गोरखपुर : आपरेशन न्याय..एक सराहनीय पहल..परंतु ?

गोरखपुर : गोरखपुर जनपद में कप्तान साहब ने आपरेशन न्याय के नाम से एक नई मुहिम की शुरुआत कर काफी सराहनीय काम किया है इस मुहिम का मकसद यही है कि लंबे समय से चल रही लंबित विवेचनाओं का शीघ्र निस्तारण कराया जा सके । बाकी सब तो ठीक है परंतु मेरे अनुसार यदि इस मुहिम को आपरेशन न्याय की जगह आपरेशन निस्तारण नाम दिया गया होता तो यह ज्यादा न्यायोचित प्रतीत होता । क्योंकि इस नई मुहिम के तहत यह व्यवस्था की गई है कि वादी मुकदमा और विवेचक सामने बैठकर अपनी बातों को रखते हुए मुकदमे का त्वरित निस्तारण करा सके ।

परंतु गौरतलब बात यह है कि क्या न्याय कभी भी एकपक्षीय दलीलों के आधार पर किया जा सकता ? बिल्कुल भी नही !!  तो फिर सिर्फ मुकदमा वादी की बात सुनकर पुलिस मुकदमे में कौन सा न्याय करने जा रही है ? इस आपरेशन न्याय में मुकदमा वादी के साथ आरोपी को भी क्यो न बैठाया जाए ताकि दोनो की बाते और तथ्यों की रोशनी में एक त्रुटिरहित और निष्पक्ष विवेचना का समापन हो सके । आमजन से लेकर पुलिस और न्यायालय सभी इस बात से भली भांति अवगत है कि तमाम फर्जी मुकदमे धन, बल , सिफारिश तथा कानून का दुरुपयोग कर अपनी कुंठाओ को तृप्त करने के लिए कराए जाते है जिसका खामियाजा समाज मे रह रहे तमाम परिवारों को और उनकी आने वाली नस्लों को भी भुगतना पड़ता है ।

अपने खिलाफ हुए तथा समाज मे घटित घटनाओं के बाबत मुकदमा दर्ज कराना प्रत्येक इंसान का संवैधानिक अधिकार है और नियमतः पुलिस इससे इनकार नही कर सकती फिर भी तमाम मामलों में मुकदमे दर्ज  इसलिए नही होते क्योंकि पुलिस न्याय और नौकरी की कशमकश में उलझ कर रह जाती है और इस कशमकश में नौकरी करने की लालसा हमेशा न्याय शब्द पर भारी पड़ती है । देश की अदालतों का भी यही मानना है कि भले चाहे दस अपराधी छूट जाए लेकिन एक निर्दोष को सजा किसी कीमत पर नही होनी चाहिए । यदि आपरेशन न्याय मुहिम का अर्थ वाकई में लंबित मुकदमो की विवेचनाओं के प्रति न्याय करना ही है तो एकपक्षीय दलीलों के आधार पर न्याय तो बिल्कुल भी संभव नही है और यदि इस मुहिम का उद्देश्य मात्र लंबित विवेचनाओं को जैसे तैसे अदालत की सीढ़ियों तक पहुंचाना ही है तो इस मुहिम का सबसे सटीक नाम "आपरेशन निस्तारण" बिल्कुल सही रहेगा ।

न्याय करने की जिम्मेदारी सिर्फ न्यायालयों के मत्थे मढ़ कर अपने कर्तब्यों की इतिश्री कर लेना कहीं से भी उचित नही है । न्याय करना सिर्फ अदालतों का ही काम नही है बल्कि हमारे संविधान ने न्याय करने की शक्ति हर एक इंसान को दे रखी है । जो जहां है वही निष्पक्ष न्याय कर सकता है जैसे एक अच्छे माता पिता अपने बच्चे के साथ करते है...जैसे एक व्यवसायी अपने व्यवसाय के साथ करता है...जैसे एक अधिकारी फरियादियों के साथ करता है । और जब स्थानीय स्तर पर यह न्याय नही हो पाता तो यही व्यथा कुंठा का रूप धारण किये आखिरी पड़ाव पर अदालत का दरवाजा खटखटाती है ।

हमे यह याद रखना होगा कि गलत करने वालो को कभी इंतजार नही करना पड़ता क्योंकि एक पूरी सत्ता और उसका तंत्र उनके साथ खड़ा दिखाई देता है और सारे सवालों के जवाब सिर्फ पीड़ित से ही मांगे जाते है साथ ही एक अकाट्य सत्य और जान लें कि परिवर्तन और सच्चाई कभी किसी मीडिया का मोहताज नहीं होता। साथ आओ तो अच्छा और न आओ तो और भी अच्छा !

रिपोर्टर : सत्येन्द्र कुमार
 

Leave a Reply



comments

Loading.....
  • No Previous Comments found.