युवा दिवस

लेखिका -निवेदिता मुकुल सक्सेना झाबुआ मध्यप्रदेश

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्त वरान्निबोधत सुरस्य धारा निशिता दुरस्यया दुर्ग पथस्ततकवयो वदन्ति।।(कठोपनिषद) अथार्त उठो जागो श्रेष्ठ ज्ञानियों के पास जाकर ज्ञान अर्जित करो ।ज्ञान के बिना इस जगत में कुछ भी उन्नति साध्य नही हो सकती।भारतवर्ष एक आध्यात्मिक भूमि रही हैं जहां ज्ञान व आध्यात्मिक चेतना का केंद्र सदियों से रहा हैं ऐसे में 12 जनवरी 1863 को भारतभूमि कलकत्ता  में  एक बंगाली कायस्थ  परिवार में विश्वनाथ दत्त व  भुवनेश्वरी देवी की छठी सन्तान के रूप में महान वेदांत विख्यात व प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु स्वामीविवेकानन्द जी का अवतरण हुआ । उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि में उनके पिता कलकत्ता हाइकोर्ट में वकील थे ,वही दादा जी सँस्कृत व फ़ारसी के विद्वान रहे।स्वामीजी ने कम उम्र में सन्यास ले लिया था । स्वामीजी का औपचारिक नाम नरेन्द्रनाथ था स्वामीजी बचपन से बहुत नटखट व कुशाग्र बुद्धि के बालक रहे उन्हें संगीत ,साहित्य व दर्शन में ज्यादा रुचि थी। परिवार में पूर्णतः धार्मिक कर्म नित्य चलते थे स्वामी जी के पिता जी कम उम्र में निधन हो जाने से पूरे परिवार का भार स्वामीजी पर आ गया था। वहां भी उन्होंने काफी संघर्ष करते हुए ब्रह्मचर्य का पालन किया ।बड़े होते होते वे गहन  आध्यात्मिक विचारक व प्रखर वक्ता के साथ जीवन सत्य को सार्थक करते लेखक बने जिसमे ज्ञान योग, कर्म योग ,ध्यान योग , राज योग आदि उनके मुख्य साहित्य रहे।
 जब स्वामी जी का जन्म भारतभूमि पर हुआ इसने स्मरण कराया कि जब जब धरती पर  धर्म की हानि होती हैं तब तब धरती पर सन्त जन्म लेते रहेंगे। ये सन्त मानव रक्षा के उद्देश्य जहाँ जहाँ कदम रखते है वहा जीवन के सत्य को प्रतिरूपित करते रहे।
 
ये भी ज्ञात है जो भी मानव सत्य की राह व  मानवीयता का जीवन जीता हैं वह संघर्षशाली जीवन को चुनौती देता हैं यही जीवन स्वामीजी का रहा।  वर्ष 1881 में स्वामीजी ने श्री रामकृष्ण परमहंस को अपना आध्यत्मिक गुरु बनाया श्री रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें नया नाम स्वामी विवेकानन्द दिया ।

स्वामी जी ने शिकागो धर्म सम्मेलन में  प्रथम वाक्य भाइयो व बहनों के उद्घोष से जहा भारत को विश्व मे एक आध्यात्मिक पहचान दिलवाई वही विश्व के प्रणेता भी बने ।  तीन वर्ष अमेरिका में रहते हुए स्वामीजी ने वेदांत को मूल मंत्र बनाया। मनुष्य में भेद ना रहे ये उद्देश्य उनके जीवन पर्यन्त केंद्र में रहा।  उन्होंने समझाया कि आध्यात्मिक विधा और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा ।अमेरिका प्रवास में स्वामीजी वहां की मीडिया के द्वारा साइक्लोनिक हिन्दू के नाम से प्रचलित हुए।

जीवन का सत्य क्या है ? हम क्यों हैं? हमारे जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए?  जीवन में जन्म से मृत्यु के बीच इस यात्रा को कैसे फ़लीभूत किया जा सके?कैसे स्वयं का ओर सभी जीव आत्माओ का कल्याण कर सके? इन सभी को स्वामीजी ने सरल और सहज रूप से समझाया।

अगर स्वामी जी की जीवनी व चलचित्र को देखा तो लगा इस महान विश्व प्रणेता ने जीवन की कठिन परीक्षाओं को चुनोती देते हुए कई अनमोल लक्ष्यों को अदम्य साहस से आध्यात्मिक रूप से  प्राप्त किया। स्वामी जी ने स्वतंत्रता संग्राम की लडाई के समय जीवन के कटु सत्यों दर्शन किये ।शिकागो में भी स्वामीजी को कई संघर्षो को चुनोती देना पडा जहाँ मानसिक ,शारीरिक  प्रताड़नाओ के बाद भी मस्तिष्क को शांत रख लक्ष्य  केंद्रित  रहे फिर चाहे भूख हो या मौसम की मार या रुकने की व्यवस्था।  शिकागो के उस मंच पर अपनी बात रखना इतना आसान नही था। लेकिन कहते है ना मन साफ हो तो ईश्वर साथ देते है । स्वामीजी एक पवित्र आत्मा थी जिनमे भारतीय दर्शन से जुड़ी  आध्यात्मिक चेतना थी उनकी दिव्यदृष्टिता ने सभी को मन्त्रमुग्ध कर दिया।

आज विश्व कई विकट समस्याओ में घिरा है चाहे कोरोना वायरस त्रासदी हो या अन्य आर्थिक ,धार्मिक चुनोतियाँ। ऐसे में पुनः स्वामी जी का स्मरण होना स्वाभाविक हैं खासकर युवा वर्ग को । क्योंकि जब तक देश का युवा सक्षम नही होगा तब तक देश के विकास की बात करना निरथर्क होगा। इसमें कोई दो राय नही कि युवाओं में अनन्त ऊर्जा निहित है जरूरत है उसे पहचानने की ।

1 आत्मविश्वास, 2 आत्मनिर्भरता, 3 आत्मचेतना,   4 आत्मसंयम और 5 आत्मत्याग  स्वामी विवेकानन्द जी के अनुसार  पांच मूलमंत्र युवाओं के चरित्र निर्माण हेतु अत्यंत आवश्यक हैं । वर्तमान परिप्रेक्ष्य में युवा पीढ़ी जिस तरह भौतिक संसाधनों की चकाचौंध में पथभ्रमित हो रही। माने या ना माने डिजिटल तकनीक का गलत उपयोग और उसके नुकसान से अनजान नशे में उलझता जूझता युवा सामान्य हो गया है ।वही सिर्फ नोकरी की चाह में ग्रहण की गई  शिक्षा पर निर्भरता एक प्रकार से कई परजीवी  (पैरासाइट युवा )बनते जा रहे हैं। आज आवश्यकता  है  भौतिकवाद में पड़े बिना समता के सिद्धान्त पर लक्ष्य पर ध्यान युवा वर्ग को केंद्रित करना ।स्वामीजी कहते थे भारत मे हर युवा ही देश के निर्माण में सहायक है ।

दिन में एक बार स्वयं से बात करे अन्यथा आप एक बेहतरीन इंसान से मिलने का मौका खो देंगे - इस सुविचार में समग्र सफलतम सूत्रों का सार निहित हैं जब तक हम स्वंय को नही जांनेगे तब तक अपनी कमियों को सुधार नही सकेंगे। वही जीवन के लक्ष्य जो स्वहित से दूर मानवीय पहलुओं से जुड़े हो जहा त्याग,धैर्य व सहनशीलता , आत्मसम्मान ,जीव दया , उद्देश्यपरक जीवन बनाये रखने की संभावना हो। स्वामीजी के सूत्र बताते है कैसे आत्मविश्वास बनाये रखना ,कैसे हमेशा सीखते रहना,कैसे अपनी कमियों को दूर करते रहना , कैसे कोई काम मुश्किल नही होता, कैसे सत्य पथ पर चलते रहना , कैसे किसी के आगे ना झुकना ।  जब जीवन सार्थकता से सत्य को स्वीकार कर मानवीय दृष्टिकोण से जुड़ा हो व लक्ष्य साधित हो ही जाता है।

आज ग्रामीण अंचल हो या शहर  फिर एक आगाज उठती नजर आ रही हैं उत्तिष्ठ जाग्रत  ओर इस अवस्था मे आने की चेष्टा भी हो रही हैं जिसमे भारतीय सनातन धर्म ओर संस्कृति  को संरक्षित करने के प्रयास भी जारी है।

स्वामीजी ने स्त्री सम्मान को सर्वोपरि कहा  स्त्रियों की शिक्षा पर उन्होंने विशेष बल दिया ।
शिक्षण व्यवस्था -स्वामीविवेकानन्द जी ने शिक्षा दर्शन का आधारभूत सिद्धांत में कहा कि शिक्षा ऐसी हो जिसमें बालक का शारीरिक मानसिक व आत्मिक विकास हो सके ।जिससे बालक आत्मनिर्भर बन सके ।ये देश के विकास  के लिए अति आवश्यक हैं ।आज नई शिक्षा नीति इन सभी पहलुओं को सार्थक करने में सहायक है जिसमे व्यक्ति विकास व चरित्र  निर्माण ही नई शिक्षा नीति का मुख्य बिंदु हैं।

स्वामी जी के अनुसार जब हम जल्दी उठकर सूर्य को उगते हुए देखते हैं उस समय चहु और नारंगी रंग की किरणें प्रसारित हो जाती हैं पूरी पृथ्वी में उजाला फैल जाता हैं तब उसकी उपासना व नमस्कार से हमारे जीवन मे भी  उजाला ले आती हैं जिससे सुदृढ शरीर व स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता हैं ।

जिम्मेदारी हमारी

हमारे लक्ष्य व कार्यो के पीछे शुभ उद्देश्य होना चाहिए और उन्हें ध्यान केंद्रित कर लक्ष्य प्राप्ति तक कार्य जारी रखना चाहिए जब तक परिणाम प्राप्त ना हो जाये।

Leave a Reply



comments

Loading.....
  • No Previous Comments found.