शहीद अंशुमान सिंह के पिता ने उठाए NOK पर सवाल! जानिए क्या है यें पॉलिसी...
NEHA MISHRA
एक सैनिक जब देश की रक्षा के लिए निकलता है तो वो अपनी जान तो दांव पर लगाता ही है, साथ ही वो अपने पूरे परिवार की जान भी अपने साथ ही ले जाता है. उसकी मौत के बाद परिवार के पास कुछ नहीं बचता है. यें एक ऐसा नुकसान है जिसकी भरपाई किसी भी तरह नहीं की जा सकती है. फिर भी सरकार उनको एक सहारा देनें के लिए उनकी आर्थिक मदद करती है. लेकिन शहीद को मिलने वाली इस वित्तीय सहायता पर क्या केवल उसकी पत्नी का ही हक होना चाहिए? या उसके परिवार को भी उसमें बराबर की हिस्सेदारीं मिलनी चाहिए? दरअसल, यें सवाल उठाया है शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह के पिता ने. जिन्होनें NOK में बदलाव की मांग की है.
क्या है पूरा मामला?
शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह ने पिछले साल सियाचीन अपने साथियों की जान बचाने के लिए अपनी जान गंवा दी. उनके इस पराक्रम और शौर्य के लिए सरकार ने 5 जुलाई को उन्हें कीर्ति चक्र से सम्मानित किया. यें पुरस्कार लेनें उनकी पत्नी और उनकी मां राष्ट्रपति भवन पहुंची थी. जिसके बाद से ही उनके परिवार में विवाद शुरू हो गया. दरअसल, शहीद के माता-पिता का आरोप है कि उनकी बहू, बेटें के कीर्ति चक्र को साथ लेकर हमेशा के लिए घर छोड़ कर अपने मायकें चली गई. उनका कहना है कि उनके एकलौतें बेटे की वो एक आखिरी निशानी थी, जो कि अब उनके पास नही है. वहीं अब शहीद के माता पिता की मांग है कि NOK नीति में बदलाव किए जाए, ताकि सैनिक की मौत के बाद वित्तीय सहायता केवल पत्नी को ही न दी जाए, बल्कि उसमें बाकी परिवार को भी शामिल किया जाए.
क्या है NOK पॉलिसी?
आपको बता दें कि NOK का फुलफॉर्म 'नेक्स्ट ऑफ किन' है. ये पॉलिसी शहीद के आश्रितों से जुड़ी होती है. जिससे सरकार की तरफ से शहीद जवान के आश्रितों को कई तरह की सुविधाएं मिलती हैं. अगर हम आपकों आसान भाषा में समझाएं तो यें एक तरह से नॉमिनी का मामला है. जवान के शहीद होने के बाद आश्रित को सरकार की तरफ से मिलने वाली राशि, पेंशन और अन्य सभी सुविधाएं दी जाती हैं. बता दें कि आर्मी में भर्ती होने वाला जवान या अफसर जब सेवा में जाता है, तो उसके माता-पिता या अभिभावक का नाम NOK में दर्ज होता है. लेकिन जब उस जवान या सेना के अधिकारी की शादी होती है, तो उसके बाद विवाह और यूनिट भाग II के आदेशों के तहत उस व्यक्ति के नजदीकी परिजनों में माता-पिता की बजाय उसके जीवनसाथी का नाम दर्ज किया जाता है. कैप्टन अंशुमान सिंह के मामले में उनकी शादी के बाद उनकी पत्नी का नाम बतौर आश्रित दर्ज हुआ है. जिस कारण कैप्टन अंशुमान सिंह के शहीद होने के बाद उनकी आश्रित पत्नी को सभी सुविधाएं मिलेगी. अब जब उनके एकलौते बेटे की बहू उनको छोड़ कर चली गई है तो शहीद अंशुमान सिंह के पिता इस पॉलिसी में बदलाव की मांग कर रहे है.
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