“मराठा” का गौरव: छत्रपति शिवा जी
छत्रपति शिवाजी महाराज की आज 388 वीं जयंती है. उनका जन्म 19 फरवरी 1630 में हुआ था. जिन्होंने 1674 ई, में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। वे एक महान शासक ही नहीं बल्कि दयालु योद्धा भी थे . उन्होंने कई वर्ष औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया, तो वही सन 1674 मे रायगढ़ उनका राज्यभिषेक हुआ जिसके बाद वह "छत्रपति" कहलाये. भारत के वीर सपूतों में से एक शिवाजी महाराज को लोग हिंदू हृदय सम्राट कहते हैं तो कुछ लोग इन्हें “मराठा” गौरव कहते हैं. छत्रपती शिवाजी महाराज ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों कि सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया।
सभी धर्मों का सम्मान
वह एक धार्मिक हिंदू के साथ दूसरे धर्मों का भी सम्मान करते थे. उन्होंने समर-विद्या में अनेक नवाचार किये तथा छापामार युद्ध की नयी शैली (शिवसूत्र) विकसित की। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। उन्होंने ने कई मस्जिदों के निर्माण में अनुदान दिया, इस वजह से उन्हेंG हिन्दू पंडितों के साथ मुसलमान संतों और फकीरों का भी सम्मान प्राप्त था, वह जबरन धर्मांतरण के सख्त खिलाफ थे| तो वही उनकी सेना में मुस्लिम बड़े पद पर मौजूद थे,इब्राहिम खान और दौलत खान उनकी नौसेना के खास पदों पर थे, तो वही सिद्दी इब्राहिम उनकी सेना के तोपखानों का प्रमुख था.
महान योद्धा
वह सभी कलाओं में माहिर थे, उन्होंने बचपन में राजनीति एवं युद्ध की शिक्षा ली थी। उनकी सेना पहली ऐसी थी जिन्होंने गुरिल्ला युद्ध का जमकर इस्तेमाल किया गया| जमीनी युद्ध में शिवाजी को महारत हासिल थी, जिसका फायदा उन्हें दुश्मनों से लड़ने में किया ,तो वही पेशेवर सेना तैयार करने वाले वो पहले शासक थे और उन्होंने ने अपने सैनिकों की तादाद को 2 हजार से बढ़ाकर 10 हजार किया था| भारतीय शासकों में वो पहले ऐसे थे जिसने नौसेना की अहमियत को समझा.
मुगलों से युद्ध
मुगलों से शिवाजी ने 1657 तक मुगलों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध कायम रखे थे. .यहां तक कि बीजापुर जीतने में शिवाजी ने औरंगजेब की मदद भी की लेकिन शर्त ये थी कि बीजापुर यहां तक कि बीजापुर जीतने में शिवाजी ने औरंगजेब की मदद भी की लेकिन शर्त ये थी कि बीजापुर के गांव और किले मराठा साम्राज्य के तहत रहें . बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह की मृत्यु हो जाने के बाद बीजापुर में अराजकता का माहौल पैदा हो गया। इस स्थिति का लाभ उठाकर औरंगज़ेब ने बीजापुर पर आक्रमण कर दिया और शिवाजी ने औरंगजेब का साथ देने की बजाय उस पर धावा बोल देते है इसके परिणामस्वरूप औरंगजेब शिवाजी से खफ़ा हो जाता है .
ऐसे दी थी शिकस्त
शिवाजी के बढ़ते प्रताप से आतंकित बीजापुर के शासक आदिलशाह ने शिवाजी को बंदी बनाने की योजना बनाई , जिसमें असफल रहने के बाद आदिलशाह ने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार किया. इस घटना का पता चलने पर शिवाजी आगबबूला हो गए. उन्होंने नीति और साहस का सहारा लेकर छापामारी कर जल्द ही अपने पिता को इस कैद से आजाद कराया. शिवाजी ने अपने पिता को कैद से छुड़ाने के साथ ही पुरंदर और जावेली के किलों पर कब्जाअ कर लिया इस घटना के बाद औरंगजेब ने जयसिंह और दिलीप खान को शिवाजी के पास पुरंदर संधि पर हस्ता क्षर करने के लिए भेजा. संधि के मुताबिक शिवाजी को मुगल शासक को 24 किले देने पड़े. शिवाजी ने अपने पराक्रम के बल पर सभी 24 किलों को दोबारा जीता, इस बहादुरी के बाद शिवाजी को छत्रपति की उपाधि मिली | सन 3 अप्रैल, 1680 इन महान शासक इन की मृत्यु हो गयी .
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