एक ऐसा सत्य ,, जो सिर्फ भारत में ही नही अथवा पूरे विश्व में एक चिंता जनक विषय बन गया

शीर्षक :- "देश के भविष्य की सौदागरी"

लेखक :- कमेलश डाभी(राजपूत) पाटण, गुजरात

सुनने में थोड़ा विचित्र लगेगा, पर हाँ आज कल बिस्कुट, दूध, गाड़ी, सोना , चाँदी इत्यादि वस्तुओं के अलावा बच्चों को भी खरीदा और बेचा जाता है। और ये एक ऐसा सत्य है ,, जो सिर्फ भारत में ही नही अथवा पूरे विश्व में एक चिंता जनक विषय बन गया है। हम जब अपने बचपन के बारे में सोचते है ,हम अपनी नादानियाँ और नटखट पन को लेके मुस्कुराते है, किस तरह हम अपने खिलौने से खेलते होंगे। पर कुछ बच्चे ऐसे भी होते है जिन्हें इस छोटी और भोली आयु में खिलौने की तरह ही खरीदा और बेचा जाता है। बल्कि एक ऐसी जगह भेज दिया जाता है जो उनके लिए पूरी तरह अपरिचित होती है। इन बच्चों का लगातार शोषण होता है और बल्कि एक ऐसे वातावरण में रहते है जहाँ उन्हें पारिवारिक प्रेम से वंचित होकर असुरक्षित और अनचाही परिस्थितियों में रहना पड़ता है।इस अमानवीयता के कारण बच्चे भीख मांगने और यौन शोषण का शिकार होके अपना बचपन खो देते हैं ,जिसे हम बहुत खुशी और नादानी में बिता देते है। यही बचपन किसी और के लिए श्राप की तरह बन जाता है।

बाल तस्करी अर्थात एक बच्चे का अवैध तरीके से खरीद, फरोख्त प्राप्त करना होता है। बाल तस्करी कई उद्देश्य से की जाती है। इसमें विभिन्न रूप जैसे, भीख मांगना , बाल श्रम, बंधुआ मजदूरों, जबरदस्ती विवाह, यौन हमले शोषण शामिल हैं। यही नही बल्कि पीड़ितों को ड्रग्स और हथियारों के निर्माण के लिए भी भर्ती किया जाता है। उन्हें ऐसे वातावरण में काम करने पर मजबूर किया जाता है, जहाँ उनका बचपन एक आग की भट्टी की तरह जला दिया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ बाल तस्करी को लेकर बहुत परेशानी व्यक्त करते है, पर यह अमानवीयता अभी भी जारी है। उसकी रोक पर कुछ अंतर नही पड़ा।

60000 में बच्ची, 1.5 लाख में बच्चा बेचने वाला एक गैंग; मुंबई पुलिस ने किया बड़ा खुलासा, देह व्यापार के लिए चाइल्ड ट्रैफिकिंग करने वाले गैंग; ऐसी खबरें हमारी रोज़ मर्या की जिंदगी का वो हिस्सा बन गई है, जिन्हें हम नज़रअंदाज़ ही नहीं बल्कि सिर्फ अखबारों के पन्नो तक ही सीमित कर देते है। पर ये वो बातें है जिनपे हमे खुद का ही नही बल्कि दूसरों का ध्यान भी केंद्रित करना आवश्यक है। कुछ वक्त पहले भारत के पश्चिम बंगाल और आन्ध्र प्रदेश में मानव तस्करी के 200 केस सामने आए। जिसमें अधिकांश रूप से महिलाएं एवं बच्चे शामिल थे। सर्वेक्षण में पाया गया कि बच्चों और किशोरवय लड़के व लड़कियों की तस्करी में ज्यादातर परिवार के निकट संबंधी नहीं बल्कि उनके दूर-दराज के वो संबंधी शामिल थे जिनका परिवार में अच्छा खासा आना-जाना होता है।

कई केस में पड़ोसी महिलाओं की इन तस्करी में काफी हिस्सेदारी होती है। उनका यही प्रयास होता है कि वो किस तरह एक परिवार से आत्मीय संबंध बना ले जिससे वह बच्चों के पास रहकर उनकी तस्करी कर सके। बहुत ही योजनाबद्ध तरीके से वे पूरी रेकी कर किसी परिवार के निकट घर ले लिया करती है। उसके बाद उस परिवार से घुलमिल कर उनका पूरा विश्वास जीतती है। और इस दौरान वो बच्चे या बच्ची को अपने साथ कहीं ले जाने के बहाने वह ले जाती हैं पर, बच्चा वापिस नहीं लौटता। जब ऐसे कुछ बच्चों का बचाव किया गया तो पता चला कि पड़ोस में रहने वाली काकी(चाची), बुआ या मौसी ही उन्हें इस प्रकार लेकर आईं थी। ऐसे तस्करों को सारा समूह बहुत शातिर तरीकों से काम करता है। इन अपराधियों की सांठ गाँठ - पुलिसवालों, नेताओं, उच्च अधिकारियों से होती है जिसकी वजह से वो छूट जाते हैं। और एक नए शिकार की तलाश में नया स्थान, नया घर और नया परिवार ढूंढने के लिए तैयार हो जाते है।

कोरोना जैसी महामारी जिसमे सब काम ठप पड़ गया, "नही ठप पड़ी तो बस ये बाल तस्करी" | संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट 'विश्व रोजगार और सामाजिक परिदृश्य: में बताया कि इस महामारी ने करोड़ों लोगों को बेरोज़गार बना दिया।जिसका सीधा प्रभाव गरीबी पर पड़ रहा है और बाल तस्करी जैसे अपराध दिन पर दिन बढ़ते जा रहे है। पूरे भारत मे लॉकडाउन के दौरान एक खबर ऐसी भी सामने आई जिसमे एक व्यक्ति जिसका बेटा मात्रा 13 साल का है, उसे एक दलाल के भरोसे - बिहार से कई कौसों दूर की एक चूड़ी फैक्ट्री में काम करने भेज दिया। जिसकी वज़ह थी की उनके पास खाने के लिए पैसे नही थे। उनका पूरा परिवार भूख से तड़प रहा था जबकि उस मासूम बेटे का पिता अपने परिवार से दूर किसी दूसरे शहर में फसा हुआ था।
ट्रैफिकर्स इस तथ्य से पूरी तरह अवगत हैं कि बच्चों में गलत और सही समझने की मानसिक क्षमता कम होती है। बल्कि ये भी कहा जा सकता है कि उस मासूम और भोली सी आयु में वो सबको अपनी तरह समझ कर अपराधियों पर भी विश्वास कर लेते है। इस प्रकार, वे इन अपराधियों की कुनीति से अवगत न होक उनका एक आसान लक्ष्य बन जाते है। ज्यादातर तस्कर ग्रामीण अथवा अविकसित क्षेत्रो के बच्चों की तलाश में रहते है। गरीबी, निरक्षरता, बच्चो की अधिक संख्या,अपमानजनक नैतिकता , बेरोजगारी- बाल तस्करी के कुछ ऐसे पहलू है जिनकी श्रेय में बाल तस्करी जैसा दीमक विश्व भर में पनप रहा है। कम वक्त में ज्यादा पैसे कमाने की लालसा की वजह से ही लोग बाल तस्करी के व्यापार में लग गए है। वो गरीबो को बहला कर उनके बच्चो को काम दिलवाने, अच्छी नौकरी दिलवाने का झांसा देकर शहर ले जाते है और वहाँ या तो उन्हें बेच देते है या उनसे भीख मंगवाते है। अतिनिर्धन माँ-बाप उनके बहकावे में आसानी से आ जाते है। तस्कर उन बच्चों को शहरो में ले जाकर बेच देते है। वैश्विक स्तर पर स्वस्थ अंगों की बहुत मांग है जो अंग तस्करी जैसे अपराधों को भी बढ़ावा देता है। जिसकी वजह से कई बार तस्कर बच्चों के अंगों को बेच कर पैसे कमाते है। जो बच्चे खो जाते है उनको अपराधी अगवा करके बेच देते है या उनके शरीर के अंग काट के उनसे भीख मंगवाने का काम कराते है। एक अनुमान के अनुसार हर साल पूरे विश्व मे 2 लाख से भी ज्यादा बच्चों की तस्करी की जाती है। यही नही बल्कि लड़कियों को देह व्यापार जैसे काम के लिए विवश किया जाता है। आधुनिक दुनिया में आधुनिक साधन अर्थात इंटरनेट की आवश्यकता से ऐसे अपराध और बढ़ते जा रहे है। कुछ रिपोर्ट में बताया गया है कि मानव तस्कर सेक्स ट्रैफिकिंग और फर्जी भर्ती के लिए इंटरनेट और सोशल मीडिया जैसी तकनीकों का तेजी से इस्तेमाल कर रहे हैं। कुछ तस्कर रेलवे स्टेशनों जैसी सार्वजनिक स्थान जहाँ लोगों की भीड़ बहुत होती है , वहाँ से बच्चों का अपहरण करते हैं। 5 साल की उम्र में भी लड़कियों को जबरदस्ती देह व्यापार के दलदल में ढकेलते है।और उन्हें शारिरिक रूप से विकसित दिखाने के लिए उन्हें ग्रन्थिरस इंजेक्शन देते हैं।

आये दिन बाल तस्करी की खबरे सुनने को मिलती है। बाल तस्करी एक तेजी से बढ़ता नेटवर्क है और इसे रोकना बहुत ही आवश्यक है। यह भारत में सबसे तेजी से बढ़ता और तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है। भारत में हर 8 मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है। यूनिसेफ के अनुसार 12.6 मिलियन बच्चे असुरक्षित व्यवसायों में लगे हुए हैं। जिसमे ड्रग्स, भीख मांगना, जिस्म फरोशी जैसे काम ही शामिल है। भारत के एनएचआरसी के अनुसार, प्रत्येक वर्ष 40,000 बच्चों को इन असुरक्षित व्यवसाय में जोड़ा जाता है, जिनमें से अधिकांश बच्चे अप्रशिक्षित होते हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार 80% बाल तस्करी में लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न और बाल मजदूरी जैसे काम जबरन करवाया जाता है। ये आंकड़े भारत मे हर रोज़ हर घंटे हर मिनट बस बढ़ती जा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण है, भारत के कानून की खराब कार्यप्रणाली। बाल तस्कर कम जोखिम में हैं क्योंकि उनके खिलाफ कोई गंभीर कार्यवाही नहीं हो पाती है। उनकी उच्च स्तरीय लोगों के साथ साठ-गांठ उन्हें बचा लेती है। भारत में कई संवैधानिक और विधायी प्रावधान हैं जैसे, बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006, बंधुआ श्रम प्रणाली अधिनियम 1986, बाल श्रम अधिनियम 1986, मानव अंगों का प्रत्यारोपण अधिनियम 1994, अनैतिक यातायात अधिनियम 1956। इन नियमो का शख्ती से लागू न होना इसकी कमजोरी बनती जा रही है। सरकार को अपराध रोकने के लिए कानूनों और प्रावधानों के विकास, मूल्यांकन और कार्यान्वयन के लिए गैर सरकारी संगठन (एन जी ओ) की मदद से काम करना है। जागरूकता पैदा करना और लोगों को शिक्षित करना महत्वपूर्ण है। हमें सड़क पर भिखारियों को दान देने से हमेशा बचने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसे अधिनियम का समर्थन नहीं करना चाहिए जो कि ऐसे अपराधो को और अधिक बढ़ावा देते है।

सरकार एवं समाज के संघटित प्रयासों से बाल तस्करी को सिमित किया जा सकता हैं। सरकार को कानूनों को पुनः जांच कर ऐसे कानूनों का निर्धारण करना चाहिए जिससे अपराधी किसी भी तरह बच न पाए। सिर्फ कानून बनाना ही जरूरी नही है बल्कि ये भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इन कानूनों का सख्ती से लागू किया जा रहा है। सरकार के साथ साथ हमे भी अपने उत्तरदायित्व को समझना चाहिए। सामाजिक स्तर पर लोगों में जागरूकता फैलाने की बहुत आवश्यकता है। हमे मानवता को प्राथमिकता देकर ऐसे दुष्कर्मो के खिलाफ आवाज़ उठानी पड़ेगी। इसका शिकार हुए बच्चों का जीवन अत्याचारियों के हाथों तबाह हो जाता हैं। वे अपने मूल जीवन से कट जाते है और साथ ही साथ उनके दिल की आवाज शांत हो जाती है। गैर सरकारी संगठन जो बाल शौषण को रोकने के लिए कार्य करती है, उन्हें इन पीड़ितों के पुनर्वास, समुदाय द्वारा प्यार व देखभाल की व्यवस्था में अहम भूमिका निभानी चाहिए।

reporter ; Pujari

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