UP चुनाव में 'नेता जी' के अटके, लटके, झटके के अनोखे किस्से, देखें...

UP misson 2022: योगी सरकार में मंत्री और विधायक रहे कई नेता बागी होकर अपने पद से इस्तीफा देते हुए पार्टी भी छोड़ दी है. इनमें से ज्यादातर ने सपा ज्वाइन कर ली है. रविवार को वन एवं पर्यावरण  मंत्री दारासिंह चौहान और इनके साथ बीजेपी के सहयोगी पार्टी, अपना दल(सोनेवाल) से विधायक आरके वर्मा ने भी अखिलेश यादव की मौैजूदगी में सपा की सदस्यता ग्रहण  कर ली. पार्टी छोड़ने की वजह लगभग सभी नेताओं ने एक ही जैसे बताए. साथ ही कार्यकाल समाप्त होने पर ही बगावत करने के सवाल पर भी लगभग सभी के तर्क एक जैसे ही थे. उन्होंने इसके लिए जनादेश के सम्मान का हवाला दिया. जो पांच वर्ष के लिए मिलता है.

बीजेपी के बागी मंत्रियों और विधायकों ने अब सपा का दामन थाम लिया है. इनमें ज्यादातर नेता वे हैं जो 2017 विधानसभा चुनाव से पहले बसपा छोड़कर बीजेपी के साथ आए थे. 2017 में होने वाले चुनाव में बागी मंत्री धर्म सिंह सैनी की तो मायावती ने टिकट तक काट दी थी. तो वहीं स्वामी प्रसाद मौर्य विधान सभा चुनाव नजदीक आते ही जून 2016 में ही पार्टी से इस्तीफा दे दिया. वहीं 2017 में इन नेताओं ने जब पार्टी बदली तो इन्हें टिकट भी मिली और चुनाव भी जीते. और ये दोनों नेता योगी सरकार में मंत्री भी बनाए गए. बावजूद इसके, अब सरकार का कार्यकाल खत्म होते ही इन नेताओं ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और पार्टी भी छोड़ दी.
जब इन्होंने सपा की सदस्यता ली तो उस दौरान एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन हुआ. हलांकि कहने को तो वे कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए ज्यादा भीड़ नहीं जुटा पाने का हवाला दिया गया. लेकिन, फिर भी कार्यक्रम स्थल खचाखच भरा पड़ा था. इस दौरान कार्यक्रम को संबोधित करते हुए स्वामी प्रसाद मौर्या ने कहा की हम जिनके साथ जाते हैं सरकार उन्हीं की बनती है. हमने बहन जी का साथ छोड़ दिया तो आज उनका कही अता-पता नजर नहीं आ रहा. इन सबके बिच उन्होंने एक और चौकाने वाली बात कहीं. जिसे बड़े गौर से समझना होगा. उन्होंने कहा कि कुछ लोगों को ऐसा भी लगता है कि हमने कार्यकाल खत्म होने पर ही इस्तीफा क्यों दिया. हमें इस्तीफा पहले ही दे देना चाहिए.
आखिरकार, वे कौन से लोग हैं जिन्हें आधार बनाकर मौर्या जी ने ये बात कही. ये हमे भी नहीं पता. लेकिन कुछ लोगों के आलम्ब के सहारे नेता जी ने अपने मन की बात जनता तक जरूर पहुंचा दी.
उन्होंने कार्यकाल खत्म होने पर ही इस्तीफा देने के अपने निर्णय के संबन्ध में बताया कि हमने ऐसा करके जनादेश का सम्मान किया. और दोबारा जनादेश का मौका आने तक सरकार को उखाड़ फेकने का इंतजार किया.
नेता जी जनादेश के इंतजार की बात कहकर अपने दोष से छुटकारा पाने का एहसास अब तो जरूर कर रहे होंगे. लेकिन जनता ऐसे जनादेश के निर्वहन करने वाले नेता जी से  आखिर कितने कार्यकाल गुजारने का इंतजार करे.
स्वामी प्रसाद मौर्य, धर्म सिहं सैनी और उनके साथ सपा में आए कुछ बागी विधायक, कई बार से सत्ता मे रहकर जनादेश का इंतजार करते- करते सत्ता की मलाई चख रहे है. ये नेता बसपा के पुर्ण बहुमत की सरकार में भी रहे.बीजेपी के योगी सरकार में भी रहे. और सपा सरकार में मुख्य विपक्षी की भूमिका में भी रहे. जिस सपा के नीतियों और कार्यो का ये विरोध करते रहे आज उसके साथ आकर मंच भी साझा करने लगे हैं.
तर्को के आधार पर सफाई पेश करने वाले नेता चुनाव से चंद दिन पहले क्या क्या नहीं कह जाते. वे जनता के लिए सभी उपयोगी सुख सुविधा देने के बड़े बड़े वादे भी करते है.वे उन सबका जिक्र भी कर जाते हैं जो वर्तमान परिस्थिति में जनउपयोगी हो.

जनउपयोगी शब्द से उपयोगिता का सिद्धांत याद आ रहा है. लंदन के एक सुप्रसिद्ध दार्शनिक जर्मी वेंथन ने उपयोगिता का सिद्धान्त दिया. जिसमें उन्होंने बताया कि यह मानव जाति के कल्याण का प्रतिनिधित्व करता है. जो युक्तियुक्त तर्को के आधार पर मानव की दशा सुधारने को महत्व देता है. साथ ही प्रभावशाली राज्य विधायन के माध्यम से जनता के स्तर को उच्चा उठाने के लिए वास्तविक प्रयासों को सर्वाधिक महत्व भी देता है.
15 जनवरी 1748 को हाउन्सडिच लंदन में पैदा होने वाले वेंथम को यह सिद्धान्त दिए करीब 2 शताब्दी से ऊपर हो गए. इनकी ये थ्योरी भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में पढ़ी जाती है. लेकिन हमारा देश आज भी लोक कल्याण और मानव की दशा सुधारने के नाम पर राजनीति का शिकार ही होता रहा है. जिसमें ज्यादा योगदान कुछ स्वार्थवादी और उन बाचाल नेताओं का रहा है, जो अपने तर्को के बलबुत्ते सच्चाई को छिपाने का दम रखते हो.
बीते दिन बीजेपी छोड़ने वालों में स्वामी प्रसाद मौर्य का नाम सबसे दमदार नेताओं में रहा. हलांकि इस दौरान 2 और मंत्रीयों समेत कुल 11 विधायकों ने भी इस्तीफा दिया.स्वामी प्रसाद मौर्य की बात करे तो उन्होंने उचांहार विधानसभा सीट से कई बार चुनाव लड़ा. वे लोकदल और जनता दल के टिकट पर भी कई बार चुनाव लड़े. लेकिन जीत नहीं सके 1991 से 1995 तक जनता दल में रहें. लेकिन जब मायावती पहली बार सीएम बनीं तो उन्होंने बसपा का दामन थाम लिया. 1996 में वे पहली बार डलमऊ सीट से विधायक बने. इसी सीट से 2002 में भी जीतकर वे विधानसभा पहुंचे. इस बीच वे मायवती सरकार में मंत्री भी रहे. लेकिन 2007 में उन्हें बसपा के लहर में भी हार का मुंह देखना पड़ा. 2009 में होने वाले उपचुनाव में बसपा ने उन्हें कुशीनगर जिले के पडरौना से उम्मीदवार बनाया. और उन्हें जीत भी मिली. इसी विधानसभा सीट से वे दोबारा चुनाव जितकर सपा सरकार में नेता प्रतिपक्ष भी रहे. 2017 विधानसभा में पडरौना विधानसभा सीट से ही वे बीजेपी के भी उम्मीदवार रहे. उन्हें तीसरी बार भी यहां से जीत मिली. और योगी कैविनेट में श्रम मंत्री की कुर्सी भी मिली.लेकिन अब वे बीजेपी के बागी होकर सपा में शामिल हो गए हैं.
ऐसे में अब देखने वाली बात होगी कि जिन नीतियों का हवला देकर उन्होंने सपा का दामन थामा है उनके साथ वे कितना खरा उतर रहे हैं.और सपा के साथ वे कितने दिनों तक समय गुजार पाते हैं.

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