कमिश्नरी, झाँसी में तैनात होंगे देववाणी मार्ग दर्शक

झाँसीः आज मण्डलायुक्त डॉ अजय शंकर पाण्डेय ने पिछले दिनों संस्कृत भाषा में दो निर्णय पारित करके इतिहास रच दिया था। यह मुहिम आगे भी जारी रहे इसके लिए कमिश्नरी बार के साथ समन्वय स्थापित करते हुए उनकी सहमति से संस्कृत भाषा को काम-काज की भाषा के रूप में/न्यायिक कार्यों की भाषा में बनाये रखने के लिए चार महत्वपूर्ण फैसले लिये गये हैं-

1.    कमिश्नरी न्यायालय में जो भी अपील/रिवीजन किसी भी धारा के अन्तर्गत दायर किया जायेगा, उसके ड्राफ्ट में दो-तीन पंक्तियाँ (2-3 वाक्य) संस्कृत भाषा में लिखी जायेंगी। साथ ही जो पंक्तियाँ संस्कृत भाषा में लिखी जायेंगी उसका हिन्दी अनुवाद भी साथ में लिखा जायेगा।
2.    मण्डलायुक्त सहित अपर आयुक्तगण भी अपने निर्णय में कम-से-कम दो-तीन पंक्तियाँ (2-3 वाक्य) संस्कृत भाषा में अवश्य लिखेंगे। साथ ही उन संस्कृत पंक्तियों का हिन्दी अनुवाद भी अंकित रहेगा।
3.    उपरोक्त दोनों व्यवस्थायें बाध्य नहीं हैं, इन्हें स्वेच्छिक आधार पर देववाणी प्रोत्साहन के रूप में स्वेच्छिक रूप से प्रयोग में लाया जा सकता है।
4.    इस बात का प्रश्न मण्डलायुक्त के सामने रखा गया कि अभी संस्कृत भाषा के लिखने/समझने को लेकर अभ्यास नहीं है फिर दो-तीन पंक्तियाँ संस्कृत में लिखने में समय लग सकता है और कठिनाई आ सकती है। मण्डलायुक्त ने इसके समाधान हेतु मण्डलायुक्त परिसर में ‘‘देववाणी मार्गदर्शक‘‘ (संस्कृत भाषा को लिखने एवं समझाने वाला व्यक्ति) को बार एवं बैंच द्वारा स्वेच्छिक प्रदत्त किये गये एवं तद्नुसार एकत्रित धनराशि को मानदेय के रूप में रखे जाने का परामर्श दिया। मण्डलायुक्त के इस परामर्श को सभी ने एक मत से स्वीकार भी किया।
5.     मण्डलायुक्त का मानना है कि दो-तीन पंक्तियों से शुरूआत करके हो सकता है कि लम्बे अभ्यास के बाद लोग संस्कृत में पूरी अपील/निर्णय भी देने लगें। एक तरह से यह कदम लोगों को संस्कृत के रसास्वादन का रास्ता खोलेगा। हो सकता है कि रसास्वादन इतना स्वादिष्ट हो जाये कि लोग उसको रूचि के साथ बड़े पैमाने पर स्वीकार कर लें।
6.    इसके साथ ही ‘‘देववाणी मार्गदर्शक‘‘ की नियुक्ति से संस्कृत पढ़ने एवं पढ़ाने वालों को सम्मान भी मिलेगा एवं उनकी आय अर्जन का साधन भी बनेगा। इससे संस्कृत भाषा धर्म, पुस्तकों से बाहर निकलकर दैनिक काम-काज के रूप में भी स्थापित होगी। संस्कृत भाषा को लेकर एक मिथ्य यह कि यह एक बड़ी ही कठिन भाषा है, लोगों का यह भ्रम भी दूर होगा।

संस्कृत भाषा के प्रयोग के दूसरे चरण की नींव पड़ी ऐसे

मण्डलायुक्त द्वारा संस्कृत भाषा में अपना फैसला दिये जाने के बाद देश एवं प्रदेश भर में तमाम तरह की बधाईयां प्राप्त हो रही हैं। झांसी व कमिश्नरी बार ने भी मण्डलायुक्त से मिलकर इसके लिये उन्हें साधुवाद दिया। इस अवसर पर औपचारिक बातचीत में मण्डलायुक्त ने जब यह पूछा कि क्या कोई ऐसा अधिवक्ता है जिसने कभी संस्कृत न पढ़ी हो? जानकारी करने पर पता लगा कि सभी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा में कहीं-न-कहीं संस्कृत अवश्य पढ़ी है। इसी दौरान अधिवक्तागण ने भी मण्डलायुक्त से संस्कृत भाषा के अध्ययन के बारे में पूछा तो मण्डलायुक्त ने बताया कि उन्होंने स्नातक तक संस्कृत भाषा को एक विषय के रूप में पढ़ा है। मण्डलायुक्त ने इसी को आधार मानकर हर अपील में दो-तीन पंक्ति संस्कृत में लिखने का प्रस्ताव अधिवक्ताओं के समक्ष रखा जिसे समस्त अधिवक्ताओं ने विचार-विमर्श के उपरान्त स्वीकार किया। इस तरह न्यायिक कार्यों में संस्कृत भाषा के प्रयोग की एक नयी मुहिम मण्डलायुक्त झांसी के कार्यालय से निकल पड़ी है जो पूरे देश में अब तक अकेली और प्रथम बार है।

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