सुदर्शन चक्र का ये रहस्य नहीं जानते होगें आप , जानें श्री हरि के पास कैसे पहुंचा ये दिव्य चक्र

चक्र सुदर्शन जो न तजे, विष कोटि हरे प्रभु नाग नथैया!
ग्वाल सखा सब संग लिए, नित धेनु चरावत कृष्ण कन्हैया।
एक गणूँ कि अनेक तुम्हें, भ्रम होत सदा चित रास रचैया!
मोहन! भेद अभेद लगे, किस भाँति लिखूँ अति दीन सवैया।

कहते हैं संसार में जब-जब अन्याय बढ़ता है तो भगवान विष्णु धरती पर अवतार लेते हैं. संसार को रावण और कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए भी उन्होंने राम और कृष्ण का अवतार लिया था. भगवान विष्णु को इसलिए भी पालनहर्ता कहते हैं. विष्णु जी हमेशा अपने सुदर्शन चक्र के साथ नजर आते हैं. सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का प्रमुख शस्त्र है, इस चक्र से माध्यम से भगवान ने बहुत से दुष्टों का विनाश किया है. इस चक्र की खास बात यह है कि यह चलाने के बाद अपने लक्ष्य पर पहुंचकर वापिस आ जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनके हाथ में ये सुदर्शन चक्र कहां से आया. धार्मिक ग्रन्थों में सबसे विनाशक हथियारों में इसका का नाम लिया जाता है. श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र से जुड़ी कई कहानियों का उल्लेख पुराणों में भी किया गया है. कहते हैं की श्रीकृष्ण से पहले सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु के पास था. लेकिन बाद में यह श्रीकृष्ण के पास आ गया.तो चलिए आपको बताते है कि पौराणिक कथाओं के आधार पर सुदर्शन चक्र कहां से और कैसे आया . 
कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं. भगवान विष्णु के पास से सुदर्शन चक्र श्रीकृष्ण के पास पहुंचा था. सुदर्शन चक्र के बारे में भागवत पुराण में वर्णन मिलता है कि किसी भी चीज को खोजने के लिए यह सक्षम था. साथ ही इसे सर्वाधिक विध्वंशक अस्त्रों में से एक माना जाता था. इसे भगवान श्रीकृष्ण द्वारा क्रोधित होने पर दुर्जनों के संहार के लिए किया जाता था. कहते हैं सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान विष्णु ने नहीं, बल्कि भगवान शिव ने किया था. इसके निर्माण के बाद शिव ने यह चक्र भगवान विष्णु को सौंप दिया था. इस संबंध में शिवपुराण के कोटि युद्ध संहिता में एक कथा का वर्णन है.
जब दैत्यों का अत्याचार बढ़ गया, तब सभी देवी-देवता भगवान विष्णु के पास गए. फिर भगवान विष्णु ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की विधिवत आराधना की. वे उनके हजार नामों से उनकी स्तुति करने लगे. प्रत्येक नाम पर एक कमल का फूल भगवान शिव को चढ़ते. तब भगवान शिव ने विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उनके द्वारा लाए गए एक हजार कमाल पुष्प में से एक छिपा दिया. एक फूल कम पाकर भगवान विष्णु उसे ढूंढने लगे. लेकिन वह फूल नहीं मिला. तब विष्णु ने उस फूल की पूर्ति के लिए अपना एक आंख निकालकर शिव को अर्पित कर दिया. विष्णु की भक्ति देखकर भगवान शिव बेहद प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा. तब विष्णु ने दैत्यों को समाप्त करने के लिए एक अजेय शस्त्र का वरदान मांगा. जिसके बाद भगवान शंकर ने विष्णु जी को सुदर्शन चक्र प्रदान किया.

 

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