अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो? मजाज़ लखनवी

आज उर्दू के मशहूर शायर मजाज़ लखनवी का जन्मदिन है और आज ज्यादा कुछ न कहते हुए सीधे तौर पर पेश करते हैं मजाज़ लखनवी की कुछ रचनाएँ...।

अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो?
मैने माना के तुम इक पैकर-ए-रानाई हो।

चमन-ए-दहर में रूह-ए-चमन आराई हो,
तलत-ए-मेहर हो फ़िरदौस की बरनाई हो।
बिन्त-ए-महताब हो गर्दूं से उतर आई हो,

मुझसे मिलने में अब अंदेशा-ए-रुसवाई है,
मैने खुद अपने किये की ये सज़ा पाई है।

ख़ाक में आह मिलाई है जवानी मैने,
शोलाज़ारों में जलाई है जवानी मैने।

शहर-ए-ख़ूबां में गंवाई है जवानी मैने,
ख़्वाबगाहों में गंवाई है जवानी मैने।

हुस्न ने जब भी इनायत की नज़र ड़ाली है,
मेरे पैमान-ए-मोहब्बत ने सिपर ड़ाली है।

उन दिनों मुझ पे क़यामत का जुनूं तारी था,
सर पे सरशरी-ओ-इशरत का जुनूं तारी था।

माहपारों से मोहब्बत का जुनूं तारी था,
शहरयारों से रक़ाबत का जुनूं तारी था।

एक बिस्तर-ए-मखमल-ओ-संजाब थी दुनिया मेरी,
एक रंगीन-ओ-हसीं ख्वाब थी दुनिया मेरी।

क्या सुनोगी मेरी मजरूह जवानी की पुकार,
मेरी फ़रियाद-ए-जिगरदोज़ मेरा नाला-ए-ज़ार।

शिद्दत-ए-कर्ब में ड़ूबी हुई मेरी गुफ़्तार,
मै के खुद अपने मज़ाक़-ए-तरब आगीं का शिकार।

वो गुदाज़-ए-दिल-ए-मरहूम कहां से लाऊँ।
अब मै वो जज़्बा-ए-मासूम कहां से लाऊँ।।

देखना जज़्बे मोहब्बत का असर आज की रात
मेरे शाने पे है उस शोख़ का सर आज की रात।

और क्या चाहिय अब ये दिले मजरूह तुझे,
उसने देखा तो बन्दाज़े दीगर आज की रात।

फूल क्या खार भी है आज गुलिस्ता बकिनार,
संग्राज़ है निगाहों में गुहार आज की रात।

महवे गुल्गासत है ये कौन मेरे दोष बदोश,
कहकहा बन गयी हर राहगुज़र आज की रात।

फूट निकला दरो दीवार से सैलाब निशात,
अल्ला अल्लाह मेरा कैफ नज़र आज की रात।

सब्नामिस्ताने तजल्ली का फशु क्या कहिय,
चाँद ने फेक दीया रख्ते सफ़र आज की रात।

नूर ही नूर है किस सिम्त उठाऊं आँखें,
हुस्न ही हुस्न है ता हद-ए-नज़र आज की रात।

कस्र्ते गेती में उमड़ आया है तुफाने हयात,
मौत लरजा पशे परदे दर आज की रात।

अल्ला अल्लाह वो पेशानीय सीमी का जमाल,
रह गयी जम के सितारों की नज़र आज की रात।
आरिजे गर्म पे वो रेंज शफक की लहरे,
वो मेरी निगाहों का असर आज की रात।

नगमा-ओ-मै का ये तूफ़ान-ए-तरब क्या कहना,
मेरा घर बन गया ख़ैयाम का घर आज की रात।

नर्गिस-ए-नाज़ में वो नींद का हल्क़ा सा ख़ुमार
वो मेरे नग़मा-ए-शीरीं का असर आज की रात।

मेरी हर सांस पे वह उनकी तव्जाहा क्या खूब,
मेरी बात पे वह जुम्बिशे सर आज की रात।

वह तबस्सुम ही तबस्सुम का ज़माले पैहम,
वह महब्बत ही महब्बत की नज़र आज की रात।

उफ़ वह वाराफतगीये शौक में एक वहमें लतीफ़,
कपकपाते हुए होंठो पे नज़र आज की रात।

अपनी रिफत पे जो नाजा है तो नाजा ही रहे,
कह दो अंजुम से की देखे न इधर आज की रात।

उनके अलताफ का इतना ही फशु काफी है,
कम है पहले से बहुत दर्दे जिगर आज की रात।।

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