अभी न होगा मेरा अन्त अभी-अभी ही तो आया है- महाप्राण निराला

आज 5 सितम्बर है और आज पूरे देश में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है। शिक्षक या गुरु का महत्त्व भारतीय परम्पराओं में सबसे अधिक माना जाता है और गुरु को भगवान से ऊँचे पद पर आसीन किया जाता है। गुरु के बिना हमें इस संसार में कुछ भी ज्ञात नहीं हो सकता और हमारा कभी भी सार्थकता को प्राप्त नहीं कर सकता। गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है कि “बिनु सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई” यानी बिना सत्संग अर्थात गुरुओं के साथ के बिना विवेक की प्राप्ति नहीं हो सकता है और गुरु का साथ भी ईश्वर की कृपा के बिना कदापि नहीं मिल सकता। आज शिक्षक दिवस के अवसर पर महाप्राण निराला की कविता के ज़रिये हम भी ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हमें सच्चे गुरु का सान्निध्य मिले और हमारा जीवन सार्थक हो सके और हम अपने देश के काम आ सके...।

वर दे, वीणावादिनि वर दे!

 

प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
        भारत में भर दे!

काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
        जगमग जग कर दे!

नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
        नव पर, नव स्वर दे!

वर दे, वीणावादिनि वर दे।

अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त

हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात!

मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर

पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,

द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
है मेरे वे जहाँ अनन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त।

मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,
इसमें कहाँ मृत्यु?
है जीवन ही जीवन
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन,

मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बन्धु, दिगन्त;
अभी न होगा मेरा अन्त।

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