हजरत अली ने दिया भाईचारा व शांति का पैगाम
सिद्धार्थनगर : शिया मुस्लिम समुदाय के पहले इमाम हजरत अली ने दुनिया वालों को आपसी भाईचारा व शांति का पैगाम दिया था। ये बातें मौलाना महफूज हुज्जत ने शनिवार की रात हल्लौर स्थित जामा मस्जिद में हजरत अली के जन्मदिन की पूर्व संध्या पर आयोजित महफिल में कहीं। उन्होंने कहा कि हजरत अली शिया मुस्लिम समुदाय के पहले इमाम थे। इनका जन्म मक्का में खान-ए काबा के अंदर हुआ था। हजरत अली के बेटे इमाम हुसैन ने कर्बला की लड़ाई में भूखे-प्यासे रहकर बताया कि जेहाद किसे कहते हैं। हजरत अली ने दुनिया वालों को अमन और शान्ति का पैगाम देते हुए कहा कि इस्लाम अहिंसा के पक्ष में है। उन्होंने कहा था कि इस्लाम इंसानियत का धर्म है।
उन्होंने हमेशा राष्ट्रप्रेम और समाज से भेदभाव हटाने की कोशिश की। हजरत अली ने कहा था कि अपने दुश्मन से भी प्यार किया करो ताकि वह एक दिन तुम्हारा दोस्त बन जाए। रसूले खुदा के बाद इन्होंने अपने चार वर्ष के शासनकाल में दुनियां को सीख दी कि देश से मोहब्बत इंसान के ईमान की निसानी है। अगर कोई देश से मोहब्बत नहीं करता है तो वह मुसलमान नहीं हो सकता। इस दौरान ताकीब रिजवी, अजीम हैदर, कसीम रिजवी,जमाल हैदर,तसबीब हसन, महबूब हैदर आदि मौजूद रहे।
महफिल में शायरों ने पेश किया कलाम शनिवार की रात आयोजित महफिल में हजरत अली अस के जन्मदिन पर बेताब, कायनात, हसन जमाल, कामियाब हैदर, खुलूस रिजवी, नफीस हैदर, महबूब हसन, जानशीन साबिर आदि शायरों ने उनके शान में 12 बजे रात तक कलाम पढ़ा। इसे सुन अकीदतमंदों ने खूब वाहवाही दी।
हल्लौर से डुमरियागंज मंदिर चौराहे तक निकला जुलूस रविवार को दिन में दो बजे अली ब्वाज कमेटी की ओर से हजरत अली के यौमे पैदाइश के मौके पर हल्लौर जामा मस्जिद के परिसर से जुलूस निकाला गया। जो पूरे गांव में भ्रमण करने के बाद हल्लौर चौराहा होते हुए बनगंवा, बैदौला से मंदिर चौराहा पहुंचा। वहां से वापस होकर हल्लौर चौराहे पर पहुंचा जहां जशने अली में सम्मलित हो गए।
रिपोर्टर : सुशील कुमार
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