कालाष्टमी आज सावन मास में इस दिन का खास महत्व है जानें पूजन विधि

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार हर महीने कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी व्रत रखा जाता है. इस दिन कालभैरव की पूजा की जाती है. कालभैरव भगवान शिव के ही अवतार माने जाते हैं, इसलिए भगवान शिव के प्रिय सावन मास में इनके व्रत का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है.

 

 

कालभैरव भगवान शिव के ही अवतार माने जाते हैं, इसलिए भगवान शिव के प्रिय सावन मास में इनके व्रत का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है. कहा जाता है कि इस दिन जो भी भक्त कालभैरव की पूजा करता है वो नकारात्मक शक्तियों से दूर रहता है. हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार हर महीने कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी व्रत रखा जाता है. इस दिन कालभैरव की पूजा की जाती है. कालभैरव भगवान शिव के माने जाते हैं, इसलिए भगवान शिव के प्रिय सावन मास में इनके व्रत का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है मान्यता के अनुसार कलियुग में काल भैरव की उपासना करने से शीघ्र फल मिलता है. आइए जानते है काल भैरव को प्रसन्न करके मनचाहा फल पाने के लिए कालाष्टमी पर कि पर किस तरह करें पूजा. इस महीने 31 जुलाई को कालाष्टमी मनाई जा रही है. मान्यता है कि भगवान शिव उसी दिन भैरव के रूप में प्रकट हुए थे. इस दिन मां दुर्गा की पूजा का भी विधान है. 

 

                                              

 

भैरव पूजन का महत्व- 

भैरव जी की पूजा व भक्ति से भूत, पिशाच एवं काल भी दूर रहते हैं. सच्चे मन से भैरव की पूजा करने से रुके हुए कार्य अपने आप बनते चले जाते हैं. माना जाता है कि कालाष्टमी के दिन कालभैरव की पूजा करने से सभी तरह के ग्रह-नक्षत्र और क्रोर ग्रहों का प्रभाव खत्म हो जाता है. सबसे मुख्य कालाष्टमी को कालभैरव जयंती के नाम से जाना जाता है.

 

                          
 

काल भैरव की पूजन विधि-

इस दिन सुबह जल्दी उठ कर स्नान करने के बाद व्रत का सकंल्प करना चाहिए. इसके बाद किसी मंदिर में जाकर भगवान शिव या भैरव के मंदिर में जाकर पूजा करें. इसके बाद शाम को शिव पार्वती और भैरव  की पूजा करनी चाहिए. भैरव को तांत्रिकों का देव कहा जाता है. यही वजह है कि उनकी पूजा रात को होती है. भैरव की पूजा करने के लिए धूप, दीपक, काले तिल, उड़द और सरसों के तेल से पूजा कर आरती करें. व्रत कोलने के बाद काले कुत्तेर को मीठी रोटियां खिलाएं. 


काल भैरव मंत्र-

ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम: 

 

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