साहित्य को जवान रखने वाले लख़नवी युवा हिमांशु बाजपेयी

न खाता न बही है
जो तुम बोलो, वही है
न्यूज़ ये छप रही है
सब कुछ बिल्कुल सही है
मगर
मेरे शहर के हैं सवाल कुछ
मेरे शहर के हैं सवाल कुछ

ये पंक्तियां हैं लखनवी मिसाठ की चाशनी में घुले शब्दों से खेलने वाले युवा साहित्यिक रत्न  हिमांशु बाजपेयी की.  लखनऊ के नवाबों के किस्से तमाम प्रचालित हैं, लेकिन अवाम के किस्से किताबों में बहुत कम ही मिलते हैं. जो उपलब्ध हैं, वह भी बिखरे हुए. लेकिन लेखक और कथाकार हिमांशु बाजपेयी की ऑडियोबुक ‘किस्सा किस्सा लखनउवा’ में पहली बार उन तमाम बिखरे किस्सों को एक जगह बेहद खूबसूरत भाषा में सामने लाया गया था और लोगों ने उसे खूब पंसद भी किया. इन दिनो देश के मशहूर दास्तानगो हिमांशु बाजपेयी पूरी दुनिया में दास्तानगोई के बखूबी रंग बिखेर रहे हैं और साहित्य में अपना अलग ही योगदान दे रहे हैं . उर्दू में खास अंदाज की लंबी कहानियां सुनाने की कला को दास्तानगोई कहते हैं. युवाओं को साहित्य से जोड़ना कोई आसान काम नहीं है लेकिन युवाओं में साहित्य की रूचि को बरकरार रखना हिमांशु बाजपेयी जी को बखूबी आता है .इसीलिए इस बार का युवा साहित्य अकादमी पुरस्कार हिमांशु बाजपेई के नाम किया गया है . आज के समय में हिमांशु बाजपेयी की दास्तानगोई एक ऐसी मिसाल बन चुकी है, जो ताज़ा वक़्त के किस्सों में दुनियादारी के उन दरवाजों, खिड़कियों को खोलती लगती है, जिनसे लफ़्ज-दर-लफ़्ज उमड़ते शब्दों के झोके थपकियां दे-देकर सुलाते नहीं, नई-नई तरह की जानी-अनजानी दुनियाओं में दाखिल कराने लगते हैं.हिमांशु बाजपेयी जैसे लेखक ना केवल साहित्य को जिंदा रखते है बल्कि खुद के शब्दों से साहित्य को भी जवान रखते है. हिमांशु बाजपेयी को शब्दों में हालातों को पिरोना बखूबी आता है इसीलिए तो पीएम मोदी को भी इनकी दास्तानगोई काफी पंसद आई थी और और उन्होनें इसका जिक्र मन की बात में किया था .आपको बता दें ये किताब हिमांशु की एक कोशिश थी, लोगों को अदब और तहजीब की एक महान विरासत जैसे शहर की मौलिकता के क़रीब ले जाने की. इस किताब की भाषा जैसे हिन्दुस्तानी ज़बान में लखनवियत की चाशनी है. जो अब लोगों को खूब भा गई है .

हिमांशु की यह किताब अवध और लखनऊ के हर खास और आम के बारे जानकारी तो देती है साथ ही वहां की सभ्यता और संस्कृति में उनका क्या योगदान है उसके बारे में भी बताती है.
हिमांशु पेशे से पत्रकार रहे हैं. उन्होंने तमाम मीडिया घरानों के साथ काम किया है. उन्होंने अपना दास्तानगोई प्रशिक्षण 2013 में अपने मित्र स्वर्गीय अंकित चड्ढा, एक प्रसिद्ध दास्तानगो और कथाकार, के बाद शुरू किया.हिमांशु ऑडियोबुक के लेखक और कथाकार दोनों हैं. उन्होंने नेटफ्लिक्स सीरीज़ ‘सेक्रेड गेम्स’ में दास्तानगोई में एक कैमियो किया था. इतना ही नहीं पुराने लखनऊ के रहने वाले हिमांशु नई शैली के साथ पुरानी घटनाओं के कहानीकार हैं. उन्होंने पुराने लखनऊ के राजा बाजार इलाके में एक स्कूल में पढ़ने और पढ़ने में रुचि विकसित की. राजा बाजार एक ऐसा क्षेत्र है जहां लोग उर्दू बोलते हैं. उर्दू के साथ खास संबंध और उस क्षेत्र के होने के कारण उन्होंने यह भाषा-बोली सीखी थी. आज हिमाशूं ने साहित्य के जगत में कम समय में जो नाम कमा लिया है वो नाम सदियां बीतने तक भी कई लोगों को नहीं मिल पाता है .उम्मीद रहेगी की लखनली अंदाज में साहित्य के प्रेमियों को और भी खास और बेशकीमती शब्दों की पारी मिलती रहेगी .

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