#हिंदुत्व_हिंदुत्व_कार्ड_का_खौफ.. न माया के मंच पर न अखिलेश के रथ पर मुस्लिम
विपक्ष दलों ने मिशन-2022 का किया आगाज
न माया के मंच पर न अखिलेश के रथ पर मुस्लिम
बीजेपी हिंदुत्व कार्ड के खौफ में विपक्षी दल
यूपी की सियासत से मुस्लिम प्रतीक नदारद
उत्तर प्रदेश में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव का डंका बज चूका है ... जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है राजनीतिक दलों की तैयारियां भी अब तेज हो गई हैं. और विपक्ष का मानना है इस बार का चुनाव विकास के मुद्दे पर नहीं जीता जा सका है. इस बार जीत के लिए जाति से बड़ा कोई मुद्दा नहीं है. इस लिए कुछ दिनों पहले मायावती के हाथ में तिरशूल दिखा तो वही प्रियंका गाँधी चुनरी ओड़ी नजर आई ...वहीँ अखिलेश यादव हनुमान जी का गदा लेकर निकल पड़े ... यानि इस बार विपक्षी दलों ने 'मुस्लिम कार्ड' छोड़ कर बीजेपी के हिंदुत्व को अपना जीता का हथियार बना लिया है ....
उत्तर प्रदेश में चार महीने के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव होने वाले है . बीजेपी अपनी सत्ता को बरकरार रखने की जद्दोजहद कर रही है तो वहीँ विपक्षी दलों ने योगी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए मोर्चा खोल रखा है. सूबे में बीजेपी ने हिंदुत्व का ऐसा सियासी एजेंडा सेट किया है, जिसके चलते अपने आपको सेक्लुयर कहलाने वाली विपक्षी पार्टियां भी इस बार खुलकर 'मुस्लिम कार्ड' खेलने से परहेज कर रही हैं. सूबे में बहुसंख्यक वोट खिसकने के डर से विपक्षी दलों के चुनावी मंचों से भी इस बार मुस्लिम सियासत घटती नजर आ रही है.
यूपी की सियासत से मुस्लिम प्रतीक नदारद जिसके बाद प्रियंका गांधी से लेकर अखिलेश यादव, मायावती और जयंत चौधरी ने अपने चुनावी शंखनाद की शुरुआत नवरात्र के महीने से शुरू किया. सूबे में चुनावी मंच चाहे अखिलेश यादव का हो, प्रियंका गांधी का या फिर बीएसपी सुप्रीमो मायावती का और क्यों न छोटे दलों का ही हो. सभी मंचों पर प्रमुखता से जो मुस्लिम चेहरे या मुस्लिम प्रतीक पहले दिखाई देते थे, वो इस बार लगभग गायब हैं. प्रियंका गांधी मंच पर बाबा विश्वनाथ के चंदन के साथ हुंकार भरती दिखीं. भाषण की शुरुआत के पहले दुर्गा सप्तशती के मंत्र उच्चारण से उन्होंने लोगों को जता दिया कि उनके हिंदू होने की प्रतिबद्धता को कम ना समझा जाए.
वही अखिलेश यादव की चुनावी जनसभाओं में और सपा के पोस्टर में अभी तक मुस्लिम टोपी में नेता नजर आते थे. इस बार सपा नेताओं की तस्वीर हो या खुद नेता मौजूद हो मुस्लिम प्रतीक वाली जाली टोपी में कोई नजर नहीं आए.... बल्कि उसकी जगह सपा की लाल टोपी पहने सभी नजर आए. समाजवादी पार्टी के सभी...
ऐसा ही हाल कांग्रेस की सभाओं का भी है, कांग्रेस की सभाओं में भी मुसलमानों की तादाद तो दिखी लेकिन वह अपनी मुस्लिम प्रतीकों से दूर दिखाई दिए. नमाजी टोपी या जाली टोपी इस बार कांग्रेस की सभा से भी नदारत दिखाई दी.
हालांकि, इस बार इन तमाम विपक्षी दलों की सियासत बदली-बदली नजर आ रही है. इनके चुनावी मंचों से मुस्लिम सियासत घटती नजर आईं. न तो मायावती के चुनावी मंच पर कोई मुस्लिम नेता दिखा और न ही अखिलेश यादव के विजय रथ पर कोई मुस्लिम सारथी बना. पश्चिम यूपी में जन आशिर्वाद लेने निकले जयंत चौधरी के साथ भी कोई मुस्लिम नेता नजर नहीं आ रहा है. प्रियंका गांधी के काशी रैली के मंच पर जरूर कांग्रेसी नेता सलमान खुर्शीद नजर आए, लेकिन वो भी उनसे काफी दूर बैठे दिखे.
2014 चुनाव के बाद से देश का राजनीतिक पैटर्न पूरी तरह से बदल गया है. देश में अब बहुसंख्यक समाज केंद्रित राजनीति हो गई है और इस फॉर्मूला के जरिए बीजेपी लगातार चुनाव जीत रही है. यूपी में सिर्फ मुस्लिम वोटों के सहारे कुछ सीटें तो जीती जा सकती हैं, लेकिन सूबे में सरकार नहीं बनाई जा सकती है. ऐसे में बीजेपी खुलकर हिंदुत्व कार्ड खेलती रही हैं ....वही अब विपक्षी दल खुलकर इस बार मुस्लिम कार्ड खेलने से बच रहे हैं. और चुनावी मंचों पर भी मुस्लिम नेताओं को पहले की तरह अहमियत देने से बच रहे हैं.
सत्ता की सियासत का खेल थाली में बैगन जैसा है ,,,जिस ओर वोट बैंक दीखता है उसी ओर लुढ़क जाता है ,मौजूदा स्थितियों को देखकर ऐसा लगता है की विपक्ष अपना पैटर्न इसलिए बदल रहा है ताकि उसे आने वाले चुनाव में फायदा मिले विपक्ष को लगता है की हिन्दू खेमे से खेलेगे तो ज्यादा फायदे में रहेगा...तो अब सवाल ये उठता है की हर बार ऐसा ही रहा तो उन मुश्मिलो का क्या होंगा जिन्हें सियासत से उम्मदी है .
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