ब्रह्मात्म तत्त्व के एकत्व विज्ञान से सुलभ होता है कैवल्य मोक्ष - पुरी शंकराचार्य

रायपुर : हिन्दुओं के सार्वभौम धर्मगुरु एवं हिन्दू राष्ट्र के प्रणेता पूज्यपाद पुरी शंकराचार्य जी सनातन धर्म की सर्वकालिक प्रासंगिकता की चर्चा करते हुये संकेत करते हैं कि सनातन धर्म में विश्व के प्रत्येक मानव को भारत वर्ष के अग्रजन्मा मनीषियों के सम्पर्क में आकर अपने - अपने चरित्र की शिक्षा प्राप्त करने का सुयोग सुलभ है। भारत के चक्रवर्ती नरेन्द्रों का यह दायित्व रहा है कि वे चतुर्दश भुवनात्मक ब्रह्माण्ड में जितने भी स्थावर - जङ्गम प्राणी हैं, उनका जो स्वभाव सिद्ध आहार है, उन्हें सुलभ करावें । धान्य, वेद, वीर्य - ओज - बल - अमृत, कव्य, स्वर माधुर्य - सौन्दर्य, विद्या, सिद्धि, तृण, रस, फल, आसव - मदिरा, रुधिर, मांस, विष, माया आदि क्रमशः मनुष्यों, देवों, पितरों, गन्धवों - अप्सराओं, सिद्धों, पशुओं, वृक्षों, पक्षियों, दैत्य - दानवों, यक्ष - राक्षसों, सर्पादि विषधरों और किम्पुरुषों के निसर्ग सिद्ध आहार हैं। चक्रवर्ती नरन्द्रों का यह भी दायित्व है कि पर्वतादि परोपकारी पदार्थों को लोकोपकारिणी धरोहर सुवर्णादि विविध धातुओं से सम्पन्न रखें। उक्त तथ्य श्रीमद्भागवत में सन्निहित चतुर्थ स्कन्ध के अन्तर्गत अट्ठारहवें अध्याय के अनुशीलन से सिद्ध है। नाम, गोत्र, देश, काल, सम्बन्ध के उल्लेख पूर्वक श्रद्धा तथा मन्त्र के योग से सम्पादित यज्ञ, दान, तप, श्राद्ध, तर्पणादि सर्वपोषक प्रकल्प सनातन धर्म के अतिशय महत्त्व के व्यापक हैं। सनातन  धर्म में वित्त का लौकिक तथा पारलौकिक उत्कर्ष की भावना से धर्म, यश,अर्थ, काम और स्वजनों के लिये पाँच प्रकार से उपयोग तथा विनियोग विहित है। सनातन धर्म में आदर्श शासक वही मान्य है, जिसके जनपद (शासन क्षेत्र) में कोई चोर, मदिरादि प्राणघातक और प्रज्ञापहारक पदार्थों का सेवन करने वाला, स्वेच्छाचारी तथा स्वेच्छाचारिणी एवम् यज्ञ - अध्ययन तथा दानरूप धर्मस्कन्धों से विहीन मानव ना हो। सनातन धर्म में वेदान्त वेद्य सच्चिदानन्द स्वरूप सर्वेश्वर स्रष्टा तथा सृज्य अर्थात् सृष्टि के अभिन्न निमित्तोपादान कारण दोनों ही सिद्ध हैं ; अतएव वे श्रीरामकृष्णादि रूपों में साक्षात् अवतीर्ण होते हैं। वे साकार - निराकार, सगुण - निर्गुण दोनों ही रूपों में उपास्य सिद्ध हैं। सनातन धर्म में कर्मोपासना की वह अमोघ विधा सन्निहित है, जिसके अनुष्ठान से मनुष्य कालान्तर में इन्द्र, वरुण, कुबेर, यम आदि दिक्पालों के पदों को प्राप्त कर सकता है। वह सनातन - सर्वेश्वर की उपासना के अमोघ प्रभाव से सार्ष्टि, सारूप्य, सालोक्य, सामीप्य और सायुज्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है। उसे ब्रह्मात्म तत्त्व के एकत्व  विज्ञान से कैवल्य मोक्ष तक सुलभ हो सकता है।

ब्रह्मादि तुल्य ऐश्वर्य सम्पन्नता सार्ष्टि  मोक्ष है। भगवत्सदृश चतुर्भुजादि रूप सम्पन्नता सारूप्य मोक्ष है। भगवत् धाम की सम्प्राप्ति सालोक्य मोक्ष है। भगवत् सान्निध्य सामीप्य मोक्ष है। भगवत् तादात्म्यापत्ति सायुज्य मोक्ष है। निर्गुण - निर्विशेष मुक्तोप्य सृप्य ब्रह्मरूपता कैवल्य मोक्ष है। सनातन धर्म में व्यास आसन आरूढ़ आदर्श आचार्य वे मान्य हैं जिनके स्वस्थ मार्गदर्शन में वैदिक वाङ्मय तथा तदनुसार आचार - विचार और साम्राज्य सुलभ हो और जो सर्वहित की भावना से प्रभु की नित्य प्रार्थना करते हों।

रिपोर्ट : भुपेन्द्र यादव

 

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