शिक्षा एवं संस्कृति के उत्थान के लिए समर्पित आंदोलन

गुजरात :   शिक्षा राष्ट्र के सर्वांगीण विकास का माध्यम है। व्यक्ति के जीवन जीने की कला का महामंत्र है। यह मनुष्य के अंतर्बाह्य को प्रकाशित करती है तथा चिंतन और चरित्र को गढ़ती है। शिक्षा सीखने और सिखाने की कला मात्र नहीं है, अपितु ज्ञान और कौशल के माध्यम से व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाने का सर्वश्रेष्ठ साधन भी है।यह राष्ट्र, समाज और व्यक्ति के विकास की दशा और दिशा भी निर्धारित करती है।शिक्षा एक जीवंत प्रक्रिया है, जो व्यक्ति समाज और राष्ट्र का परिष्कार करती हुई उसके कल्याण के विकास का आधार बनती है। शिक्षा के अंतर्गत कलात्मक और सृजनात्मक चिंतन की ऐसी समस्त क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं, जो मानव को उन्नत बनाती है उसे पूर्णता की ओर अग्रसर करती है।   हमारे भारत देश में शिक्षा - विद्या, ज्ञान, उपदेश को संस्कार और आचरण प्राप्त करने की प्रक्रिया माना गया है। ये उपकरण शिक्षार्थी को सुसंस्कृत, योग्य ,कौशल सम्पन्न बनाने के साधन हैं, जन्मजात गुणों को बाहर लाने का माध्यम हैं और सर्वांगीण विकास के हेतु हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना था "शिक्षा भारतीय पुनर्निर्माण के सपने को साकार करने का माध्यम है", इसके बिना राष्ट्र का विकास असंभव है। विवेकानंद की दृष्टि में "मनुष्य की अंतर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना " शिक्षा है ।जबकि गांधीजी के विचार में " शरीर, मन और आत्मा का सर्वांगीण तथा उत्कृष्ट विकास ही शिक्षा है"। संस्कृति समाज में निहित गुणों का दूसरा नाम है। यह समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने का तरीका है। रीति- रिवाज, परंपराओं, सामाजिक विश्वासों और भाषाओं का समुच्चय है। यह एक सर्वांगीण, विशाल, उदार, प्रेममयी, सहिष्णु  दृष्टि है तथा सत्य ,अहिंसा ,शिष्टाचार ,अध्यात्म व संयम का संदेश है ।भारतीय संस्कृति की विशेषता यही है कि  इसमें निहित रहन-सहन ,खान-पान ,  वेश-भूषा ,भाषा सब कुछ  परंपरा एवं पर्यावरण के अनुकूल है, यह वैज्ञानिक कसौटी पर खरी है और समाज को उच्चतम मूल्य एवं आदर्श चेतना प्रदान करने में सक्षम है।  शिक्षा और शिक्षा नीति किसी भी शासन की प्राथमिकता होनी चाहिए, किंतु हमारा  यह दुर्भाग्य रहा है कि हमारे देश में स्वतंत्रता के पश्चात भी शासन ने शिक्षा और शिक्षा नीति को कभी भी प्रथम आवश्यकता के रूप में स्वीकार ही नहीं किया। सरकार अपने स्वार्थ और दल गत उद्देश्य पूर्ति के लिए शिक्षा और शिक्षण सामग्री का इस्तेमाल करती रही। इसी क्रम में अपने गौरवपूर्ण इतिहास को भी अर्ध सत्य के रूप में विद्यार्थी के सम्मुख रखकर उसे भ्रमित और संस्कारहीन बनाने से भी परहेज़ नहीं किया और इसका परिणाम देश भुगत रहा है संस्कारहीनता, अलगाव और विखंडन के रूप में।  ऐसा नहीं है कि देश राजनीति के इस कुचक्र को समझ नहीं रहा था किन्तु उदासीनता और निष्क्रियता ने एक बहुत बड़े वर्ग को अपनी गिरफ्त में ले रखा था। कुछ सरकार के भय से, कुछ शुद्र स्वार्थ पूर्ति के लोभ में और कुछ नासमझी में मौन थे। इसके विपरीत एक प्रबुद्ध वर्ग निरंतर भविष्य पर दृष्टि जमाए,सभी प्रकार के प्रलोभन से दूर रहकर समाज को जागृत बनाते हुए राष्ट्र के सुरक्षित भविष्य हेतु योजनाबद्ध रूप से कार्य कर रहा था। उसकी प्राथमिकता शिक्षा,शिक्षण सामग्री और देश के गौरवशाली इतिहास को सुरक्षित और भावी पीढ़ियों के समक्ष उद्घाटित करना था और भारतीय संस्कृति को बचाना था, संरक्षित रखना था।

यह समूह संगठित होकर समाज को बताना चाहता था कि भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं विद्यालयों में जो पाठ्यपुस्तक पढ़ाई जा रही हैं उसकी विषय वस्तु में कहीं कुछ बड़ी गड़बड़ियां  हैं अर्थात असत्य जानकारी दी गई हैं जो भारत की  संस्कृति, परंपरा, इतिहास को प्रदूषित करती नजर  आती हैं।
इस समूह द्वारा अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए तथा शिक्षा में सकारात्मक बदलाव हेतु सन् 2004 में श्री मदनदास , श्री सुरेश सोनी, डॉ मुरली मनोहर जोशी, डॉ जे एस राजपूत , श्री देवेंद्र स्वरूप के नेतृत्व में "शिक्षा बचाओ आंदोलन" खड़ा करने का निर्णय  लिया गया। जिसका आरंभिक लक्ष्य-बिंदु स्कूल-कालेज  की पाठ्य पुस्तक में गलत ढंग से शामिल की गई विषय वस्तु को हटवाना था। इसके लिए सबसे पहले आंदोलन के एक घटक ने उन विषय वस्तुओं को पता लगाने का प्रयास किया जो प्रमाणिकता पर खरी नहीं उतरती थी ,गलत और भ्रामक थी । फिर इन जानकारियों और सामग्रियों को हटाने के लिए संबंधित अधिकारियों से हटाने के लिए विधिवत अनुरोध किया गया। न मानने पर इन तथ्यों को सार्वजनिक करते हुए इन्हें हटाने के लिए आंदोलन किए गए, संगोष्ठियांँ आयोजित की गई,धरना प्रदर्शन किया गया, गिरफ्तारी दी गई, लोकसभा एवं राज्यसभा में प्रश्न उठवाये गये और अंत में न्यायालय की शरण ली गई। यहांँ यह लिखना महत्वपूर्ण होगा कि 12 ऐसे वाद थे जिसमें न्यायलय का निर्णय इस जागृत समूह के आंदोलन/न्यास के पक्ष में रहा और माननीय न्यायालय ने संबंधित को गलत, भ्रामक जानकारी को हटाने के लिए निर्देशित किया गया। कुछ ही समय में इस आंदोलन/न्यास ने अपने अथक परिश्रम,जन सहयोग और जन आंदोलन से, न्यायलय के माध्यम से जो महत्वपूर्ण उपलब्धियांँ हासिल की हैं उनमें प्रमुख है-
 * सीबीएसई के कुछ विषयों जैसे इतिहास , हिंदी की पाठ्य सामग्री से भ्रामक, असत्य, अनावश्यक जानकारी को हटवाना ।
* इग्नू के सामाजिक विज्ञान पीठ की पाठ्य पुस्तक में से हिंदू धर्म एवं एवं देवी देवताओं के विरुद्ध की गई गलत टिप्पणियों को हटावाना। 
 * दिल्ली विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र के पाठ्य सामग्री से ऋग्वेद एवं अथर्ववेद के संबंध में की गई गलत टिप्पणी को हटवाना ।
* राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय शिक्षा संस्थान के 12वीं के इतिहास में भगत सिंह ,राजगुरु ,चंद्रशेखर के संबंध में की गई गलत टिप्पणी को हटवाना।
* तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्रालय की योजना स्कूल में यौन-शिक्षा पढ़ाये जाने की थी, आंदोलन ने इसका विरोध किया और इसके स्थान पर चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास शिक्षा को पढ़ाई जाने के लिए दबाव बनाना। जो बाद में साकार भी हुआ। 
* आईसीएसई के इतिहास एवं सिविक्स की पाठ्य सामग्री में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए की गई गलत टिप्पणी को हटवाना ।
* गलत जानकारियों से भरपूर पुस्तकों के प्रकाशन पर रोक लगवाना ।
* शिक्षक पात्रता परीक्षा में संस्कृत विषय को शामिल करवाना। 
* संघ लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा में अंग्रेजी विषय की अनिवार्यता को समाप्त करवाने हेतु प्रयास करना। 
* विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भारतीय पहनावा में उपाधि लेने का विचार प्रस्तुत किया जिसे अब बहुत से विश्व विद्यालय द्वारा  अमल में लाया जा रहा है।
* संस्था द्वारा कोरोना महामारी से पीड़ित व्यक्तियों को भोजन , चिकित्सा आदि की सामाजिक सहयोग से मदद पहुंचाई गई। 
* राम मंदिर निर्माण के लिए आर्थिक सहयोग देने के लिए समाज से अनुरोध किया गया।
* त्रिभाषा फार्मूला के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा स्कूलों में विशेषकर केंद्रीय विद्यालय संगठन के स्कूलों में संस्कृत के स्थान पर जर्मनी को पढ़ाया जाना सुनिश्चित किया गया था। आंदोलन के प्रयास से पुनः संस्कृत पढ़ाया जाना सुनिश्चित किया गया।
* दिल्ली सरकार के स्कूलों में संस्कृत /पंजाबी/ उर्दू भाषा के विकल्प को हटाकर उसके स्थान पर व्यवसायिक शिक्षा पढ़ाई जाना सुनिश्चित किया गया। आंदोलन के प्रयास से पुनः तीन विषयों में से एक विषय चुनने का विकल्प प्राप्त हुआ। 
* 22 दिसंबर को श्रीनिवास रामानुजन के जन्मदिवस पर राष्ट्रीय गणित दिवस एवं 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय भाषा दिवस घोषित करवाने हेतु महत्वपूर्ण प्रयास,पहल की गई  जो बाद में  सफल भी हुई। 
संस्कृति उत्थान न्यास कई वर्षों से अनुभव कर रहा था कि शिक्षा नीति  सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सफल नहीं हो पा रही है और न ही दायित्ववान , देशभक्त नागरिकों के निर्माण में जितना उसे योगदान  देना चाहिए था, दे पा रही थी ।  समाज में व्याप्त बेरोजगारी,असुरक्षा, स्वार्थ , भ्रष्टाचार, और लोभी महत्वाकांक्षाओं को रोक पाने में भी असमर्थ ही है। साथ ही  विधार्थियों में राष्ट्रविरोधी स्वर भी शांत होने का नाम नहीं ले रहे हैं और पाश्चात्य संस्कृति को जाने अनजाने में यह शिक्षा नीति बढ़ावा दे रही थी। इन सब के अतिरिक्त लंबे समय से इसमें समयानुकुल बदलाव भी नहीं किए गए थे। जबकि विश्व में स्थितयांँ बड़ी तेजी से बदल रही थी। शायद इन्हीं सब कारणों की वजह से  शिक्षा नीति 2020 पर गहन ,चिंतन, मनन , एवं विचार - विमर्श और इस शिक्षा नीति के विकास में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और अब इसके प्रचार, प्रसार , क्रियान्वयन के लिए समर्पित भाव से कार्य कर रहा है।
मैं यहां एक बात कहना महत्वपूर्ण समझता हूंँ, जो विषय शिक्षा बचाओ आंदोलन या न्यास के द्वारा उठाए गए वस्तुतः वे विषय शिक्षा विभाग ,शिक्षण संस्थानों, शिक्षकों को स्वयंमेव संज्ञान लेते हुए उठाना चाहिए था। शासन के समक्ष पाठ्य पुस्तक में निहित गलत जानकारी का विरोध दर्ज किया जाना चाहिए था। शिक्षा संस्कृति उत्थान आंदोलन ने शिक्षा में चल रहे षडयंत्र को उजागर कर सब की आंखें खोल दी है। इसलिए भविष्य में शिक्षा सामग्री से ऐसा अनुचित व्यवहार नहीं होगा अब यह अपेक्षा तो की ही जा सकती है।  शिक्षा बचाओ आंदोलन ने अपनी यात्रा 2004 से आरंभ की  और  24 मई 2007 को इसी संगठन ने शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास नई दिल्ली का स्वरूप लिया ताकि इस संगठन को स्थायित्व प्रदान हो सके और भविष्य में शिक्षा एवं संस्कृति के लिए कार्य करते हुए, आवश्यक संबंधित विषयों को समाज के सामने रखने की निरंतरता बनी रहे। वर्तमान में यह न्यास भारत के कुछ एक राज्यों को छोड़कर सभी राज्यों में शिक्षा और संस्कृति के उत्थान के संकल्प के साथ पूर्ण समर्पण एवं क्षमता के साथ कार्य कर रहा है। अब इसे हर वर्ग का सहयोग एवं समर्थन भी मिल रहा है। इस समय हम स्वतंत्रता का अमृत उत्सव मना रहे हैं। यह उत्सव हमें गलत , अन्याय , अनुचित के विरुद्ध आवाज उठाने की सीख देता है ।यह गर्व की बात है कि इस आंदोलन /न्यास ने भी शिक्षा की पाठ्य सामग्री से उन अंशों को आजाद कराया जो गलत थे, अप्रमाणिक थे ,भ्रम पैदा करने वाले थे और भारतीय संस्कृति के अनुकूल नहीं थे। यह आंदोलन निश्चित रूप से भविष्य के लिए अभिवावकों, शिक्षाविदों, प्रबुद्ध नागरिकों को शिक्षण सामग्री के प्रति सजग और सचेत रहने की सीख देता है। डाॅ. मनमोहन प्रकाश।

रिपोर्टर :  चंद्रकांत  पूजारी

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