मीरा की कविताओं में, गिरिधर नागर का जिक्र

NEHA MISHRA

हिंदी साहित्य में मीराबाई ने अपनी एक अलग छाप छोड़ी है. कृष्ण भक्ति और प्रेम से परिपूर्ण मीराबाई की रचनाएं सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लेती है. मीराबाई बचपन से ही कृष्ण की भक्त थीं. गोपियों की भाँति मीरा माधुर्य भाव से कृष्ण की उपासना करती थीं. मीरा जिन पदों को गाती थीं तथा भाव-विभोर होकर नृत्य करती थीं, वे ही गेय पद उनकी रचना कहलाए. 'नरसीजी का मायरा', 'राग गोविन्द', 'राग सोरठ के पद', 'गीतगोविन्द की टीका', 'मीराबाई की मल्हार', 'राग विहाग' एवं फुटकर पद, और 'गरवा गीत' आदि मीरा की प्रसिद्ध रचनाएँ हैं. 

मीरा की इन्हीं रचनाओं में से एक है गिरीधर नागर. मीराबाई जब कोई पद लिखती हैं तो वे श्री कृष्ण के लिय सम्बोधन के रूप "गिरिधर नागर" शब्द का प्रयोग करती हैं, मीराबाई की कविताएं पदावली के रूप में प्रसिद्ध हैं, उनकी एक पदावली वहुत ही प्रसिद्ध हैं जो इस प्रकार है-

मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई। 
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।। 
तात मात भ्रात बन्धु, आपनो न कोई ॥ 
छाँड़ि दई कुल की कानि, कहा करिहै कोई। 
संतन ढिंग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोई ॥ 
असुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बेलि बोई॥ 
अब तो बेल फैल गई, आणंद फल होई ॥ 
भगति देखि राजी हुई, जगत देखि रोई। 
दासी मीरा लाल गिरधर, तारो अब मोई ॥

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