वैदिक धर्म से ही हो सकती है मनुष्य की उन्नतीः स्वामी अमृतानंद

मथुरा : संस्कृति विश्वविद्यालय पहुंचे श्रीमद जगदगुरु शारदा सर्वग्य पीठम के शंकराचार्य स्वामी अमृतानंद देवतीर्थ का यहां कुलाधिपति सचिन गुप्ता, विद्यार्थियों और शिक्षकों ने भव्य स्वागत किया। अपने स्वागत से अभिभूत शंकराचार्य ने कहा कि विश्व के ज्ञान का केंद्र रही शारदा पीठ काबायलियों द्वारा कब्जा किए गए कश्मीर में है और हमारे देश का संकल्प है कि हम इसको वापस लेकर रहेंगे। कश्मीर ध्यान, ज्ञान की भूमि है। कश्मीर साक्षात पार्वती है, इसको विश्व के ज्ञान केंद्र के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। 

शंकराचार्य स्वामी अमृतानंद ने बताया कि भाष्य त्रैय लिखने वाले ही आचार्य कहलाते थे। इनको शारदापीठ से ही प्रमाणित और उद्घोषित किया जाता था। भारत नाम की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा भा का मतलब ज्ञान से है और ज्ञान के प्रकाश में जो रहे वो भारत है। उन्नति सिर्फ वैदिक मार्ग से ही हो सकती है। जिसको वो ज्ञान कहते हैं उसको हम धर्म कहते हैं, जो हमारे व्यवहार में हैं। धर्म के 10 लक्षणों से ही मनुष्य पूर्ण बनता है। हमारे शास्त्रोत्र मार्ग पूरी तरह से वैज्ञानिक हैं। आज जिसको हम विज्ञान कहते हैं वह पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ है। उन्होने एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का जिक्र करते हुए बताया कि वहां एक विद्वान वैज्ञानिक ने कहा कि शोध से यह सामने आया है कि वर्ष में 24 दिन 10 घंटे अन्न न खाने वाले को कैंसर नहीं होता। मैंने उस सम्मेलन में लोगों को बताया कि हमारे यहां एकादिशी को अन्न नहीं खाते। जब विज्ञान तरक्की कर लेगा तो यह खुलासा हो जाएगा कि एकादशी के ही दिन अन्न न खाने का महत्व है। 

शंकराचार्य स्वामी अमृतानंद ने कहा कि धर्म और मनुष्य का वही नाता है जो एक पेड़ और धरती का है। पेड़ धरती में जितना गहरा जाएगा उतना ही मजबूत होगा। यदि वह गहराई में नहीं जाएगा तो उखड़कर बाजार की वस्त बन जाएगा। इसी तरह से धर्म विहीन मनुष्य बाजार की वस्तु बन जाता है। विद्यार्थियों के ह्रदय में गहराई से उतरती अपनी बातों में उन्होंने बड़े सरल ढंग से अपनी संस्कृति, धर्म के महत्व को समझाया और विद्यार्थियों के सवालों के उत्तर भी बड़ी सहजता से दिए। उन्होंने कहा कि हमारा वैदिक धर्म देवताओं, ऋषियों और तपस्वियों की हजारों वर्षों की तपस्या का फल है और पूरी तरह से वैज्ञानिक है। हम बहुत आगे हैं इसलिए किसी और का अनुकरण करने की जरूरत नहीं। 

संस्कृति विवि के कुलाधिपति डा. सचिन गुप्ता ने कहा कि विवि परिवार का यह सौभाग्य है कि श्रीमद जगदगुरु शारदा सर्वग्य पीठम के शंकराचार्य स्वामी अमृतानंद देवतीर्थ हमारे विवि में हमारे आमंत्रण पर पधारे। आपने विद्यार्थियों और शिक्षकों को जिस मार्ग पर आगे बढ़ने की दिशा दिखाई है, यह विवि उसी दिशा में आगे बढ़कर अपने देश की संस्कृति और गौरव को संवारेगा। हमें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में शारदा पीठ फिर से भारत के नियंत्रण में होगी। आपके निर्देश के अनुसार विवि में नवंबर, दिसंबर माह तक मां सरस्वती के मंदिर की स्थापना होगी, जिसका लोकार्पण आपके ही द्वारा हो ऐसी हम कामना करते हैं। इसपर शंकराचार्य ने बसंत पंचमी का दिन स्वीकृत करते हुए आने की स्वीकृति भी कार्यक्रम के दौरा दे दी। 

कार्यक्रम के शुभारंभ में संस्कृति स्कूल आफ एग्रीकल्चर के डीन डा. रजनीश त्यागी ने भारत के बंटवारे को अन्याय पूर्ण बताते हुए शारदा पीठ के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारियां दीं। उन्होंने कहा कि भारत का गौरव तब तक नहीं लौटेगा जबतक शारदा पीठ वापस नहीं आ जाती। कार्यक्रम का संचालन ट्रेनिंग सेल की अधिकारी अनुजा गुप्ता ने किया।

रिपोर्टर :  मधुसूदन शर्मा 

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