क्या है नार्को टेस्ट के पीछे की कहानी जिससे सामने आएगा आफताब का सच

राजधानी  दिल्ली में दहला देने वाले श्रद्धा हत्याकांड में दिल्ली की साकेत कोर्ट ने आरोपी आफताब पूनावाला का नार्को टेस्ट कराने की मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने पूछताछ के अपग्रेड साधन के रूप में विशेष जांच के इस्तेमाल पर जोर दिया है। आइये जानते है, नार्को टेस्ट क्या होता है और इससे पहले भारत मे ये कब हुआ । 

नार्को टेस्ट - नार्को टेस्‍ट को ट्रुथ सीरम के रूप में भी जाना जाता है। इसका उपयोग पहले महत्वपूर्ण मामलों को सुलझाने के लिए किया गया है। इस टेस्‍ट में एक दवा (जैसे सोडियम पेंटोथल, स्कोपोलामाइन और सोडियम अमाइटल) को शरीर की श‍िराओं में द‍िया जाता है। एनेस्थीसिया के जरिये इसे लेने वाले व्यक्ति को विभिन्न चरणों में प्रवेश करने का कारण बनता है और उसकी चैतन्‍यता कम होती जाती है। इस दवा को लेने के बाद शख्‍स सम्मोहक अवस्था चला जाता है। वह व्यक्ति कम संकोची हो जाता है और जानकारी प्रकट करने की अधिक संभावना होती है, जो आमतौर पर सचेत अवस्था में सामने नहीं आ पाती है।

कहां से आया है नार्को शब्‍द
नार्को एनालसिस शब्द ग्रीक शब्द नार्को (जिसका अर्थ है एनेस्थीसिया या टॉरपोर) से लिया गया है। इसका उपयोग एक क्‍लीनिकल ​​और मनोचिकित्सा तकनीक का वर्णन करने के लिए किया जाता है, जो साइकोट्रोपिक दवाओं विशेष रूप से बार्बिटुरेट्स का उपयोग करता है

व्यक्ति की सहमति भी है जरूरी -जांच एजेंसियां ​​इस टेस्‍ट का उपयोग करती रही हैं क्योंकि अन्य साक्ष्य मामले में स्पष्ट तस्वीर सामने नहीं आ पाती है। नियमों के मुताबिक, नार्को टेस्ट  कराने के लिए व्यक्ति की सहमति भी जरूरी होती है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि नार्को एनालिसिस, ब्रेन मैपिंग और पालीग्राफ टेस्ट किसी भी व्यक्ति की सहमति के बिना नहीं किए जा सकते। शीर्ष अदालत ने इस तरह के परीक्षणों की वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं के जवाब में कहा था कि यह अवैध और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन है। हालांकि, नार्को टेस्‍ट के दौरान दिए गए बयान अदालत में प्राथमिक साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किए जाते हैं। जब अदालत को कुछ परिस्थितियों में लगता है कि मामले के तथ्य और प्रकृति इसकी अनुमति दे रहे हैं, इस टेस्‍ट की अनुमति दी जाती है।


आरोपी से नींद की अवस्‍था में पूरी जानकारी हासिल करने का प्रयास- 

विशेषज्ञों के मुताबिक, नार्को टेस्ट के दौरान मालिक्यूलर लेवल पर व्यक्ति के नर्वस सिस्टम में दखल देकर उसकी हिचक कम की जाती है। नींद जैसी अवस्था में अपराध के बारे में प्रमाणिक सत्य प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। इंजेक्शन वाले पदार्थ की डोज व्यक्ति के लिंग, आयु, स्वास्थ्य और शारीरिक स्थिति के अनुसार तय होती है। नार्को टेस्‍ट की प्रक्रिया के दौरान, नाड़ी और रक्तचाप की लगातार निगरानी की जाती है। अगर ब्लड प्रेशर या पल्स गिर जाता है तो आरोपी को अस्थाई तौर पर आक्सीजन भी दी जाती है।

नार्को टेस्ट में शरीर किस प्रभाव में होता है?-
नार्को टेस्ट करते समय अभियुक्त को जब सोडियम पेंटोथॉल दिया जाता है तो उसको इसका नशा होने लगता है. वह ऐसी ऐसी अवस्था में चला जाता है, जहां उसके लिए झूठ बोलना मुश्किल हो जाता है. तब वह पूछे गए सवालों का सच जवाब देता है.

 क्या पोलिग्राफिक टेस्ट भी इसी की तरह होता है?
नहीं पोलिग्राफिक टेस्ट मनोवैज्ञानिकक रिस्पांस के आधार पर होता है, ये तब होता है जब ये लगने लगता है कि ये शख्स झूठ बोल रहा है या उसकी बातें असल तथ्यों से अलग हैं. इसमें कोई इंजेक्शन नहीं दिया जाता. ना ही शरीर के साथ कोई उपकरण लगाकर पल्स रेट, रक्त चाप और दूसरी हरकतों को रिकॉर्ड करते हैं.


भारत में इससे पहले कब हुए हैं नार्को टेस्ट?

-भारत में पहली बार 2002 में गोधरा कांड मामले में नार्को एनालिसिस का इस्तेमाल किया गया था. साल 2003 में अब्दुल करीम तेलगी को तेलगी स्टांप पेपर घोटाले में टेस्ट के लिए ले जाया गया था. हालांकि तेलगी के मामले में बहुत सारी जानकारियां जुटाई गई थीं, लेकिन सबूत के तौर पर इसके महत्व को लेकर संदेह जताया गया था. कुख्यात निठारी सीरियल कांड के दो मुख्य आरोपियों का गुजरात के गांधीनगर में नार्को टेस्ट भी हुआ था। 

-वहीं साल 2007 के हैदराबाद ट्विन ब्लास्ट की घटना में, अब्दुल कलीम और इमरान खान का नार्को टेस्ट किया गया था. हालांकि, पुलिस जांच में कोई सफलता हासिल करने या इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस शूटआउट पर 2005 के आतंकी हमले के संदिग्ध संबंध में विफल रही थी. 


-इसके अलावा, कुर्ला में 2010 में नौ साल की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के आरोपी मोहम्मद अजमेरी शेख का भी नार्को टेस्ट किया गया था.  

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