वो साल दूसरा था ...ये साल दूसरा है !
वो साल दूसरा था ...ये साल दूसरा है !
वह अप्रैल 1912 था...और दो दिन पहले बीत जाने वाला यह अप्रैल 2021 !
अप्रैल 1912 टाइटैनिक दुर्घटना.... और अप्रैल 2021 कोरोना आपदाकाल!
भाप का सबसे बड़ा जहाज था टाइटैनिक ! उस पर 2223 लोग सवार थे। लाइफबोट 16 थीं। हरेक लाइफ बोट की क्षमता 65 लोगों की थी। यानी इन सारी लाइफबोट को मिलाकर करीब आधे यात्री ही बचाये जा सकते थे। मतलब ये कि सभी को बचाने के लिए लाइफबोट थी ही नहीं । जहाज न्यूयॉर्क जा रहा था। अब आप पूछ सकते हैं कि कम्पनी ने इतनी कम लाइफबोट क्यों रखी? जवाब है, ब्रिटिश बोर्ड ऑफ ट्रेड की गाइडलाइंस के अनुसार इतना पर्याप्त था। ठीक इसी तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुसार एक हजार आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए । भारत में तो 11000 लोगों के पीछे एक डॉक्टर है। अब अगर है तो है क्या उखाड़ लेंगे ।
तो इसे क्या माना जाए, क्या आधे लोगों के डूबने के मुकम्मल प्लान की जिम्मेदार ब्रिटिश सरकार की थी ? समंदर में टाइटैनिक जहाज डूब गया ।
लाइफबोट से करीब 1100 लोग बचाए जा सकते थे, पर लाइफबोट से जान बचाने वाले लोगों की संख्या थी मात्र 506। कुल यात्रियों की आधी और बोट की क्षमता से भी आधे से कम! करीब 200 और भी बचे, जो केवल अपनी लाइफ जैकेट के भरोसे आधी रात को समंदर में कूद गए और माइनस 2 डिग्री के बर्फीले पानी में हाइपोथर्मिया से भी नहीं मरे। इतने ठंडे पानी में 20 मिनट से ज़्यादा बचना मुश्किल होता है। यह उनकी किस्मत थी। प्योर किस्मत!
कोरोना से भीषण संक्रमण मे बगैर हॉस्पिटल और ऑक्सीजन के और पूरे इलाज के बिना भी हजारों लोग जान बचाने में सफल हुए हैं। यह भी उनकी प्योर किस्मत है... प्योर किस्मत!
65 लोगों की क्षमता वाली एक लाइफबोट में केवल 12 लोग चढ़े। एक दूसरी लाइफबोट में 26 लोग ही थे। ये फर्स्ट क्लास वाले लोग थे। ये अपने साथ टाइटैनिक में घूमने के लिए अपने कुत्ते-बिल्लियां भी लेकर गए थे । इस हादसे मे बचने वालों में सबसे ज़्यादा 61% फर्स्ट क्लास के थे, 42% सेकेंड क्लास, और 24% तीसरे दर्जे के लोग थे।
ऐसा लगता है कि कोविड से भी जिंदा बचने वालों के बीच यही प्रतिशत होगा। पैसा और पॉवर जिनको आपके बूते मिली है, वे संक्रमित हुए, तो भी बच जाएंगे चाहे वो राजनेता हो बड़े नौकरशाह, व्यवसायी या फिल्मी सितारे । उन्हें सारी लाइफबोट उपलब्ध है। पूरी सुरक्षा, बड़ी लाइफबोट, पूरा आराम, शानदार केयर ।
दूसरे और तीसरे दर्जे के लोग लाइफबोट खोजते हुए कूदकर समंदर पार करने की कोशिश करेंगे। बच गए, तो प्योर किस्मत। मालदार, पॉवरफुल और कनेक्शन वाले लोगों के लिए अच्छे अस्पताल और सबकुछ उपलब्ध है । बाकी लोगों का संघर्ष जारी है – समय पर अस्पताल, आईसीयू, ऑक्सीजन, दवाई मिल जाये तो ठीक नही तो अंत में शव वाहन मिल जाए तो उनकी किस्मत । नही तो अनंत यात्रा ।
उस वक्त जिस तरह डूबते टाइटैनिक की ऊंचाई से लोग बचने के लिए ठंढे और अथाह समन्दर में छलांग लगा रहे थे आज वैसे ही लोग बिना सोचे समझे दवाईयां खरीदने में लगे है। आज स्थिति वो बन गयी है कि अगर कोई कह दे कि बकरी की लेड़ी भूंज कर खाने से कोरोना खत्म हो जॉएगा तो ये लेड़ी भी बाजार से गायब हो जाएगी । जो लोग बेवजह जमाखोरी करने में लगे है और अपने घर पर बेवजह ऑक्सीजन सिलिंडर और रेमेडेसीवीर खरीद कर रख रहे है उनसे यही कहना है कि बांस,कफन और लकड़ियां भी खरीद कर रख ले बाद में पता नही मिले या न मिले !
वैसे यह बता दूं कि जब टाइटैनिक जहाज डूब रहा था लोग चीख पुकार कर रहे थे तब भी डूबते हुए टाइटैनिक के डेक पर ऑर्केस्ट्रा बजाया जा रहा था जैसे आज चुनावों में जीत पर बजाया जा रहा है । मंजर और मौते वही थी जो आज है! दुःख दर्द वही था जो आज है ! हालात वही थे जो आज है ! बस फर्क सिर्फ इतना है कि वो साल दूसरा था .....ये साल दूसरा है ।
रिपोर्टर : सत्येन्द्र कुमार
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