पंजाब कांग्रेस में एक बार फिर भूचाल , अचानक ही किए कई बड़े फैसले

पंजाब कांग्रेस में एक बार फिर भूचाल आ गया है.... पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के धुर विरोधी रहे नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस इकाई के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है.. इस्तींफा देते हुए उन्हों ने कहा वो कांग्रेस में बने रहेंगे.. सिद्धधू के अचानक लिए इस फैसले से हर कोई अचंभित है क्योंतकि कैप्टेन को कांग्रेस आलाकमान ने दर किनार करते हुए सिद्धू को पंजाब कांग्रेस पार्टी का अध्यैक्ष बना दिया था.. जिसके बाद रार इतनी बढ़ गई थी कि कैप्टगन ने नाराज होकर मुख्येमंत्री पद से इस्तीगफा तक दे डाला. वैसे ये पहली बार नहीं है जब सिद्धू ने अचानक ही कोई बड़ा फैसला लेकर अपने दल पर प्रभाव डाला हो... इससे पहले अपने क्रिकेट करियर से लेकर राजनीति में कप्तानों से नाराजगी के चलते इस तरह अचानक फैसले लेकर अपनी टीम को सिद्दू नुकसान पहुंचाते रहे हैं...

नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने इस्तीफा देते हुए कहा कि वो कांग्रेस के भविष्य और पंजाब की भलाई के एजेंडे से समझौता नहीं कर सकते, इसलिए इस्तीफा दे रहे हैं. हालांकि, उन्होंने कहा है कि वो कांग्रेस में बने रहेंगे. हालांकि, अभी तक ये साफ नहीं हो पाया है कि सिद्धू ने इस्तीफा क्यों दिया है.

सिद्धू अपनी 'तुनकमिजाजी' के लिए जाने जाते हैं. चाहे क्रिकेट क्रिकेट की पिच हो या राजनीति का मैदान, सिद्धू का खेल 'एग्रेसिव' रहा है और 'कैप्टन' से लड़ाई का उनका इतिहास पुराना रहा है.

जून 1996 में जब भारतीय क्रिकेट टीम इंग्लैंड दौरे पर गई थी, तब सिद्धू कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन से बगावत कर बीच दौरे से ही भारत लौट आए थे. इस दौरे में सिद्धू अजहरुद्दीन की किसी बात पर रुठकर बिना किसी को बताए भारत लौट आए थे.

फिर राजनीति के मैदान में उतरे सिद्धू

सिद्धू ने 1999 में क्रिकेट से संन्यास ले लिया और 2004 में राजनीति की पिच पर बैटिंग करने उतरे. सिद्धू 2004 में बीजेपी में शामिल हुए और अमृतसर की लोकसभा सीट से पहला चुनाव लड़ा. इस चुनाव में सिद्धू ने कांग्रेस के आरएल भाटिया को हराया.

हालांकि, दो साल बाद ही सिद्धू को 1988 के एक मामले में सजा हो गई. बताया जाता है कि 1988 में सिद्धू ने पार्किंग में किसी बात को लेकर कथित तौर पर पटियाला में गुरनाम सिंह नाम के शख्स को पीट दिया था, जिसकी अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई थी. इस मामले में 2006 में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने सिद्धू को तीन साल कैद की सजा सुनाई और उन्हें सांसद के पद से इस्तीफा देना पड़ा.
सुप्रीम कोर्ट में बीजेपी के दिवंगत नेता अरुण जेटली ने उनका केस लड़ा. सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला पलट दिया और सिद्धू को बरी कर दिया. 2007 में अमृतसर सीट पर उपचुनाव हुए, जिसमें सिद्धू दूसरी बार फिर जीत गए. 2009 के आम चुनावों में उन्होंने फिर अमृतसर सीट से तीसरी बार जीत दर्ज की.

फिर शुरू हुई बीजेपी से तल्खी...

माना जाता है कि सिद्धू को अरुण जेटली ही राजनीति में लेकर आए थे और सिद्धू उन्हें अपना 'राजनीतिक कैप्टन' मानते थे. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में जब बीजेपी ने अमृतसर से सिद्धू की बजाय अरुण जेटली को मैदान में उतारा तो इससे सिद्धू खफा हो गए. इतने खफा कि कई बार बुलाने के बावजूद सिद्धू अरुण जेटली के चुनाव अभियान में मदद करने नहीं आए. इस चुनाव में अरुण जेटली हार गए थे.
नाराज सिद्धू को 2016 में बीजेपी ने राज्यसभा भेजा, लेकिन वहां से उन्होंने तीन महीने में ही इस्तीफा दे दिया और कुछ महीनों बाद बीजेपी भी छोड़ दी. उनके आम आदमी पार्टी में शामिल होने की अटकलें थीं, लेकिन सिद्धू कांग्रेस में शामिल हुए.

कांग्रेस में आते ही कैप्टन से विवाद

2017 के विधानसभा चुनावों से पहले सिद्धू कांग्रेस में शामिल हो गए. उस वक्त कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू के आने पर नाराजगी जताई थी. लेकिन कैप्टन की नाराजगी के बावजूद सिद्धू को पार्टी में लाया गया. 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जीती. कैप्टन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री बने. सिद्धू को कैबिनेट मंत्री बनाया गया.

2019 के लोकसभा चुनाव में सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर टिकट चाहती थीं, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दी गई. आरोप लगा कि कैप्टन के कहने पर टिकट नहीं दिया गया. इसके बाद सिद्धू ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि उनकी पत्नी झूठ नहीं बोल रही है.
जून 2019 में कैप्टन अमरिंदर ने कैबिनेट में फेरबदल किया. सिद्धू से स्थानीय निकाय विभाग ले लिया गया और उन्हें बिजली विभाग सौंप दिया गया. इससे सिद्धू नाराज हो गए. सिद्धू इतने नाराज हुए कि उन्होंने 14 जुलाई 2019 को पंजाब सरकार के कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.

फिर खुलकर लड़े कैप्टन से

इसके बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह और सिद्धू की लड़ाई खुलकर सामने आ गई. सिद्धू लगातार अमरिंदर सरकार के कामकाज पर सवाल उठाते रहे. दोनों के बीच इतना तनाव बढ़ गया कि आलाकमान को बीच में आना पड़ा. कई महीनों तक चली बैठकों के बाद सिद्धू को 18 जुलाई 2021 को पंजाब कांग्रेस की कमान सौंप दी गई.

पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद भी सिद्धू कैप्टन पर लगातार दबाव बनाते रहे. इतना ही नहीं, सिद्धू के पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के बाद ही 40 विधायकों ने अमरिंदर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. इन सबसे 'अपमानित' होकर कैप्टन अमरिंदर ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.

72 दिन में ही अध्यक्ष पद से दिया इस्तीफा

कैप्टन अमरिंदर के इस्तीफे के बाद जब चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया तो लगा कि अब पंजाब कांग्रेस में सब ठीक हो जाएगा. 20 सितंबर को चन्नी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. उसके बाद कैबिनेट विस्तार हुआ. बताया जा रहा है कि सिद्धू मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, लेकिन उन्हें नहीं बनाया गया. उसके बाद कैबिनेट विस्तार में भी सिद्धू की ज्यादा नहीं चली. इन बातों से खफा होकर सिद्धू ने इस्तीफा दे दिया. सिद्धू 18 जुलाई 2021 को पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष बने और 72 दिन बाद 28 सितंबर 2021 को इस्तीफा भी दे दिया.

यानी कि पंजाब में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने नया सियासी ड्रामा खड़ा कर दिया है..कैप्टन अमरिंदर सिंह का मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा कांग्रेस हाईकमान ने जिस आसानी से ले लिया था, सिद्धू को ताकत सौंपकर हाईकमान को उतनी ही मुश्किलों को सामना करना पड़ सकता है... राज्य में चल रहे सियासी ड्रामे का असर आगामी विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिले, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है... फिलहाल, सिद्धू ने पॉवर पॉलिटिक्स करते हुए इस्तीफे दिलाकर अपनी ताकत का प्रदर्शन करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है,, अब देखने वाली बात होगी कि आखिर किस करवट अब बैठेगा सिद्दू की राजनिती की ऊंच।

 

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