भगवान शिव के पांचवें अवतार हैं कालभैरव – अरविन्द तिवारी

रायपुर :     हिंदू धर्म में काल भैरव जयंती का महत्वपूर्ण स्थान है। यह मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानि आज मनायी  जाती है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि भगवान शिव के उग्र स्वरूप को काल भैरव के नाम से जाना जाता है। कालभैरव दो शब्दों से मिलकर बना है - एक काल और दूसरा भैरव। काल का अर्थ होता है मृत्यु , डर और अंत जबकि भैरव का मतलब है भय को हरने वाला। जिससे काल भी डरता है। काल भैरव की पूजा करने से मृत्यु का भय दूर हो जाता है और जीवन में आ रहे कष्टों से भी मुक्ति मिलती है। इस दिन व्रत रखने का खास महत्व माना गया है।हिंदू धर्म में विशेषकर शैव और शाक्त संप्रदाय में भगवान शिव के पांचवें अवतार काल भैरव के पूजन का विशिष्ट महत्व है। इनके पूजन से मृत्यु भय पर विजय की प्राप्ति होती है। काल भैरव का भक्त कभी अकाल मृत्यु को प्राप्त नहीं होता है। यूं तो भैरव के प्रमुख रूपों में बटुक भैरव और काल भैरव ही हैं वहीं इन्हें रुद्र , क्रोध , उन्मत्त , कपाली , भीषण और संहारक भी कहा जाता है। भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है , इसकी महत्ता का आकलन इसी से किया जा सकता है कि जहां-जहां ज्योर्तिलिंग और शक्तिपीठ हैं , वहां-वहां काल भैरव को स्थान मिला है। वैष्णो देवी , उज्जैन के महाकालेश्वर , विश्वनाथ मंदिर आदि में काल भैरव मौजूद हैं।मान्‍यता है कि भगवान भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के अंश के रूप में हुई। श्वान पर सवार भक्तों के लिये भगवान कालभैरव दयालु , कल्याण करने वाले और अतिशीर्घ प्रसन्न होने वाले देवता हैं। लेकिन अनैतिक कार्य करने वालों के लिये ये दंडनायक है। इतना ही नहीं , ऐसा भी माना जाता है कि अगर इनके भक्तों का कोई अहित करता है तो उसे तीनों लोकों में कहीं भी शरण नहीं मिलती। काल भैरव श्वान पर सवार होते हैं और बुरे कार्य करने वाले को दंडित करने के लिये त्रिशूल के साथ साथ एक छड़ी भी रखते हैं। इस दिन भगवान काल भैरव जी की विधि विधान से पूजा कर ॐ कालभैरवाय नम: मंत्र का जाप किया जाता है। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति के शत्रु दूर हो जाते हैं। काल भैरव अष्टमी के दिन साधक को भगवान काल भैरव के मंदिर में उनकी आरती करके पीले रंग की पताका भगवान को अर्पित करनी चाहिये। भैरव की विशेष कृपा पाने के लिये आज के दिन उन्हें पाँच नींबू अर्पित करें। आज के दिन बाबा भैरव नाथ को जलेबी का भोग लगाकर बची हुई जलेबी किसी काले श्वान को खिलाना चाहिये। बाबा भैरव नाथ की सवारी होने के कारण बाबा को श्वान अतिप्रिय होता है , श्वान को जलेबी या मीठी रोटी खिलाने से उनकी विशेष कृपा आती है। काल भैरव को प्रसन्न करने के लिये काल आज के दिन तैलीय खाद्य पदार्थ जैसे पापड़ , पूड़ी , पुये और पकौड़े का भोग लगाकर अगले दिन इन्हें गरीब और जरूरतमंद लोगों में बाँटने से काल भैरव की विशेष कृपा बनी रहती है। इस उपाय को करने से भगवान भैरव के साथ साथ शनिदेव की भी कृपा बनी रहती है। भैरव उपासना क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त करती है। भैरव देव जी के राजस , तामस व सात्विक तीनों प्रकार के साधना तंत्र प्राप्त होते हैं। इनकी साधना स्तंभन , वशीकरण , उच्चाटन और सम्मोहन जैसी सभी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करती है। मान्यतानुसार भैरव आराधना से शत्रु से मुक्ति , संकट , कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय प्राप्त होती है , व्यक्ति में साहस का संचार होता है। भैरव को काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। इस दिन भगवान काल भैरव की पूजा की जाती है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि काशी में रहने वाले हर व्यक्ति को यहां पर रहने के लिये बाबा काल भैरव की आज्ञा लेनी पड़ती है। मान्यता है कि भगवान शिव ने ही इनकी नियुक्ति यहां की। आज के दिन भगवान शिव की पूजा कर 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ‘ॐ नम: शिवाय’ लिखकर शिवलिंग पर चढ़ायें। भैरव देव की कृपा पाने के लिये प्रत्येक गुरूवार के दिन श्वान को गुड़ खिलाना चाहिये। इसके अलावा गरीबों में कंबल दान करना चाहिये।

काल भैरव अवतरण

वैसे तो काल भैरव के जन्म या अवतरण की कई पौराणिक कथायें प्रचलित हैं। शिवपुराण के अनुसार एक बार सबसे ज्यादा कौन श्रेष्ठ है इसे लेकर ब्रह्मा जी , विष्णु जी और भगवान शिव के बीच विवाद पैदा हो गया। इसी बीच ब्रह्माजी ने भोलेनाथ की निंदा की। इसके चलते शिव जी बेहद क्रोधित हो गये , शिवशंकर के रौद्र रूप से ही काल भैरव का जन्म हुआ था। काल भैरव ने अपने इस अपमान का बदला लेने के लिये अपने नाखून से ब्रह्माजी के पांँचवे सिर को काट दिया। क्योंकि इस सिर ने शिव जी की निंदा की थी। इसके चलते ही काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया था। ब्रह्माजी का कटा हुआ शीष काल भैरव के हाथ में चिपक गया था। ऐसे में काल भैरव को ब्रह्म हत्या से मुक्ति दिलाने के लिये शिवशंकर ने उन्हें प्रायश्चित करने के लिये कहा। शिव जी ने बताया कि वो त्रिलोक में भ्रमण करें और जब ब्रह्रमा जी का कटा हुआ सिर हाथ से गिर जायेगा उसी समय से उनके ऊपर से ब्रह्म हत्या का पाप हट जायेगा। फिर जब वो काशी पहुंँचे तब उनके हाथ से ब्रह्मा जी का सिर छूट गया। इसके बाद काल भैरव काशी में ही स्थापित हो गये और शहर के कोतवाल कहलाये। ऐसा कहा जाता है कि काशी के राजा भगवान विश्वनाथ हैं वहीं नगरी के कोतवाल काल भैरव हैं। आज भी बिना काल भैरव के दर्शन के बाबा विश्वनाथ का दर्शन अधूरा माना जाता है।

रिपोर्टर : भुपेन्द्र यादव 

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