देश प्रेम।

भोपाल : 15 अगस्त एक बालक गणतंत्र दिवस के लिए बनाई गई जंडियां बेच रहा था वह बच्चा चमचमाती कार की ओर बढ़ा और एक रुपए में झंडिया खरीदने के लिए आग्रह करने लगा उसमें बैठे युवकों ने दो शराब की खाली बोतलें निकालकर उस बालक को देना चाहा एवं उसके बदले दो झंडे की मांग करने लगे उस गरीब बालक ने बोतलों के बदले राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक देने से इनकार कर दिया उस मासूम बालक के अंदर के स्वाभिमान देश प्रेम मातृभूमि के प्रेम की भावना ने मदहोश एवं युवा वर्ग के मुंह पर राष्ट्रप्रेम का तमाचा मार कर उन्हें कटघरे में खड़ा कर दिया। 

देश प्रेम दो शब्दों से मिलकर बना है देश और प्रेम जिसका अर्थ होता है अपनी मातृभूमि, मातृभाषा और राष्ट्रीय ध्वज से प्रेम करना।अपनी भारत माता,देश के लोगों से,देश की मिट्टी से, संस्कृति से, प्यार करना देश की प्रगति समृद्धि के लिए काम करना।जिस देश की जनता,नेता,मीडिया देश हित मे सोचती और अपने देश से प्यार करती है सामाजिक आर्थिक स्थिति को सुधारने की दिशा में काम करती हैं। उस देश को आगे बढ़ने से कोई भी नही रोक सकता। 
देशभक्ति एक गुण है जो हर व्यक्ति में होना चाहिए। मातृभूमि के लिए हमारे क्या कर्तव्य होना चाहिए इसको स्कूलों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित होना चाहिए।जिससे बच्चों के अंदर मातृभूमि के प्रति प्रेम की भावना जागृत हो सके।

देशप्रेम की भावना सबसे पहले भारत के लोगों में विशेष रूप से ब्रिटिश काल में देखी गई थी बिस्मिल अजीमाबादी ने तो बिगुल बजा दिया था और कहते थे "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है।" उस समय लोगो के अंदर आजादी के प्रति एक जुनून था परतंत्रता की बेड़ियों से अपने देश को अंग्रेजों के चंगुल से छुड़ाने के लिए कितने ही वीर शहीद हो गए उनका एक ही उद्देश्य था भारत माता को अंग्रजो की गुलामी की जंजीरों से स्वतंत्र कराना।जिसके लिए हमारे देशभक्तों ने जनता को जगाने के लिए कई नारे दिए।जैसे अंग्रेजों भारत छोड़ो,स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, इंकलाब जिंदाबाद वंदे मातरम,सत्यमेव जयते, करो या मरो आदि।

ब्रिटिश काल में भारत को आजाद कराने के लिए लोगों में जुनून था,प्रेम था। तन मन धन त्याग करने की न्योछावर करने की भावना थी भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव जैसे युवक आजादी के लिए हंसते-हंसते और गाते हुए "माय मेरा रंग दे बसंती चोला,माए रंग दे बसंती चोला" फांसी पर चढ़ गए। चंद्रशेखर आजाद, वीर सावरकर, लाला लाजपत राय, सुभाष चंद्र बोस जैसे देशभक्तों ने अंग्रेजो के अनेको जुर्म सहते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी या कठोर सजाए काटी।
और अंग्रजों को मजबूर कर दिया देश को छोड़ने पर लेकिन आज के युवा आंदोलन करते हैं देश के टुकड़े करने के नारे लगाते है, सेना को पत्थर मारते हैं, आराजकता फैलाते सब अपने स्वार्थ के लिए,अपने हित के लिए ,स्वार्थ के लिए सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं इसमें कहीं ना कहीं नेताओं और मीडिया का भी हाथ है जो उन युवाओं को वोटबैंक और टीआरपी के लिए बहकाते है जो देशहित मे नही है।देश  एवं मातृभूमि के प्रति प्रेम मानव के हृदय में जलने वाली ईश्वरी ज्वाला है हर देश वासी के मन में देश के प्रति ईमानदारी,कर्तव्यनिष्ठा होना चाहिए। युवा वर्ग भारतवर्ष की नींव है, स्तंभ है,भविष्य है उनको भाषणों द्वारा राष्ट्रीय गीतों द्वारा पंपलेट द्वारा जुलूस निकालकर बैठकों का आयोजन करके लोगों में देश प्रेम की भावना जगाए रखना चाहिए देश प्रेम एवंp मातृभूमि की ज्वाला को भावना को जलाए रखना चाहिए किसी के द्वारा कहा गया है-
"वह खून कहो किस मतलब का जिसमें उबाल नहीं,
वह खून कहो किस मतलब का जो आ सके देश के काम नहीं।"
हम अपने देश को मां मानते है। क्या सच मे हम उसे मां की तरह प्यार करते है? कूपर ने कहा था "इंग्लैंड में कितनी भी कमियां क्यों ना हो फिर भी मैं अपने देश से प्यार करता हूं मां ने हमें जन्म दिया लेकिन हम इस देश की धरती की गोद में खेल कर बड़े होते हैं, को हमको जल देती। क्या हमको भारत देश ने अपनी गोदी में नहीं खिलाया?क्या अपनी विपुलता से हमारा पालनp-पोषण नहीं किया?क्या अपने हृदय से लगाकर हमें सुरक्षा प्रदान नहीं कि?
  सच्चा देशभक्त वही है जो अपने देश को सुधारने में भारत की प्रगति के लिए जितना हो सके उतनी कड़ी मेहनत करके देश के निर्माण में पूर्ण योगदान देते हुए आसपास के सभी लोगों से ऐसा करने के लिए प्रेरित करें। 

"सच्चा प्रेम वही है जिसमें तृप्ति आत्म बल पर हो निर्भर त्याग बिना  निष्प्राण प्रेम है करो देश पर प्राण निछावर।"
मनुष्य विदेश में कहीं भी चला जाए लेकिन उसके हृदय में देश प्रेम की हिलोरे उठती हैं आखिर वह अपने देश लौट आता है पशु पक्षी सवेरे से दाना पानी खाकर पीकर शाम को अपने घोसले में लौट आता है यह उसकी मातृभूमि देश प्रेम ही तो है सच कहा है 
"जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरीयसी"

हर भारतीय में राष्ट्र के प्रति त्याग, बलिदान,आदर और प्रेम का भाव होना चाहिए।राष्ट्रीय पर्व 26 जनवरी 15 अगस्त को पूर्ण निष्ठा और समर्पण भाव से प्रत्येक नागरिक को मनाना चाहिए । लेकिन ये खेद का विषय है कि हमारे राष्ट्रीय पर्व खानापूर्ति मात्र बनकर रह गए है। राष्ट्रीय पर्व का मतलब छुट्टी नहीं होता है बल्कि आजादी का जश्न मनाते हुए उन शहीदों को याद करना होता है जिन वीरों ने भारत माता को स्वतंत्र कराने में अपनी प्राणों की आहुति दी  देश के प्रत्येक नागरिक को देश के प्रति अपना कर्तव्य जिम्मेदारीऔर ईमानदारी से देश हित में कार्य करे जैसे सैनिक युद्ध भूमि में प्राणों की बाजी लगाकर राजनेता राष्ट्र के उत्थान का मार्ग प्रशस्त कर के समाज सुधारक समाज का नवनिर्माण करके धार्मिक नेता मानव धर्म आदर्श प्रस्तुत करके साहित्यकार राष्ट्रीय चेतना और जन जागरण का स्वर कुकर कर्मचारी श्रमिक एवं किसान मुनाफाखोरी व तस्करी का त्याग कर।

तो यह देश पूर्व की भांति सोने की चिड़िया बन सकता है और हम गर्व से कह सकते हैं 
" जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा वो भारत देश है मेरा वो भारt देश है"
देशभक्तों से ही देश की शान है
देश भक्तों से देश का मान है 
हम उस देश के फूल है 
जिस देश का नाम हिंदुस्तान है 
गर्व से कहो हम भारत माता की संतान हैं
हमारा तिरंगा,राष्ट्रगीत हमारी आन, बान और शान है, 
मस्तक ऊंचा रहे देश का,मातृभूमि हमारी जान और पहचान है।

: लेखिका श्रीमती हरवंश डांगे रिटायर्ड प्रिंसिपल,भोपाल

 

रिपोर्टर : चन्द्रकान्त पुजारी

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