स्नातक एमएलसी के पद के सबसे कुशल और लगनशील उम्मीदवार -- प्रो० सुनील कुमार श्रीवास्तव

“जो चला है राह अकेले, सारा जग उस पर हंसा है... और इतिहास भी गवाह है कि उसी ने इतिहास रचा है।” यह पंक्ति उस संकल्प और जज्बे को बयां करती है जो प्रोफेसर सुनील कुमार श्रीवास्तव के व्यक्तित्व में देखने को मिलता है। एक ऐसे शख्सियत जो सिर्फ नाम नहीं, बल्कि एक मिशन हैं — समाजसेवा, शिक्षा, और नेतृत्व की मिसाल। वे न केवल एक सफल प्रोफेसर और आर्किटेक्ट हैं, बल्कि समाज की सेवा में भी समर्पित हैं। आज हम बात करेंगे उन प्रेरणादायक विचारों और अनुभवों की, जिन्होंने उन्हें देश के जाने-माने शिक्षाविद और समाजसेवी के रूप में स्थापित किया है. प्रोफेसर सुनील कुमार श्रीवास्तव के साथ सी न्यूज भारत ने खास बातचीत की .....और जाना कि कैसे वे युवा पीढ़ी को इतिहास रचने के लिए प्रेरित करते हैं।
जीवन यात्रा की शुरुआत
प्रोफेसर सुनील कुमार श्रीवास्तव ने अपनी शिक्षा की शुरुआत 1986 में कानपुर से इंटरमीडिएट के साथ की। इसके बाद उनका चयन गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर में हुआ, जहाँ उन्होंने पांच वर्षों तक अध्ययन किया और 1992 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने दो साल नेपाल में डॉक्टर डीवाई पाटिल एजुकेशनल एकेडमी में अध्यापन के साथ-साथ आर्किटेक्चर प्रैक्टिस भी की। हालांकि, नेपाल सरकार द्वारा कॉलेज बंद कर दिए जाने के बाद भी वे वहाँ प्राइवेट प्रैक्टिस जारी रखे। वर्ष 2009 में उन्होंने मास्टर्स की डिग्री हासिल की। 2014 में आईटीएम स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर एंड टाउन ट्रेनिंग से जुड़कर वे वहाँ के डायरेक्टर के रूप में कार्यरत हैं। उनका जीवन पढ़ाई, प्रैक्टिस और शिक्षण का निरंतर संगम रहा है।
क्या आप इतिहास रचने आए हैं?
प्रोफेसर सुनील बताते हैं कि इतिहास रचना एक बड़ा शब्द है, लेकिन उनका विश्वास है कि हर व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुसार सही दिशा में कार्य करना चाहिए। उन्होंने अपने पितृ, मातृ और गुरु ऋण का निर्वाह करना अपना कर्तव्य माना है। जो ज्ञान उन्होंने अपने गुरुओं से प्राप्त किया, वह वे आने वाली पीढ़ी तक पहुँचाना चाहते हैं। समाज ने उन्हें बहुत कुछ दिया है, इसलिए अब वे समाज को वापस देना चाहते हैं। इसी उद्देश्य से वे राजनीति में कदम रखने का विचार भी कर रहे हैं ताकि व्यापक स्तर पर समाज सेवा कर सकें।
समाजसेवी, अध्यापक और प्रोफेशनल — कैसे रखते हैं संतुलन?
सुनील कुमार श्रीवास्तव स्वयं को बिजनेसमैन नहीं, बल्कि प्रोफेशनल मानते हैं। उनका कहना है कि बिजनेस में मुनाफा-नुकसान होता है, जबकि प्रोफेशन में समाज और पर्यावरण के प्रति समर्पण की भावना होती है। वे आर्किटेक्ट हैं और वेल्यूएशन का काम भी करते हैं। दिन में वे पढ़ाते हैं और शाम को प्रैक्टिस करते हैं। उनका मानना है कि अध्यापन से न केवल वे अपने ज्ञान को साझा करते हैं, बल्कि छात्रों से भी सीखते हैं। वे विद्यार्थियों को केवल मार्क्स के लिए पढ़ाई नहीं, बल्कि जीवन के व्यावहारिक ज्ञान पर अधिक ध्यान देने की सलाह देते हैं।
आर्किटेक्चर क्यों चुना?
आर्किटेक्चर का क्षेत्र तब इतना लोकप्रिय नहीं था और इसे केवल इंजीनियरिंग का ही एक हिस्सा समझा जाता था। सुनील कुमार ने शुरू में सेना में करियर बनाने का प्रयास किया था, लेकिन मेडिकल कारणों से यह संभव नहीं हो पाया। बाद में उन्होंने इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर दोनों में प्रवेश के लिए प्रयास किया, जहां आर्किटेक्चर उनका दूसरा विकल्प था। आज वे अपने चुनाव पर गर्व महसूस करते हैं और कहते हैं कि आर्किटेक्ट होना उनके लिए सम्मान की बात है।
समाज सेवा की भावना कैसे जागी?
उनके अनुसार समाज सेवा की भावना जन्मजात होती है और परिवार तथा सामाजिक परिवेश इसका मुख्य स्रोत होता है। जब इंसान का दायरा बढ़ता है, तो उसकी सेवा को भी समाज पहचानता है। वे स्वामी विवेकानंद को अपने प्रेरणा स्रोत के रूप में मानते हैं, जिन्होंने भारत को विश्व में एक नई पहचान दी।
क्या खुद को नेता मानते हैं?
सुनील कुमार खुद को नेता नहीं मानते। वे कहते हैं कि आजकल नेता शब्द केवल बड़ी गाड़ियों और भीड़ के लिए इस्तेमाल होता है, जबकि असली नेता वह होता है जो समाज को सही दिशा देता है, जैसे महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस। वे ऐसे नेताओं को ही सम्मान देते हैं।
“एक देश एक चुनाव” मुहिम का मकसद
उनका मानना है कि भारत में चुनाव की प्रक्रिया लंबे समय तक चलती है, जिससे विकास कार्य रुक जाते हैं। आचार संहिता के कारण कई महीने सरकारी कामकाज ठप हो जाता है। वे “एक देश एक चुनाव” की वकालत करते हैं, जिससे समय और धन की बचत होगी, मतदान में वृद्धि होगी और चुनावों का बोझ कम होगा।
उनका सपना और भविष्य की योजना
प्रोफेसर सुनील कुमार का कहना है कि उनका कोई बड़ा सपना नहीं है। उन्हें ईश्वर ने लोगों की सेवा करने का अवसर दिया है और वे अपने धर्म और जिम्मेदारियों का पालन साहस के साथ करते रहेंगे। वे शिक्षक हैं और शिक्षा देना उनका धर्म है, जिसे वे पूरी निष्ठा के साथ निभा रहे हैं।
एमएलसी चुनाव की तैयारी और रणनीति
सुनील कुमार एमएलसी चुनाव के लिए भी तैयारी कर रहे हैं। उनका लक्ष्य है कि वे केवल अपने संस्थान के वोटरों पर निर्भर न रहते हुए समाज के हर वर्ग से जुड़ें—शिक्षक, विद्यार्थी, आर्किटेक्ट, वकील, व्यापारियों के बीच सक्रिय प्रचार-प्रसार कर रहे हैं और उन्हें समाज से भरपूर सहयोग मिल रहा है।
प्रोफेसर सुनील कुमार श्रीवास्तव का जीवन शिक्षण, सेवा और सामाजिक समर्पण का उत्कृष्ट उदाहरण है। उनका मानना है कि सही दिशा में लगातार काम करके ही व्यक्ति समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। वे न केवल एक अच्छे शिक्षक और प्रोफेशनल हैं, बल्कि एक सच्चे समाजसेवी और प्रेरक भी हैं। और अगर उन जैसे सच्चे कर्मयोगी को यहाँ स्नातक एमएलसी चुनाव में जीतकर काम करने का मौका ,मिलेगा तो निश्चित ही वह हर वर्ग की बात सरकार तक पहुँचाने का काम करेंगे
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