सरकारी विद्यालयों में गरीब बच्चे ही क्यों पढ़ते हैं?

गुजरात : लेखिका सुनीता कुमारी  - कुछ दिनों पहले की बात है  मैं  अपने घर के नजदीक पार्क में बैठी हुई थी, जहां पर चार पांच बच्चे खेल रहे थे. उस पार्क के तीन तरफ अमीरों के घर थे.एवं एक तरफ गरीबों की बस्ती थी .इसलिए अमीर और गरीब दोनों घरों के बच्चे वहां आकर खेलते थे. खेल खेल में सब बच्चों में जान पहचान भी हो गई थी. मैं जहां बैठी थी वहां पर चार पांच बच्चे खेल रहे थे और आपस में बातें कर रहे थे.

मैं अकेली थी और उन बच्चों को खेलते हुए देख रही थी एवं उनकी बातें सुन रही थी. इन बच्चों में से एक बच्चे ने कहा-
" तुम्हारे पिताजी आज हमारे स्कूल आए थे, हमारे स्कूल में नामांकन का प्रोग्राम था जिसमें वह चीफ गेस्ट थे.उन्होंने बहुत अच्छा भाषण दिया. हमारे विद्यालय की बहुत तारीफ कर रहे थे. एवं विद्यालय के विकास के बारे में बातें कर रहे थे.
तुम्हारे पिताजी तो बहुत अच्छा बोलते हैं बहुत अच्छे इंसान हैं.
तुम क्यों नहीं हमारे विद्यालय में पढ़ते हो? 
हट..सरकारी विद्यालय में अच्छे बच्चे थोड़े ही पढ़ते , उन बच्चों से बीमारी लग जाती है.
मैं भी तो सरकारी पढ़ता हूँ.
तुम्हारी बात अलग है तुम साफ सुथरा रहते हो, तुम्हारी माँ मेरे घर में काम करती है, मैं तुम्हें जानता हूँ.
पापा कहते हैं सरकारी स्कूल में पढ़ाई नही होती है, और न ही अच्छी व्यवस्था है, सरकारी स्कूल में केवल गरीब घर के बच्चे पढ़ते हैं, मैं गरीब नही हूँ. मेरे पापा नेता है.
तो क्या स्कूल में जो कुछ भी तुम्हारे पापा ने कहा सब झूठ था? 
बच्चे ने कोई जबाब नही दिया.
एक अन्य बच्चे ने कहा- तुम्हारे पापा तो बहुत खुश थे, शिक्षकों  एवं  बच्चो के साथ फोटो भी खिचवाई.
छोड़ो न इनसब बातों को चलों न खेलते हैं.
मैं चुपचाप सारे बच्चों की बातें सुन रही थी.
हमारे देश में कुछ राज्यों को छोड़कर सभी सरकारी स्कूलों की खस्ता हालत किसी से छुपी हुई नहीं है. लगभग सभी राज्य में सरकारी स्कूल लुंज पुंज हालत में  है.जहां बच्चों की शिक्षा भगवान भरोसे हो रही हैं. सरकारी स्कूलों की व्यवस्था पूरी तरह से धरातल पर आ चुकी है .
कोई भी नेता , बड़े अधिकारी, सरकारी कर्मचारी, या व्यवसायी किसी के भी अपने बच्चे को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ते है. 
परंतु जैसे ही मौका मिलता है, ये सरकारी स्कूलों में आकर जरूर फोटो खिंचवाते हैं एवं बड़ी-बड़ी बातें करते हैं .पिछले दिनों प्रवेश उत्सव प्रोग्राम में विभिन्न राज्यों में यह नजारा देखा गया .सभी स्कूलों में जा जाकर नेतागण प्रवेश उत्सव प्रोग्राम में फोटो खींचवते देखे गए, मगर किसी के भी बच्चे इन विद्यालयों में नहीं पढ़ते हैं.
आखिर ऐसी स्थिति आई क्यों? 
क्यों सरकारी विद्यालय गरीब बच्चों के लिए रह गया है.
निश्चय ही पूरे देश में सरकारी स्कूलों की अनदेखी सरकार के द्वारा हुई है.जिसका परिणाम गरीब घर के गरीब बच्चे भुगत रहे हैं. 
सरकारी स्कूलों की अव्यवस्था के कारण बच्चे मजबूर हैं कि, वह प्राइवेट संस्थानों में जाकर शिक्षा ग्रहण करें.
इसकी सबसे बड़ी वजह है कि, हमारे देश के किसी एक क्षेत्र में यदि ,एक सरकारी स्कूल  हैं तो ,उस स्कूल के चारों ओर 5 प्राइवेट स्कूल और कोचिंग संस्थाएं हैं ,एवं सभी वर्ग के लोगों का विश्वास सरकारी स्कूल की शिक्षा से उठ चुका है, क्या इसके लिए शिक्षक जिम्मेदार है? कतई नहीं.
क्योंकि जिस संस्थान की व्यवस्था जैसी होती है लोग वैसा ही व्यवहार करते हैं. किसी संस्थान में अनुशासन और प्रबंधन सकुशल हो तो कर्मचारी को कार्य करने में मन लगता है और वह अपना शत-प्रतिशत देते हैं.
वहीं यदि व्यवस्था लुंज पुंज हो बच्चों का स्कूल में आना कम हो , बच्चों को जबरन शिक्षक को पढ़ाना पड़े ,जबरन उन्हें स्कूल में रोकना पड़े तो इस तरह से बच्चों को शिक्षा नहीं दिया जा सकता है. बच्चों के माता-पिता को समझा-बुझाकर बच्चों को सरकारी स्कूल में आने के लिए प्रेरित करना पड़े तो यह शिक्षकों का काम नहीं है, शिक्षकों का काम बेहतर शिक्षा देना है इसके लिए यह जरूरी है कि विद्यालय व्यवस्था चुस्त और दुरुस्त हो.बच्चे स्वेच्छा से विद्यालय आए. 
बच्चों के साथ-साथ बच्चों के माता-पिता भी आश्वस्त हो कि,  बच्चे को शिक्षा ग्रहण करने के लिए  जिस विद्यालय में भेज रहे हैं वहां बच्चे अच्छी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और अच्छे से अच्छा भविष्य में करेंगे.
मगर यह स्थिति सरकारी विद्यालयों में संभव नहीं दिख रही है .जो लोग थोड़ा भी बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं चाहे उनकी आए कम से कम हो वे लोग किसी ने किसी प्राइवेट विद्यालय में अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं ,और अमीर घरों की बात ही अलग है .
सरकारी विद्यालयों में वह बच्चे रह गए हैं जिनके माता-पिता शिक्षा के प्रति  उदासीन एवं गरीब हैं. ऐसे माता-पिता को बच्चों की शिक्षा से अधिक बच्चों के द्वारा रुपया कमाए जाने पर विशेष जोर होता है ऐसे बच्चे कम ही उम्र में कहीं ना कहीं काम पर लग जाते हैं चाहे वह होटल हो या मोटर पार्ट्स के गैराज, सब्जी दुकान हो चप्पल दुकान हो आदि आदि. इस स्थिति में सरकारी विद्यालयों को एवं सरकारी शिक्षकों को बदनाम कर रखा है.
लगभग 20 ,25 वर्ष के अंदर सरकारी विद्यालयों की स्थिति बद से बदतर होती  गई. 
.इससे पहले यह स्थिति लगभग ठीक थी. अमीर और गरीब घरों के बच्चे एक साथ सरकारी विद्यालयों में पढ़ते थे, शिक्षा की गुणवत्ता अच्छी थी किसी सरकारी स्कूल से पढ़कर लोग डॉक्टर इंजीनियर आदि बना करते थे, परंतु धीरे-धीरे शिक्षा के व्यवसायीकरण और सरकारी उदासीनता के कारण सरकारी विद्यालय में शिक्षा की स्थिति गिरती गई और उसका स्थान प्राइवेट स्कूलों ने ले लिया. जिसमें सरकारी विद्यालयों की स्थिति खराब कर दी है और सरकार की उदासिन नीति ने रहा सहा कसर भी पूरा कर दिया है.
तो भला सरकारी स्कूल की स्थिति सुधरेगी कैसे? आखिरकार बड़े लोगों को, नेतागणों को अपनी नेतागिरी दिखाने के लिए कोई ना कोई जगह तो अवश्य चाहिए होती है और सरकारी विद्यालय एक बड़ा प्लेटफार्म बन गया है ,जहां पर नेतागण अपनी सहानुभूति दिखाकर वोट की राजनीति पर ध्यान दे रहे हैं ।

रिपोर्टर : चंद्रकांत पुजारी

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