शक्ति रूप भगवती माँ दुर्गा की पूजा

                                                                               ।। ऊँ नमश्चण्डिकायै।।
भारत भूमि एक पवित्र संस्कृति से सम्पन्न कर्म भूमि ही नहीं, बल्कि देव भूमि भी है, जहाँ देवी- देवताओं के अवतरण की कई महत्वपूर्ण पौराणिक कथाएं सुविख्यात हैं। सम्पर्ण विश्व, सूर्यादि ग्रह, नक्षत्र तथा पंच तत्व सहित नाना विधि संसार सत्ता के सर्वोपरि इच्छा द्वारा ही चलायमान हैं। यह ध्रुव सत्य है कि बिना सर्वोपरि शक्ति (परम ब्रह्म) की इच्छा के कुछ भी संभव नहीं है।

आज भले ही आधुनिकता की चकाचैंध में कुछ लोग अपनी अज्ञानता को बलपूर्वक थोपने की कोशिशें कर हों, कि देवी-देवता नाम की कोई सत्ता व ताकत नहीं हैं। किन्तु यह सच है कि कहीं न कहीं उन्हें सर्वोपरि सत्ता का एहसास जरूर होता है। हिन्दू धर्म को सनातन धर्म भी कहा जाता है, जो आदि काल से है, जिसमें सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के उत्पत्ति व उसके विस्तार की विशुद्ध जानकारी प्राप्ति होती है, हमारे पौराणिक व वैदिक धर्म ग्रंथ इस बात के गवाह हैं, जब-जब धरा में धर्म की क्षति होती है तथा दुराचार, अपराध, रूपी असुरों की वृद्धि होती हैं। तो भगवान विभिन्न शरीरों में उत्पन्न होकर उनका संहार करके सज्जनों की पीड़ा हरते हैं और धर्म को स्थापित करते हैं।


इसी प्रकार जब महिषासुरादि दैत्यों के अत्याचार से समस्त भू व देव लोक पीडित हो उठा तो परम पिता परमेश्वर की आज्ञा से देव गणों ने एक अद्भुत अजेय शक्ति का सृजन किया, तथा उसे नाना विधि अमोघ अस्त्र-शस्त्र प्रदान कर उसे अजेय और जन कल्याणकारी बना दिया। जो आदि शक्ति माँ जगदम्बा के नाम से अखिल ब्रह्माण्ड में सुविख्यात हुईं। माँ दुर्गा देव व भू लोक की न केवल रक्षक हैं, अपितु सभी के लिए वांछित कल्पतरू के रूप में हैं। शिव व शक्ति की परम कल्याणकारी कथाओं का अति मनोरम वर्णन देवी भागवत, सूर्य, शिव, श्रीमद्भागवत आदि पुराणों मे हैं।

बिना शाक्ति की इच्छा के इस संसार में एक कण भी नहीं हिल सकता सर्वज्ञ दृष्टा भगवान शिव भी (इ की मात्रा, शक्ति) के हटते ही शव (मुर्दा) स्वरूप हो जाते हैं। भगवती दुर्गा ने नौ दिनों में जयंती, मंगलाकाली,भद्रकालीकपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा, स्वधा में प्रकट होकर अहंकार में डूबें हुए शुम्भ-निशुम्भ, महिषासुर, रक्तबीज, जैसे अनेकों दैत्यों का बध कर देवताओं को उनका यज्ञ भाग पुनः दिलाया तथा भू व देव लोक में धर्म की स्थापना कर मानव का परम कल्याण किया।


हमारे शुभेच्छ वैदिक ऋषियों ने कल्याण प्राप्त करने हेतु मानव को इच्छित फल हेतु माँ दुर्गा की पूजा अर्चना का क्रम बताया है, जिसमें राजा सुरथ से महर्षि मेधाने कहा था आप उन्हीं भगवती की शरण ग्रहण कीजिए जो आराधना से प्रसन्न होकर मनुष्यों को भोग, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करती हैं। इसी अनुसार अर्चना करके राजा सुरथ ने अखण्ड साम्राज्य प्राप्त किया।

जब से देवताओं ने अपने तप व तेज का संग्रह करके अद्भुत दिव्य रूपी माँ दुर्गा को अवतरित किया तब से आज तक अनगिनत लोगों नें माँ दुर्गा की अर्चना करके मनोवांछित फल को प्राप्त किया। मनुष्य क्या? माँ दुर्गा की अर्चना तो देव समूह भी करते हैं। साक्षात प्रभु श्रीराम ने भी जगजननी भगवती की आराधना नवरात्रों के विशेष पर्व मे कर दुष्ट रावण का वध किया था।

 

रिपोर्टर : चंद्रकांत सी पूजारी

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