा गया है कि जब हनुमानजी ने शनिदेव का घमंड तोड़ा था तब सूर्यपुत्र शनिदेव ने हनुमानजी को वचन दिया है कि उनकी भक्ति करने वालों की राशि पर आकर भी वे कभी उन्हें पीड़ा नहीं देंगे। ऐसी मान्यता है की हनुमान जयंती के दिन जो भी व्यक्ति हनुमानजी की भक्ति और दर्शन करता है, उसके सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। 

​हनुमत प्राकट्योत्सव

पौराणिक कथा के अनुसार अंजना एक अप्सरा थीं, हालाँकि उन्होंने श्राप के कारण पृथ्वी पर जन्म लिया और यह श्राप उनपर तभी हट सकता था जब वे एक संतान को जन्म देतीं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार केसरी श्री हनुमान जी के पिताथे। वे सुमेरू के राजा थे और केसरी बृहस्पति के पुत्र थे। अंजना ने संतान प्राप्ति के लिए 12 वर्षों की भगवान शिव की घोर तपस्या की और परिणाम स्वरूप उन्होंने संतान के रूप में हनुमानजी को प्राप्त किया।अयोध्या नरेश राजा दशरथ जी ने जब पुत्रेष्टि हवन कराया था, तब उन्होंने प्रसाद स्वरूप खीर अपनी तीनों रानियों को खिलाया था। उस खीर का एक अंश एक कौआ लेकर उड़ गया और वहां पर पहुंचा , जहां माता अंजना शिव तपस्या में लीन थीं। मां अंजना को जब वह खीर प्राप्त हुई तो उन्होंने उसे शिवजी के प्रसाद स्वरुप ग्रहण कर लिया। इस घटना में भगवान शिव और पवन देव का योगदान था। उस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद भगवान शिव के ग्यारहवें रूद्रावतार हनुमान जी का प्राकट्य हुआ।  माता अंजना के कारण हनुमान जी को आंजनेय , पिता वानरराज केसरी के कारण केसरीनंदन और पवन देव के सहयोग के कारण पवनपुत्र एवं संकटमोचन , सीता शौक निवासन , लक्ष्मण प्राण दाता आदि नामों से भी जाना जाता है। श्री हनुमान जी को शक्ति व ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अगर किसी व्यक्ति को भूत-प्रेत से छुटकारा चाहिये तो वह भगवान श्री हनुामन की पूजा आराधना करता है।

रिपोर्टर:  भुपेन्द्र यादव 

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