वर्तमान परिवेश और अखंड भारत की संकल्पना

वैशाख शुक्ल पंचमी को बाबा केदारनाथ के कपाट खोल दिए जाते हैं। इस दिन की दिव्यता और महत्वता इससे और बढ़ जाती है कि इसी दिन भगवान आदि शंकराचार्य जी के 1235वें प्राकट्य (वैशाख शुक्ल पंचमी 788 ईसवी) दिवस को हुआ था। पृथ्वी के दो अद्भुत संयोग, कहते हैं शंकराचार्य जी पुष्प अवशेष ही केदारनाथ ज्योति लिंग में प्राप्त हुए थे। अद्भुत और विलक्षण ज्योति ज्योति लिंग में विलीन .....।

आज पूरा विश्व क्षेत्रवाद जातिवाद सीमावाद के विवादों में उलझा हुआ है कहीं युद्ध के शंखनाद हो रहे हैं तो कहीं कूटनीति से दूसरे को नीचा दिखाने का षड्यंत्र। बात यदि भारत की ही की जाए तो अखंड भारत का सपना सदियों पहले शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म को दिखाया था क्या हम उनके सपनों को साकार कर पाए या भारत की अखंडता को अक्षुण्ण रख पाए आप अपने दिल से पूछो उत्तर आएगा नहीं।

इतिहास के पन्नों में ही नहीं वर्तमान परिपेक्ष में भी आदिशंकरचार्य भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे। जिस समय सनातन धर्म में बौद्ध धर्म का प्रभाव जोरों पर हो रहा था लोग धर्म परिवर्तन कर रहे थे उसी समय  युगप्राणेता ने अद्वैत वेदान्त को ठोस आधार प्रदान किया। जाति धर्म के आधार पर हो रहे बंटवारे को रोकते हुए अहम् ब्रह्मास्मि का संकल्प दिया और एक बार पुनः सनातन धर्म की पताका जनमानस से लहराने का संकल्प लिया। उन्होने सनातन धर्म की विविध विचारधाराओं का एकीकरण किया। उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। इन्होंने भारतवर्ष में चार मठों की स्थापना की थी जो अभी तक बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं और जिन पर आसीन संन्यासी 'शंकराचार्य' कहे जाते हैं। वे चारों स्थान ये हैं-  ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम,  श्रृंगेरी पीठ,  द्वारिका शारदा पीठ और  पुरी गोवर्धन पीठ।

ये भगवान शंकर के अवतार माने जाते हैं। इन्होंने ब्रह्मसूत्रों की बड़ी ही विशद और रोचक व्याख्या की है।  सच कहें तो आज भी इस बात पर यकीन कर पाना मुश्किल है कि हम हवाई जहाज रेलगाड़ियों और बड़ी-बड़ी द्रुत गति से चलने वाली गाड़ियों में सफर कर रहे हैं फिर भी शायद पूरे भारत को अपने एक जीवन में देख पाना मुश्किल है। वही जब बैलगाड़ी और घोड़ा गाड़ी चल पाना भी मुश्किल था उस समय पूरे भारत को अपने पैरों के नीचे कई बार रौंदे ना वाकई गौरवान्वित और रोमांचित करने वाला महसूस होता है।

चारों वेद और छह प्रकार के शास्त्र या क्या सकते हैं 32 प्रकार की विद्या के प्रभेद और 32 कलाओं के प्रभेद सब के सब सुरक्षित रहें इसलिए एक एक वेद से संबंध करके एक एक शंकराचार्य पीठ की स्थापना की गई जैसे ऋग्वेद से गोवर्धन पीठ मठ (जगन्नाथ पुरी ),यजुर्वेद श्रृंगेरी( रामेश्वर), सामवेद से शारदा मठ (द्वारिका) और अथर्ववेद से संबंध ज्योतिर मठ (बद्रीनाथ) है।

शंकराचार्य जी ने दशनामी अखाड़े के सन्यासियों को भौतिक आधार पर विभाजित किया। भारत के चारों कोनो में सनातन धर्म के पदचिन्ह जो हिंदू धर्म के प्रणेता शंकराचार्य द्वारा शताब्दीयो पहले रखें गए थे उनकी जीवान्त गवाही इतिहास के रूप में मन्दिर और मठ प्रदान करते है। भारत को एक सूत्र में बांधने का कार्य आज भी चारों तीर्थों के माध्यम से पूर्ण होता है।

 भारत के  आध्यात्मिक संत आध्यात्मिक संत भारतीय दर्शन को पूरे विश्व में सर्वोच्चता प्रदान कराने वाले अद्वैतवाद और एकेश्वरवाद के प्रणेता को नमन करते हुए लखनऊ पब्लिक स्कूल के प्रांगण में भारत समृद्धि संस्था के तत्वधान में...."अखंड भारत की संकल्पना और आदि शंकराचार्य जी".. विषय पर संगोष्ठी का आयोजन हुआ। जिसमें मुख्य अतिथि माननीय श्री हृदय नारायण दीक्षित चिंतक विचारक एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उपस्थित हुए और शंकर वेदांत अद्वैतवाद की संकल्पना का दर्शन सभी को बताया कार्यक्रम में मुख्य वक्ता मनोज सिंह सह प्रांत प्रचारक अवध प्रांत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा द्वारा सारगर्भित वक्तव्य दिया गया तथा विशेष वक्ता के रूप में शैलेंद्र दुबे अध्यक्ष भारत समृद्धि संस्था ने आदि शंकराचार्य के छोटे से गांव के 8 वर्ष में निकले हुए कदम हो को कैसे पूरे भारत में स्वर्णिम पद चिन्ह के रूप में याद किया गया की पूरी जीवन यात्रा का ओजपूर्ण और सारगर्भित वर्णन किया । कार्यक्रम की अध्यक्षता की अध्यक्षता लखनऊ के महापौर संयुक्ता भाटिया ने किया।

भारतीय नागरिक परिषद की महामंत्री रीना त्रिपाठी ने शंकराचार्य के आदर्श युक्त स्मृति चिन्ह अतिथियों को देकर संगोष्ठी में प्रतिभाग  हेतु धन्यवाद देते हुए युवा पीढ़ी से शंकराचार्य जी के बताए हुए मार्ग पर चलने और उनके आदर्शों को पढ़ने का अनुरोध किया। कार्यक्रम का संयोजन श्याम त्रिपाठी, त्रिवेणी मिश्रा ,धीरज उपाध्याय, ने किया रीना त्रिपाठी ।

रिपोर्टर : चंद्रकांत  पूजारी

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