अपनी लेखनी का प्रयोग अन्याय और उत्पीड़न के विरुद्ध किया शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी ने

 देवरिया: सलेमपुर 'शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी एक निडर, निष्पक्ष पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने अपनी लेखनी का प्रयोग सदैव अन्याय और उत्पीड़न के विरुद्ध किया। कानपुर में 25 मार्च 1931 को हुए भीषण दंगे में शांति की अपील करते हुए वह शहीद हो गए।' उक्त बातें अपने संबोधन में वक्ताओं ने कहीं। स्वर्गीय गणेश शंकर विद्यार्थी की पुण्यतिथि पर भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार समन्वय समिति एवं सोशल मीडिया पत्रकार महासंघ द्वारा केंद्रीय कार्यालय मझौली राज में आयोजित विचार गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि पत्रकारिता के क्षेत्र में शहीद विद्यार्थी जी के सिद्धांतों पर चलना होगा।

अपने संबोधन में महासंघ के संस्थापक सरदार दिलावर सिंह ने उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 26 अक्टूबर 1890 को इलाहाबाद के अतरसुइया में साधारण कायस्थ परिवार में जन्मे गणेश शंकर विद्यार्थी की शिक्षा की शुरुआत उर्दू से हुई थी। उन्होंने 1960 में कायस्थ पाठशाला इलाहाबाद में प्रवेश किया था। उसी समय उनका पत्रकारिता की ओर रुझान हुआ और 'कर्मयोगी' साप्ताहिक के संपादन में सहयोग करने लगे। उन्होंने अपने लेखों के माध्यम से सरस्वती, स्वराज उर्दू तथा हितवार्ता जैसे पत्र-पत्रिकाओं में स्वाधीनता की अलख जगाई। इसके अतिरिक्त उन्होंने सरस्वती, अभ्युदय, दैनिक प्रताप आदि में अपनी सेवाएं दी।

25 मार्च 1931 में कानपुर में हिंदू मुस्लिम के हुए भीषण दंगों में सैकड़ों हिंदुओं और मुसलमानों को बचाया किंतु वे स्वयं इस दंगे की बलि चढ़ गए। शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी हमें सदैव जनहित की निष्पक्ष, निडर और अन्याय के विरुद्ध कलम चलाने की प्रेरणा देते रहेंगे और उनके सिद्धांतों पर चलना ही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

 

रिपोर्टर: मोइन खान

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