एक राष्ट्रवादी नारी

लेख 

शीर्षक  एक  राष्ट्रोबादी नारी

लेखिका-निवेदिता मुकुल सक्सेना झाबुआ

भारत मे आध्यात्मिकता व वेदांत के प्रभावशाली गुरु स्वामी विवेकानन्द जी उनका जन्म कलकत्ता व मृत्यु भी पश्चिम बंगाल मे ही हुई ।देश के विकास मे अहम भुमिका हमारे देश के युवाओ की भागीदारी से होती हैं जहा ऊर्जा,नवनिर्माण, उच्च संकल्पनाओ का संसार होता हैं "जागो युवा जागो" शायद कुछ ऐसा ही।

    ईश्वर ने नारी को ममत्व, सम्वेदनशील व प्रक्रतीप्रदत्त भावुकता से परिपूर्ण  बनाया हैं यही कारण है कि वह मानवीय संवेदना को सबसे पहले समझती हैं ।और यही कारण रहा हैं देवी पूजन मे नौ देवियो को विभिन्न रुपो मे उन्हे कुल माता की रक्षा स्वरूप पूजा जाता रहा हैं।
    वही नारी राष्ट्र के निर्माण को सशक्त कोई बनाती हैं तो भारतीय संस्कार व संस्क्रति के परिप्रेक्ष्य मे हम कह सकते हैं अमुल्य योगदान नारी का होता हैं क्योंकि वह कई रिश्तो को अपने सार्थक परिवेश को अपने पल्लू मे गांठ की तरह बाँधकर कई पीढियो को संस्कारित करती आयी हैं। 

      ऐसे ही भारत मे कुछ महान नारीया सत्ताधारी भी रही। हाल ही मे टी  वी पर एक सीरियल लगत देखने को आ रहा "अहिल्याबाई " मन प्रसन्न हुआ रग रग में मानव सेवा व समाज सेवा का जज्बा ओर जुनून व संस्कारो को सहेजे पारिवरिक मूल्यो को सम्हाले सरल सहज एक सत्ताधारी नारी जिन्हे देखतें ही अपना सिर "आदर व सम्मान" से अपने आप झुक जाता है। हो भी क्यु ना जिन शासक प्रशासक के संरक्षण मे रहते हैं उनसे यही तो अपेक्षा जन जन की रहती हैं और सोने पर सुहागा हम मानते है जब नारी स्ताधारी होती हैं अथार्त आध्यात्म वेदांतो का ज्ञान,      ममत्व, दर्द,सेवा जागृति, व  देश के विकास मे दुरदृष्टिता का समावेश जो देश की सुरक्षा  संरक्षण के लिए अतिआवश्यक हैं। आखिर ऐसे ही नही मालवा इंदौर व महेश्वर का नाम विकास के दौर मे हमेशा अग्रणी रहा है कारण वहा के अब तक के शासकों ने रानी अहिल्याबाई की सत्ता के सिद्धान्त को स्वीकार करते आये है। हालाकि तब लोकतंत्र नही था अब हैं ये भी सोचने की बात हैं।
        वही हम झांसी की रानी लक्ष्मीबाई व रानी अवंति बाई को भी याद करना भी स्वाभाविक हैं जिन्होने 1857 की क्रांति मे राज्य की   रक्षा हेतू प्राणो को न्योछावर कर दिया। 1857 की क्रांति भी कुछ आज परिप्रेक्ष्य से मुझे मेल खाती दिख रही हैं बस फर्क तब प्रत्यक्ष प्रहार होते थे अब अप्रत्य्क्ष होते हैं जनता की आड़ मे तब ब्रिटिश व मुगलो ने देश मे अपना दबदबा बना रखा था । जो मुल भारतीयो की भावानाओ को किसी न किसी तरह आघात पहुचाती रही व असंख्य भारतीयो के प्राणो की बलि चढी। तब भी महिला शासक पीछे नही हटी जिन्होने राज्य रक्षा हेतू अपनी जनता की रक्षा के लिये अपने प्राणो की  परवाह नही की।
          आज बार बार उनका स्मरण आना स्वाभविक हैं जब देश के नाम पर कोई सत्ताधारी नारी अपने राज्य मे विद्रोह व गुण्डागर्दी को जन्म देती हुई अपने राज्य को "खेला होबे" के उदघोष  कर जनता के खुन से   स्वयं का अभिषेक कर उनका अमानवीय शोषण करती आ रही और देश द्रोही हरकतों को अपने खूनी दामन मे समेटे रोहिँग्यो जेसी अमानवीय प्रजाति को पालती पोसती व उनका संरक्षण करती  चली आ रही। जिसके दिल व दिमाग में सिर्फ एक ही सपना चल रहा भारत में  विनाशकारी सम्भावनाओ को जन्म देना  व 1857 की तरह ब्रिटिश व मुगलों के आधिपत्य की पुन: स्थापना करना। और हो भी रहा क्योंकि भारतीय जनता अभी कोरोना वायरस के संक्रमण से ही नही उबर पा रही उसका पुर्ण फायदा इन दमनकारी नीतियो के द्वारा राष्ट्रबादि नारी ने उठाया।
इसके लिये वो किसी भी हद को पार कर सकती हैं स्वाभविक हैं "खैला होबे" शब्द उनकी स्वच्छ मानसिकता का परिचायक हो जो राज्य की सुरक्षा व विकास को परे रखकर जीत के उपरांत ही रक्त रंजित राज्य के आम दृश्यो को अवतरित कर रहा हैं। मुझे ध्यान आ रही   कुछ अन्ग्रेजी फिल्म जोम्बी के (जिंदा लाश जो इन्सानो को खाती हैं) की तरह उनका चरित्र उभर रहा हैं। क्या ये जोम्बी राष्ट्रवादी नारी बन सकती हैं क्या यही जनादेश का गलत फायदा उठा रही । जहा मन्दिर तोडने व धर्म नष्ट भ्रष्ट करना ही सिर्फ इस राष्ट्रबादि नारी का मुल उददेश्य है एसी नारी मुझे डाकुओ के सरगना की तरह लगीं ।डाकू भी राष्ट्रवादी होते हैं किन्तु इन्होने उस सीमा को भी पार कर दिया काला जादू भी पृकृति की सीमा मे रहकर किया जा सकता हैं आखिर प्रभू की परम सत्ता चरम पर आकर अपना परिणाम देगी ही है ।
      ऐसे मे बार बार मुगलों की जब आगमन भारत में हुआ था तब इसी प्रकार मुगल साम्राज्य गंदगी के साथ देश को नष्ट भ्रष्ट कर राज्य करते आये जहा डर , विद्रोह, आराजकता का जगह जगह व्याप्त थी लेकिन आज जब विश्व कोरोना महामारी के गर्त मे आता जा रहा वही असंख्य विकृतिया देश मे उजागर हो रही जिनके स्पष्ट परिणाम मीडिया स्वयं दिखा ही रहा हैं।

      बार बार सोचने पर मजबुर करती फिर वही बात एक राष्ट्रवादी नारी जरूरी नही कि वह सत्ताधारी हो, एक ग्रहणी भी हो सकती हैं जो अपने विचारो से एक राष्ट्रभक्ति से औतप्रोत परिवार की संरचना बनाती हैं और उसे विभिन्न रंगो से सजाती है।  जहा वेदांत के रंगो से सजा आध्यात्म का समावेश होता हैं। और उसकी प्रकाशित किरणें अपने आस पास के वातावरण को भी इंद्रधनुषी रंगो की तरह प्रसारित करती है।

जिम्मेदारी हमारी

 बात किसी पार्टी के समर्थन की नही वरन राष्ट्रवादी विचारो के चिंतन मनन की है तब जब राष्ट्र का कोई राज्य संकट के घेरे मे हो जहा स्वामी विवेकानन्द जी ने जन्म लिया जहा कण कण मे भारतीय संस्कार व संस्कृति का जन जन अटूट जज्बा रहा हो उस राज्य के हितो के संरक्षण की।  एक राष्ट्रबादि नारी से उस राज्य को बचाने की।

 रिपोटर: चंद्रकांत  पूजारी

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