शीर्षक- शिक्षित भारत में समस्याओं से घिरी शिक्षा को कब समाधान मिलेगा ??

लेखिका सुनीता कुमारी
पूर्णियाँ बिहार ।

"शिक्षा" शब्द सुनने के साथ ही हमारे मन में एक ऐसी उम्मीद जगती है ,जैसे हमारी हर समस्या का समाधान हो जाएगा। यह उम्मीद ध्रुव सत्य भी है।ज्ञान वह प्रकाश पुंज है जो जीवन बेहतर बनाता ही है साथ ही जीवन में आनेवाली हर समस्याओ का समाधान भी करता है।

इस धरती पर शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो शिक्षित होना नही चाहता होगा।पारिस्थितिवश भले ही व्यक्ति शिक्षा से वंचित रह जाए परंतु शिक्षित होने की लालसा उसके मन में जीवनपर्यंत रहती है,और होनी भी चाहिए।

हमलोगों में लगभग हरकिसी ने समाज में बहुत सारे लोगो को अफसोस करते एवं ये कहते सुना होगा  कि,अगर उन्हे बेहतर शिक्षा ग्रहण करने का मौका मिलता तो वे भी जीवन में बहुत अच्छा करते।
अशिक्षित रहकर मनचाहा न कर पाने का अफसोस गाहे बगाहे उनके मुख से निकलता रहता है एवं वैसे लोग अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देने का प्रयास करते है।

परन्तु तकदीर यहाँ भी साथ नही दे रही है।शिक्षा ग्रहण करने के रास्ते में आजादी के 75वाँ वर्ष में भी कांटे ही कांटे है।एक साधारण परिवार के बच्चों के लिए अब भी शिक्षा ग्रहण करना मील का पत्थर जैसा हो गया है।भौतिकवादिता की होड़ जैसे जैसे जैसे बढ़ती गई वैसे वैसे शिक्षा से सेवाभाव समाप्त होता गया। शिक्षा का व्यवसायीकरण होता गया।
 शिक्षा देना व्यवसाय बनता गया एवं शिक्षा अर्थ के अधीन हो गई। जो लोग आर्थिक सम्पन्न है,उनके लिए कोई मुश्किल नही है परंतु मध्यवर्ग एवं निम्न वर्ग के लिए शिक्षा ग्रहण करने के मार्ग में मुश्किले ही मुश्किले है।
वर्तमान में बच्चों को शिक्षा दिलाने से पहले बच्चों के माता पिता को मोटी मोटी रकम जुटानी पड़ती है।
बच्चों की परीक्षा के साथ-साथ माता पिता को भी हररोज अर्थ अर्जन की परीक्षा देनी पड़ती है।
सरकारी शिक्षण संस्थान में शिक्षा सरकारी नीतियों की बली चढ़ी हुई है एवं प्राइवेट संस्थानों ने फीस के नाम पर लूटपाट मचाकर रखा है।मोटी मोटी फीस की रकम ,डोनेशन आदि ने शिक्षा की कमर तोड़ कर रख दी है।
हमारे समाज में सामान्य वर्ग के जो व्यक्ति हिम्मत कर रहे है बच्चों को प्राइवेट संस्थान में  पढ़ाने की हिम्मत कर रहे है ,उनके बच्चे अच्छा कर रहे है ,जो लोग हिम्मत नही कर पा रहे है उनके बच्चें काबिलियत होनें के बाद भी नौकरी और बेहतर रोजगार के लिए दरदर भटक रहे है।

शिक्षा में आए हर तरह की समस्याओं के लिए पूर्णरूपेण से भारत की शिक्षा नीति व क सरकार  की उदासीनता जिम्मेदार है।

एक ओर जहाँ आजादी के बाद से ही भारत को शिक्षित देश बनाने के लिए प्रयास किये जा रहे है ,अनिवार्य शिक्षा पर बल दिया जा रहा है वही, शिक्षा की ठोस नीति न होने के कारण यह प्रयास बेहतर परिणाम नही दे रहा है।

आजादी के बाद भारत की परम्परागत शिक्षा का आधुनिकीकरण न करके अंग्रेजो द्वारा बनायी गई शिक्षा नीति का अनुसरण अब भी जारी है,

जबकि हमारी परम्परागत शिक्षा व्यवस्था रोजगार को बढ़ावा देनेवाली विभिन्न तरह के कौशल को बढ़ावा देनेवाली थी,बस भारत सरकार को उसे आधुनिकीकरण के द्वारा बढ़ावा देना चाहिए था,ना कि अंगेजो की शिक्षा नीति का अनुसरण करना चाहिए था।

अंगेजो की शिक्षा नीति ने भारत से स्वरोजगार को दिशाहीन कर दिया। भारत कृषिप्रधान गांवो का देश है कृषि से जुड़े व्यवसाय ग्रामीण क्षेत्र से समाप्त होते गए। लोकल स्तर पर कुटीर उद्योग, लघुउघोग यहाँ तक की सरकार के द्वारा ग्रामीण इलाके में बनाए गए छोटे छोटे कल कारखाने भी बंद पड़े है ?

जिससे बेरोज़गार लोगो की सारी भीड़ शहरो की तरफ भागती रही है ।ग्रामीण क्षेत्र में सिवाय कृषि के कुछ भी नही रहा।जिसने भारत में बेरोज़गारी बढ़ा दी।

सरकार के द्वारा आए दिन व्यवसायिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए व्यवसायिक शिक्षा पर बल दिया जाता है कौशल विकास की योजनाएं चलाई जाती है मगर ये योजनाएं भी दिशाहीन नीति की बली चढ़ती जा रही है।

दूसरी ओर सरकार के द्वारा पहले प्राइवेट शिक्षण संस्थान को फलने फूलने के लिए फ्री छोड़ दिया गया है।सरकार के नाक के नीचे प्राइवेट शिक्षण संस्थान मनमानी करते रहे ।आए दिन एक के बाद एक शिक्षण संस्थान खुलते गए एवं सरकारी विद्यालय की स्थिति दिन ब दिन कमजोर पड़ती गई।

वर्तमान में प्राइवेट स्कूल और कोचिंग संस्थान कुकुरमुता की तरह हर छोटे बड़े शहर में भरा हुआ है जहाँ शिक्षा का कोई स्तर नही है फिर भी ये दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे है और सरकारी विद्यालय की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।
सरकार की नीतियो ने पहले सरकारी विद्यालय की नींव हिला दी ,अब जब सरकार के हाथ से बात बाहर हो चुकी है तो पूरा शिक्षा तंत्र को ही प्राइवेट करने की बात हो रही है।

जबकि सरकार की पूरी पकड़ प्राइवेट शिक्षण संस्थानों पर होना चाहिए था।सरकार के संज्ञान में ही प्राइवेट स्कूल और कोचिंग संस्थान चल रहे है पर ,सरकार के द्वारा मूक बधिर का रवैया हमेशा से चला आ रहा है।

तीसरी सबसे बड़ी मुश्किल आजादी के बाद जनसंख्या वृध्दि के अनुसार शिक्षण संस्थानों की है,जिस कारण बच्चें शिक्षा से वंचित है।जो क्षेत्र विकसित है वहाँ शिक्षितों की भरमार है।बेरोजगारी की समस्या वहाँ चरम पर है वही कुछ क्षेत्र ऐसे है जहाँ शिक्षित व्यक्तियों की जरूरत होते हुए भी रोज़गार होते हुए भी शिक्षित एवं कुशल व्यक्तियों की कमी बनी हुई है।यह असंतुलन भी शिक्षा के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है।

शिक्षा को राजनीति जामा पहनाना भी सरकारी शिक्षा संस्थानों के लिए  अभिशाप साबित हुआ है।वर्तमान में शिक्षकों की नियुक्ति की सरकारी प्रकिया ने शिक्षा का ह्रास कर डाला है ।

योग्यता को दरकिनार कर राजनीति ईकाई द्वारा शिक्षको की बहाली ने शिक्षकों की योग्यता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है जिस कारण प्राइवेट शिक्षण संस्थान की तरफ लोगो का झुकाव बढ़ा है।सरकारी स्कूलो से बच्चे नगण्य हो रहे है।वही शिक्षको को जनगणना ,चुनाव,मध्यान्ह ,भोजन के अलावा और भी कई कार्यक्रमों में लगाकर रखा जाता है जिस कारण बच्चों की शिक्षा दीक्षा बाधित हो रही है।

सरकार के द्वारा जहाँ कोशिश जारी है कि ,बच्चे सरकारी संस्थान में आकर पढ़े वही बच्चों विद्यालय को समाज सुधार की जिम्मेदारी दे दी गई है ।वर्तमान में सरकारी विद्यालय में कैसे पढ़े बच्चे की उपस्थिति कैसे बढ़े इस बात पर ध्यान देने की जगह, मतदान दिवस ,नशा मुक्ति दिवस, पृथ्वी दिवस पर्यावरण दिवस आदि बहुत सारे दिवस मनाये जाने की परम्परा चल पड़ी है ,हर सप्ताह कोई न कोई दिवस शिक्षण संस्थान में मनाया जा रहा है जिससे बच्चे विद्यालय तो आते है मगर शिक्षा ग्रहण करने की जगह अपनी सारी ऊर्जा दिवस मनाने में व्यर्थ गंवाकर चले जाते है।

जबकि होना यह चाहिए कि ,बच्चो के पाठ्यक्रम को ही सुदृढ़ किया जाए ताकि बच्चों समाजिक ,मानसिक, शारीरिक तथा सांस्कृतिक विकास हो सके ,रोज़गार प्राप्त या स्वरोजगार के द्वारा बेहतर जीवन जीवन जी सके।सरकार को एवं आम जनता को इस दिशा में विचार करना होगा,एवं विद्यालय को शिक्षा का ही मंदिर बनाकर रखना होगा ताकि देश का हर बच्चा बेफिक्र होकर पढ़ सके।

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