एक मिलिट्री वाले की कहानी, जिसने लिखे अनोखे गीत और राजेश खन्ना को बनाया सुपरस्टार!

शशि कपूर के डूबते करियर को बचाने और राजेश खन्ना को सुपरस्टार बनाने वाले गीतकार का नाम है आनंद बक्शी। आनंद बक्शी ऐसे गीतकार थे जो सभी आम-ओ-ख़ास परिस्थितियों में अपनी कलम से ऐसे गीत लिख दिया करते थे जो बहुत सरल अंदाज़ के होने की वजह से सुनने वालों की जुबाँ पर चढ़ जाया करते। लगभग 4 दशकों तक अपने गीतों से लोगों के दिलों पर राज करने वाले आनन्द बक्शी साहब का जन्म 21 जुलाई 1930 को पाकिस्तान के रावलपिंडी में हुआ।

आनंद बक्शी के पिता रावलपिंडी में बैंक मैनेजर थे और ख़ुद आनंद साहब सेना में टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी करते थे। जब देश का बंटवारा हुआ तो, आनन्द बक्शी अपने परिवार के साथ भारत आ गए। इसके बाद वह मुंबई में अपने गीतकार बनने के सपने को पूरा करने के लिए पहुंचे, लेकिन जब मायानगरी में उनके सपनों को उड़ान नहीं मिली, तो वापस वह सेना में भर्ती हो गए और तीन साल तक वहीं काम किया। इसके बाद आनन्द साहब ने दूसरी बार फौज की नौकरी छोड़कर गीतकार बनने का फैसला किया और मुंबई आ गए और इस बार उन्हें बेशुमार कामयाबी मिली।

आनंद बक्शी साहब को साल 1958 में आई फिल्म ‘भला आदमी’ में बतौर गीतकार पहली बार काम करने का मौका मिला, लेकिन यह फिल्म उन्हें कुछ खास सफलता नहीं दिला पाई। इसके बाद 1963 में राज कपूर ने आनन्द बक्शी को अपनी फिल्म 'मेहंदी लगे मेरे हाथ' में गीत लिखने का मौका दिया। फिर धीरे-धीरे आनन्द बक्शी की लोकप्रियता बढ़ी और उन्हें काम मिलने लगा।

साल 1965 में आई फिल्म ‘जब जब फूल खिले’ से आनन्द बक्शी को असल मायने में पहचान मिली, जिसमें उन्होंने ‘परदेसियों से न अंखियां मिलाना’, 'ये समां.. समां है ये प्यार का', ' एक था गुल और एक थी बुलबुल’, गीत लिखकर अपना ही नहीं, बल्कि कपूर खानदान के चिराग, शशि कपूर के डूबते करियर को भी संभाल लिया।

वहीं फ़िल्म ‘आराधना’, ‘अमर प्रेम’ और ‘कटी पतंग’ जैसी कई फिल्मों में उन्होंने वो गीत दिए, जिनकी वजह से राजेश खन्ना भारतीय सिनेमा के पहले सुपरस्टार बने।

आनंद बक्शी को जनता से इतना प्यार मिलता था कि उनको 41 बार फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामित किया गया, लेकिन पुरस्कार वे चार बार ही जीत पाए थे। उन्होंने अपने करियर में कई पीढ़ियों के साथ काम किया और उनकी खूबी थी कि समय के साथ उनका लिखने का तरीका भी बदलता जाता था। शायद इसलिए वह लोगों को काफी पसंद आते थे। बक्शी ऐसे गीतकारों में शुमार हैं, जिन्होंने साल दर साल फिल्म इंडस्ट्री को एक से बढ़कर एक गाने दिए थे।

लगभग 4 दशकों तक लोगों के दिलों पर राज करने वाले गीतकार आनंद बक्शी साहब ने 70 साल की उम्र में 30 मार्च 2002 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। बेशक आनन्द बक्शी साहब इस दुनिया में प्रत्यक्ष रूप से मौजूद नहीं हैं, लेकिन उनके लिखे गीत आज भी जब सुने जाते हैं तो अनायास ही होठों से यही अलफ़ाज़ निकलते हैं... “वाह बक्शी साहब वाह क्या गीत लिखे थे आपने।”

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