खून थूकने वाले शायर कि गज़ब है दास्तान!

मैं जो हूँ जॉन एलिया हूँ जनाब
इसका बेहद लेहाज़ कीजिएगा

नया एक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम

ये शेर उस शायर का है जो शायरी की बंदिशों को तोड़ कर शेर कहता है एक बेपरवाह शायर जो शायरी से ज़्यादा अपने  मुनफरीद लहजे के लिए जाना जाता है जिसे जॉन एलिया कहते हैं। जॉन की शायरी के बारे में बात करने से पहले थोड़ा उनको जान लेते हैं।जॉन का जन्म 14 दिसंबर 1931 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में हुआ वही अमरोहा जो आम और रोहू के लिए मशहूर है,8 नवंबर 2002 को कराची में उन्होंने अंतिम सांसे लिया।  1947 में विभाजन के 10 साल बाद 1957 में भारी मन के साथ जॉन पाकिस्तान चले गए । हिन्दुस्तान से तो जॉन चले गए थे मगर अपना दिल यही छोड़ गए थे।पाकिस्तान जा कर वो लिखते है।

हम तो जैसे यहाँ के थे ही नही।
धूप के थे सायबां के थे ही नही।।

जॉन की शायरी में एक अलग सा जुनून,पागलपन,अलहड़ पन (rough cut) मिलेगा को उन्हें दूसरे शायरों से अलग करता है। जॉन का यही अंदाज़ लोगो को अपनी ओर खींचता है खास कर युवाओं को। स्टेज पर सिगरेट पीते हुए जॉन का शेर पढ़ने पर पहले भी खूब चर्चा हुई और आज भी होती रहती है । जॉन उन ज़िंदा दिल लोगों में से थे जो ज़िन्दगी को बस यूँही गुज़ारना नही चाहते थे बल्कि उसे लज़्ज़त के साथ जीना चाहते थे। जॉन कहते है कि

है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
वरना कुछ लज़्ज़त ए हयात नहीँ
क्या इजाज़त है एक बात कहूँ
वो मगर खैर कोई बात नहीँ

ये जो शेर कहने का तरीका है ये और ज़िंदगी को बेपरवाह तरीके से बांध देने का ये जॉन के अलावा दूसरे शायरों में नही मिलता।

मुशायरों में बहुत ही बेपरवाह और अलहड़ दिखने वाले जॉन असल जिंदगी में बहुत ही पढ़े लिखे और ओहदेदार शख्स थे। पाकिस्तान में लोगद कमेटी के मेम्बर थे ( हिन्दुस्तान मे जो काम हरिवंश राय बच्चन कर रहे थे जिससे देश की आधिकारिक शब्दावली official language डिज़ाइन होनी थी) साथ ही जॉन पाकिस्तान के religious education board में भी रहे हैं।

जॉन बॉलीवुड के मशहूर निर्देश कमाल अमरोही के छोटे भाई और इनके पिता भी शायर थे।शायरी का फन तो जॉन को जैसे विरासत में मिल गया हो जॉन को उर्दू के साथ साथ अंग्रेज़ी, फ़ारसी और सांस्कृति का भी ज्ञान था।

जॉन ने शायद , यानी,गुमान,गोया जैसी कई किताबें लिखी बाद में जॉन पर भी कई किताबें लिखी गईं।

अब उस शेर की बात करते हैं जिसमें जॉन खून थूकने की ज़िक्र करते हैं।अक्सर लोग इस शेर को सुन कर हैरान रह जाते हैं।

रंग हर रंग में है दाद तलब।
खून थुकूँ तो वाह वाह कीजिए।।

अब इस चर्चित शेर के पीछे की कहानी भी जान लेते हैं, जॉन की शायरी के तो बहुत दीवाने थे मगर एक मोहतरमा थी जो जॉन से इश्क़ कर बैठी थी। वो जॉन को मुसलसल खत लिखा करती थी,और वो मोहतरमा टीबी की भी मरीज़ थीं,जिसकी वजह से उनके मुंह से कभी कभी खून भी निकलता था। मोहतरमा जो जॉन को दिल दे बैठी थी मगर जॉन को उनसे इश्क़ नही हुआ और एक दिन मोहतरमा का निधन हो गया।जिस का जॉन को बहुत अफसोस हुआ,बाद में जॉन को भी टीबी हो गई, फिर जॉन ने लिखा।

शायद मुझे किसी से मोहब्बत नही हुई।
लेकिन यक़ीन सब को दिलाता रहा हूँ मैं।

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