बेवजह चिल्ल पों न मचाईये.. जरा अदब से पेश आईये

फोन टैपिंग और पेगासस पर बेवजह कुकुरझांव मचाने वाले विपक्षी शायद यह भूल गए है कि सन 2001 में बीजेपी सत्ता में थी और कांग्रेस विपक्ष में। कांग्रेस को विपक्ष में बैठे कुछ ही साल हुए थे। 1996 तक पंडित नरसिंह राव की सरकार थी और मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे। दोनों ने मिल कर देश की गाड़ी उदारीकरण के रास्ते पर सरपट दौड़ा दी। मगर सत्ता से बाहर होने पर कांग्रेसी नेताओं की छटपटाहट बढ़ने लगी। 1998 में सीताराम केसरी ने अपनी टोपी सोनिया गांधी के पैरों पर रख दी और पार्टी की कमान उनके हाथ में चली गई। 2000-01 में कांग्रेस ने अपने सुपारी किलर तरुण तेजपाल को याद किया। बंदे ने ऐसा फंदा डाला की बीजेपी अध्यक्ष बंगारु लक्ष्मण लपेटे में आ गये। रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस के घर तक आंच पहुंच गई। इसे हम तहलका के स्टिंग “ऑपरेशन वेस्ट लैंड” के नाम से जानते हैं। बंगारु जी तो निपट गए, जॉर्ज किसी तरह बचे। मतलब कांग्रेसी स्टिंग औऱ टैपिंग के पुराने खिलाड़ी रहे है ।

कोरोना काल मे हुई मौतों पर बेवजह हाय तौबा मचाने वालो को भी यह बताना चाहता हूँ कि यदि आप यह सोचते है कि कोरोना काल मे हुई मौतें ऑक्सीजन की कमी से हुई है तो आप बहुत बड़े महाघण्ट है । बात बात में सरकार को बदनाम करने आदत छोड़िये । वर्तमान सरकार तो क्या कोई भी सरकार कभी गलत नही होती । मुनव्वर राणा की कसम मैं पहले भी मानता रहा हूं कि कोरोना दौर में आक्‍सीजन की कमी से कोई नहीं मरा है, क्‍योंकि आक्‍सीजन की कोई कमी थी ही नहीं, लेकिन जब से सरकार ने लिखा-पढ़ी में सर्टिफाइड तरीके से बताया है कि आक्‍सीजन की कमी से कोई नहीं मरा है, तब से मन और प्रफुल्लित हो गया है और मुझे अपने ज्ञान पर नाज हो रहा है ।
जाहिर है किसी भी बात के लिये सरकार पर दोष लगा देना बहुत आसान होता है, जबकि सरकार हर काम जनता की बेहतरी को ध्‍यान में रखकर करती है । इस देश में और इस देश के वातावरण में ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध थी और अभी भी है । जनता जब खुद ही हवा में फैलाई गई आक्‍सीजन सोख और खींच नहीं पाई तो इसमें सरकार का क्‍या दोष? सही मायने में दोष तो आपके फेफड़ों का है ।

अब अपने गोरखपुर में ही देखिये । तमाम लम्पट किस्म के अस्पताल संचालकों ने कोरोना काल में जमकर मरीजो को लूटा । अब लूट ही लिया भाई तो काहे हल्ला कर रहे हो । प्रशासन ने पैसे वापस करा दिए है न । अब ये मत कहना कि जब चोर और चोरी पकड़ ही गयी तो फिर कार्यवाही क्यों नही हुई । अरे नामुराद मरदूदों अगर कार्यवाही ही कर देंगे तो कोरोना की आने वाली तीसरी लहर में फिर लूटने वाले क्या पाकिस्तान से आएंगे । तुमने कोरोना की दूसरी लहर से कुछ सीखा हो या न सीखा हो मगर इन लम्पट संचालकों ने बहुत कुछ सीखा है । इन बेचारे अभागे लम्पट अस्पताल संचालकों को क्या पता था कि इलाज का बिल देने की इतनी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी । अब तीसरी लहर में बिल मांग कर देखना  ये तुम्हारा टेंटुआ दबा देंगे । अब देखिए न सालों से बीमार पड़े स्वास्थ्य महकमे को ठीक करने के लिए सरकार ने सालों से जमे मठाधीशों पर ट्रांसफर का चाबुक क्या चला दिया ये विधवा विलाप पर उतर आए । ऐसे दहाड़े मार मार कर रो रहे है जैसे करवाचौथ के दिन ही इनका सब लुट गया हो ।

मार पड़े इन नासपीटे किसान नेताओ पर भी । खुदा का कहर नाज़िल हो इनपर !!! अब बताओ भला कि ये बक रहे है कि सत्ता की दलाली के चलते दैनिक जागरण किसान आंदोलन और किसान नेता राकेश टिकैत को बदनाम करने के लिए लगातार बेसिर-पैर की खबरें छाप रहा है । इससे दुखी राकेश टिकैत ने दैनिक जागरण को सबक सिखाने के लिए अपने समर्थकों से इस अखबार के बहिष्कार और इसकी प्रतियां फूंकने का आह्वान कर दिया ।

बस क्या था, वेस्ट यूपी समेत बहुत बड़े इलाके के लोगों ने दैनिक जागरण को जलाने का काम शुरू कर दिया । गांव गांव में लोगों ने दैनिक जागरण अब न मंगाने और न पढ़ने का ऐलान कर दिया । अब इसमें अखबार की क्या गलती थी भला । अब अखबार का खर्चा जिससे चलता है वो उसी की दलाली करेगा न । तुम्हारे लोगो का तो वही हाल है कि हाथ मे नही कंचा ...फिर भी फांद जाओगे लंका ... एक तरफ हर जगह अखबारों का डंका बज रहा है और आप है कि अखबारों की ही बजा रहे है । बहरहाल दैनिक जागरण प्रबंधन ने अपने कर्मियों को इस संकट को मैनेज करने के लिए कह दिया है ।

अब जनता और पत्तलकार बेचारे क्या जाने कि पत्तलकारो की नियति ही यही है। वो किसी का बिल्ला या फिर किसी का टॉमी बन कर ही रहेंगे। मियाऊं मियाऊं या भौं-भौं करेंगे। इनमें शेखर गुप्ता, प्रभु चावला और अर्णब गोस्वामी जैसे कुछ बड़े चालू टाइप के होते हैं – वो दूर से ही दांत दिखा कर काम चलाते हैं । उनके पास असली वाले टॉमी होते हैं। बिना बुलाए पहुंचिएगा तो वो लपक के काट भी लेंगे। अब हमें ही देख लीजिए , हम भी कम नमकहराम नही है । बेचारे इस सिस्टम ने बेवजह नाहक में फ्री में बैठाकर हमे 22 महीने खिलाया । 100 करोड़ की हवेली में रखा और किराया भी नही लिया । और तो और अपनी पुलिसिया बहीखाते में हमारा नाम चढ़ाकर हमे इज़्ज़त और शानो शौकत से नवाजा!! इतना तो आजकल अपने सगे मा बाप भी नही करते । और हम है कि जिल्ले.. इलाही को जलीले... इलाही बनाने पर तुले हुए है और अहसान मानने को तैयार ही नही । लाहौल ...विलाकुवत

रिपोर्टर :  सत्येन्द्र कुमार

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