ईश्वर शरणागति की कथा है श्रीमद्भागवत - विश्राम पांडेय

जांजगीर चांपा - श्रीमद्भागवत की कथा ईश्वर शरणागति की कथा हैं , जीव उस ईश्वर की समक्ष अपने समस्त संसार के बंधन को भूलकर बस प्रभु की शरणागति में हो जाये तो फिर उसका भवसागर से पार होना निश्चित है। गजेन्द्र ने अपनी आत्मा की अंतर्मन से भगवान श्रीनारायण को पुकारते हुये मन से उनकी शरणागति को स्वीकार किया। भगवान ने गजेंद्र की रक्षा की व ग्राह को सद्गति प्रदान की। वास्तव में संसार के बंधन मात्र स्वार्थ के साथी हैं अन्त मे ईश्वर की शरणागति ही परम मोक्ष को प्रदान करने वाली हैं।

उक्त बातें जांजगीर-चांपा जिले के गौरव ग्राम गौद निवासी संजीवन पांडेय के निवास में चल रहे संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिवस मां शंवरीन दाई की पावन धरा अमोरा (महन्त) के भागवताचार्य पं० विश्राम प्रसाद पाण्डेय ने शरणागति से ही प्रभु की भक्ति प्राप्त होने की बात कही। महाराजश्री ने गजेंद्र मोक्ष की कथा सुनाते हुये कहा त्रिकूट पर्वत पर गजेन्द्र अपने साथियो सहित तृषाधिक्य (प्यास की तीव्रता) से व्याकुल हो गया। वह कमल की गंध से सुगंधित वायु को सूंघकर एक चित्ताकर्षक विशाल सरोवर के तट पर जा पहुंचा। गजेन्द्र ने उस सरोवर के निर्मल ,शीतल और मीठे जल में प्रवेश किया। पहले तो उसने जल पीकर अपनी तृषा बुझायी , फिर जल में स्नान कर अपना श्रम दूर किया। तत्पश्चात उसने जलक्रीड़ा आरम्भ कर दी। वह अपनी सूंड में जल भरकर उसकी फुहारों से हथिनियों को स्नान कराने लगा। तभी अचानक गजेन्द्र ने सूंड उठाकर चीत्कार की। पता नहीं किधर से एक मगर ने आकर उसका पैर पकड़ लिया था। गजेन्द्र ने अपना पैर छुड़ाने के लिये पूरी शक्ति लगा दी परन्तु उसका वश नहीं चला , पैर नहीं छूटा। अपने स्वामी गजेन्द्र को ग्राहग्रस्त देखकर हथिनियां , कलभ और अन्य गज अत्यंत व्याकुल हो गये। वे सूंड उठाकर चिंघाड़ने और गजेन्द्र को बचाने के लिये सरोवर के भीतर-बाहर दौड़ने लगे। उन्होंने पूरी चेष्टा की लेकिन सफल नहीं हुये।वस्तुतः महर्षि अगत्स्य के शाप से राजा इंद्रद्युम्न ही गजेन्द्र हो गये थे और गन्धर्वश्रेष्ठ हूहू महर्षि देवल के शाप से ग्राह हो गये थे। दोनों में संघर्ष चलता रहा। गजेन्द्र स्वयं को बाहर खींचता और ग्राह गजेन्द्र को भीतर खींचता। अंततः गजेन्द्र का शरीर शिथिल हो गया किन्तु पूर्व जन्म की निरंतर भगवद आराधना के फलस्वरूप उसे भगवत्स्मृति हो आयी। उसने निश्चय किया कि मैं कराल काल के भय से चराचर प्राणियों के शरण्य सर्वसमर्थ प्रभु की शरण ग्रहण करता हूं।

इस निश्चय के साथ गजेन्द्र मन को एकाग्र कर पूर्वजन्म में सीखे श्रेष्ठ स्त्रोत द्वारा परम प्रभु की स्तुति करने लगा। गजेन्द्र को पीड़ित देखकर भगवान विष्णु गरुड़ पर आरूढ़ होकर अत्यंत शीघ्रता से उक्त सरोवर के तट पर पहुंचे। जब जीवन से निराश तथा पीड़ा से छटपटाते गजेन्द्र ने हाथ में चक्र लिये गरुड़ारूढ़ भगवान विष्णु को तीव्रता से अपनी ओर आते देखा तो उसने कमल का एक सुन्दर पुष्प अपनी सूंड में लेकर ऊपर उठाया और बड़े कष्ट से कहा- “नारायण ! जगद्गुरो ! भगवान ! आपको नमस्कार है। गजेन्द्र को अत्यंत पीड़ित देखकर भगवान विष्णु गरुड़ की पीठ से कूद पड़े और गजेन्द्र के साथ ग्राह को भी सरोवर से बाहर खींच लाये और तुरंत अपने तीक्ष्ण चक्र से ग्राह का मुंह फाड़कर गजेन्द्र को मुक्त कर दिया। ग्राह दिव्य शरीर-धारी हो गया , वह भगवान विष्णु के चरणो में सिर रखकर प्रणाम किया और भगवान विष्णु के गुणों की प्रशंसा करने लगा। भगवान विष्णु के मंगलमय वरद हस्त के स्पर्श से पाप मुक्त होकर अभिशप्त हूहू गन्धर्व ने प्रभु की परिक्रमा की और उनके त्रेलोक्य वन्दित चरण-कमलों में प्रणाम कर अपने लोक चला गया। भगवान विष्णु ने गजेन्द्र का उद्धार कर उसे अपना पार्षद बना लिया। गन्धर्व ,सिद्ध और देवगण उनकी लीला का गान करने लगे। गजेन्द्र की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने सबके समक्ष कहा- “प्यारे गजेन्द्र ! जो लोग ब्रह्म मुहूर्त में उठकर तुम्हारी की हुई स्तुति से मेरा स्तवन करेंगे , उन्हें मैं मृत्यु के समय निर्मल बुद्धि का दान करूँगा। यह कहकर भगवान विष्णु ने पार्षद रूप में गजेन्द्र को साथ लिया और गरुडारुढ़ होकर अपने दिव्य धाम को चले गये।

इसी कड़ी में महाराजश्री ने समुद्र मंथन , वामन अवतार , श्रीरामजन्म , श्रीकृष्णजन्म कथा का भी श्रवण कराया। इस दौरान नंद घर आनंद भयो , जय कन्हैया लाल की भजन में भगवान श्रीकृष्ण की झांकी और भगवान वामन की झांकी के साथ सभी भक्तों ने झूमकर कथा का आनंद प्राप्त किया। इस कथा का श्रवण करने गांव सहित आसपास के क्षेत्रों से असंख्य भक्त जन कथा पंडाल पहुंच रहे हैं। यह श्रीमद्भागवत कथा प्रतिदिन दोपहर दो बजे से हरि इच्छा तक चल रही है। चतुर्थ दिवस की कथा में ग्रामवासी सहित ओंकार पाण्डेय , ललित पाण्डेय , भोला तिवारी , साखी गोपाल साहू , रविशंकर साहु , रविन्द्र जगत , राजाराम कश्यप , साधराम यादव ,बाऊ यादव ,भुपेन्द्र यादव(सोनु) , बसंत तिवारी , मोनु पाण्डेय विशेष रूप से उपस्थित थे।

 

रिपोर्टर : भूपेन्द्र यादव

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