बाल मन और ऑन लाइन स्टडी एक मार्गदर्शन, क्या है हमारी जिम्मेदारी

कोरोना के रहस्यमयी सफर ने एक वर्ष से ऊपर का समय निकाल दिया । विभिन्न् उतार चढ़ाव सभी की जिन्दगी का हिस्सा बने । वही बडो के साथ साथ बच्चो की जिन्दगी डगमगाई ओर शारीरिक  व मानसिक दबाव भी बडते जा रहै है। कोरोना ने बडो से लेकर बच्चो तक को जहा घर बैठा दिया वही "ऑफ लाईन से  ऑन लाइन स्टडी " के संक्रमण काल ने छ:से लेकर सत्रह वर्ष के बच्चो को कई जगह विभिन्न कोनो में कैद कर दिया।इस उम्र में उनके शारिरीक विकास का दौर होता हैं ऐसे में अनियमित खान पान से व मोटापा व आँखो की समस्याओं ने घेर लिया।

ऑन लाइन स्टडी वर्तमान मे देश के विकास व कोरोना परिस्थितयों से निपटने का आवश्यक पहलू हैं वही जो समय संक्रमणकाल को भी दर्शा रहा हैं जब जब युग मे परिवर्तन होगा बीच का समय पोजिटिव नेगेटिव दोनो बाते सामने लाएगा ही।

कहने को कई योजनाएं इन बाल मन को सँजोने व इनके हित के लिये बनाई हैं। लेकिन समय प्रबन्धन के साथ "नैतिकता व मौलिकता "अभी भी दरवाजे खटखटा रहे। क्योंकि रिश्तो में भी सोशल डिस्टेंन्सिग आ गया है।वही जैसा कि हम सभी जानतें एक "जनरेशन गेप " माता पिता को पीछे धकेल देता है मजबुत पकड नही रह पाती या कहे माता पिता बच्चो के साथ और वर्तमान  समय के साथ तालमेल नही बिठा पाते।  हालाकि वो बच्चो को सही गलत समझाकर रिजर्व रख सकते है लेकिन बाहरी दुनिया से बचाए रखना इतना सम्भव नही क्योंकि कभी न कभी तो बच्चो को लोगो के सम्पर्क मे आना होगा।
इस काल में कुछ बाल मन को इसी बीच पढ़ने का मोका मिलता रहा या कहे मे स्वयं उसका हिस्सा रही हु । सुबह सात बजे जल्दी जल्दी माता पिता यूनिफॉर्म के उपरी आधे हिस्से को पहना कर जैसे तैसे लिंक चालू कर बच्चो को बैठा देते। वे भी वह माता पिता जो बच्चो की शिक्षा के प्रति जागरुक हैं, लेकिन वह वर्ग जो सुबह से मजदूरी या नौकरी पर निकल कर देर रात तक घर पहुचते वहा अब भी बच्चे ऑन लाइन स्टडी से अनजान है या नजरअंदाज कर रहे है। वही ग्रामिण अंचल या छोटे गांव की बात करे तो वहा मोबाइल की इस डिजिटल दुनिया से बिल्कुल ही अछूता  रहा है।
 "बाल व किशोर मन" उम्र का सबसे नाजुक दौर होता है जहा सरलता व सहजता के साथ सतत मार्गदर्शन की सख्त जरुरत होती हैं। ये सत्य हैं कि वे चाहते है कि हर बात हमारे अनुसार हो । कई बार बाल मन के साथ अधजली खीर को सुधारने वाली स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसे फेका भी नही जा सकता ना ही सही करने का कोई तरीका उस समय सूझता हैं।
एक समय पर मोबाइल से बच्चो व बडो को दुर रहने की हिदायतें दी जाती थी जो समयानुसार सही भी था वही कोरोना संक्रमण ने सभी को इस छोटे से उपकरण (मोबाइल) मे कैद कर दिया। कुल मिलाकर सब इस छोटी सी दुनिया भरी डिबिया में बन्द हो गये।
किशोरवय विद्यार्थियो को पढ़ाते हुये मेने ये समझा कि कोरोना के चलते अचानक "ऑन लाइन स्टडी" के लिए ऐडवांस  मोबाइल मिल गया। हो ना हो बाल व किशोर मन उस ही तरफ ज्यादा जायेगा जहा रंग बिरंगा देखने को मिले ।
अब वर्तमान समयानुसार इन किशोरवयो को यू टयूब या गूगल पर कयी "पोर्न वीडियो या गलत संदेश" देखने को मिल रहे है। अचानक आये इस क्रांतिकारी ऑन लाइन स्टडी परिवर्तन को समझने मे शिक्षा तन्त्र व माता पिता दोनो को असमंजस मे डाल दिया हैं फिर भी जहा इस डिजिटल दुनिया की समझ है वहा तो बच्चो को लगातार मार्गदर्शन मिल रहा लेकिन कई जगह अभी भी गलत इस्तेमाल चल रहा हैं। 

  क्या है जिम्मेदारी हमारी

शिक्षक ऑन लाइन स्टडी के पाँच से छ मिनट सिर्फ कुछ बिन्दु रोज मोबाइल के नेगेटिव व पोजिटिव दोनो पहलुओ को स्पष्ट अवश्य करे व कक्षा के अंत मे बच्चो से इन बिन्दुओ पर चर्चा अवश्य करे।

 हमे ध्यान रखना होगा जिस तरह एक पीरियड पुर्व मे नैतिक शिक्षा का लगता था अब वह भी हम विद्यार्थियो के साथ नही कर पा रहे। ऐसे मे पढ़ाते समय बीच मे भी इन बिन्दुओ को रखने से बच्चो को विषय के साथ सही ज्ञान भी मिलेगा।

विद्यार्थियो को नेट स्पेस दिलवाना अत्यंत आवश्यक हैं।इसमे ये भी बताना जरुरी हैं की यू टयूब या अन्य एप हमारे लिये क्या अच्छा व क्या बुरा हैं जिससे हमारे भविष्य पर इसका क्या प्रभाव पड सकता हैं।

 विद्यार्थियों को मस्तिष्क को ऊर्जावान बनाने वाले,ध्यान व मेड़ीटशन से जोडना अत्यंत आवश्यक है इसमें रुचि उत्पन्न करने के लिएल शिक्षक के साथ माता पिता को भी सहयोग करना होगा।
शिक्षकों का विद्यार्थियों के साथ पलको से भी ऑनलाइन स्टडी के दौरान जुड़ना जरूरी है जिससे विद्यार्थी की दैनिक क्रियाओं ओर ऑनलाइन स्टडी के प्रभावी या अप्रभावी रहने का पता लग सके।

रिपोटर : चंद्रकांत सी पूजारी

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